मैं पिछले तीन-चार दिन से दुबई-अबूधाबी में हूं। यहां मेरे कई कार्यक्रम हो रहे हैं और कई अरब नेताओं से मिलना हो रहा है लेकिन आज मैं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बारे में आपको बता रहा हूं। इमरान का कितना दुर्भाग्य है कि प्रधानमंत्री बनते ही उन्हें भिक्षाटन पर निकलना पड़ा है। सबसे पहले वे सउदी अरब गए, फिर चीन गए और अब वे संयुक्त अरब अमारात (यूएई) में आए हैं। इन तीनों देशों में जाने का उनका असली मकसद क्या है ? वह यह कि पाकिस्तान की डगमगाती नाव को ये मुल्क कुछ टेका लगा दें।
अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पहले पाकिस्तान को जी खोलकर टेका लगाता था लेकिन जब से अमेरिका ने हाथ खींचा है, उसने भी गच्चा देना शुरु कर दिया है। इमरान चाहते हैं कि इस अरब राष्ट्र से उन्हें चीन और सउदी की तरह कम से कम 6 बिलियन डाॅलर की मदद मिल जाए। यदि मोदी को 3 बिलियन देने की घोषणा हुई थी तो इमरान को 6 बिलियन तो मिलने ही चाहिए। आखिर इस्लाम के नाम पर इतना तो होना ही चाहिए।
अगले हफ्ते इमरान मलेशिया जाकर प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के सामने अपना दामन फैलाएंगे। यह दृश्य देखकर इमरान के प्रति मेरे मन में सहानुभूति का भाव तो पैदा होता है कि इस स्वाभिमानी पठान की आत्मा इस समय कितना कष्ट झेल रही होगी लेकिन मैं यह भी सोचता हूं कि पाकिस्तान का सबसे निकट पड़ौसी देश भारत है लेकिन इमरान भारत से कोई मदद क्यों नहीं मांग रहे हैं ? शायद उन्हें डर है कि उनकी बेइज्जती हो जाएगी लेकिन मैं उन्हें बता दूं कि पाकिस्तान के संकट के समय भारत ने सेवा-सहायता का हाथ दो-तीन बार अपने आप आगे बढ़ाया था लेकिन पाकिस्तान झिझका रहा। इमरान के दर्जनों मित्र भारत में हैं। वे यदि खुद पहल करते हुए नहीं दिखाई पड़ना चाहते हैं तो वे अपने दोस्तों से कहें। क्या नरेंद्र मोदी मना कर देंगे ? जो मोदी मियां नवाज के यहां शादी में अचानक चले गए, उनके इरादों पर इमरान को शक क्यों होना चाहिए ? भारत बड़ा मालदार देश नहीं हैं लेकिन बड़ा दिलदार देश है। और फिर पाकिस्तान और भारत तो हजारों साल से एक ही मुल्क, एक ही तहजीब और एक ही दुख-दर्द वाले देश रहे हैं। इमरान के लिए यह मौका है, दोनों देशों के बीच एक नई इबारत लिखने का !
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