नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने कर्नाटक में जो नाटक करवाया, उसने भाजपा की नाक कटवा दी। यदि येदुरप्पा की सरकार विश्वास-मत जीत लेती तो वह राजनीतिक भ्रष्टाचार का बहुत गंदा उदाहरण बनता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्वयंसेवकाई को पलीता लग जाता। पैसे, पद और सत्ता का लालच देकर यदि भाजपा विपक्ष के 9-10 विधायकों को तोड़ लेती और येदुरप्पा मुख्यमंत्री बने रहते तो देश में भाजपा कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहती। उसने विधायक तोड़ने की कोशिश तो की लेकिन सफल नहीं हुई।
यदि सर्वोच्च न्यायालय भी उसे राज्यपाल की तरह 15 दिन दे देता तो वह अपने शक्ति-परीक्षण में अवश्य सफल हो जाती लेकिन फिर मोदी देश और दुनिया के सामने जो देशभक्ति और नैतिकता की डींग मारते रहते हैं, उसका क्या होता ? येदुरप्पा की तुलना 1996 के अटलजी से करना बिल्कुल अनुचित है। राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उनको सरकार बनाने का मौका इसलिए दिया था कि उनके सामने कोई गठबंधन नहीं था।
यहां तो कांग्रेस और जनता दल के गठबंधन ने पहले दिन ही दावा कर दिया था। इस गठबंधन को 52 प्रतिशत वोट मिले हैं और भाजपा को सिर्फ 36 प्रतिशत ! हारी हुई कांग्रेस को भाजपा से 2.5 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले हैं। इसके अलावा अटलजी ने अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए किसी अनैतिक तो क्या, किसी अनुचित साधन का भी उपयोग नहीं किया था। यहां तो राज्यपाल वजुभाई वाला ने अपने स्वविवेक नहीं, अविवेक का प्रयोग करके इस महत्वपूर्ण पद की गरिमा गिरा दी लेकिन मैं सर्वोच्च न्यायालय की तारीफ करुंगा कि उसने 24 घंटे का समय देकर भाजपा को भ्रष्टाचार करने से बचा लिया। लेकिन मोदी और अमित शाह ने यह सिद्ध कर दिया कि यह उनकी भाजपा है। यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयालजी, अटलजी और आडवाणीजी की भाजपा नहीं है। यदि उन्हें मौका मिलेगा तो वे भ्रष्टाचार करने से चूकेंगे नहीं।
उन्होंने कर्नाटक का यह जुआ खेलकर अपनी जड़ों को मट्ठा पिला दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार वाले भाजपा के कार्यकर्ता खुद-हैरान परेशान थे। कर्नाटक ने देश के विरोधी दलों को एकता के सूत्र में बांध दिया है बल्कि मोदी की कुर्सी के लिए भी खतरा खड़ा कर दिया है। कर्नाटक के जिस दल ने उसे मुख्यमंत्री दिया है, वही दल अब देश को प्रधानमंत्री देने की तैयारी करेगा।
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