इधर जो प्रामाणिक सर्वेक्षण हुए हैं, उनसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में भारी गिरावट हुई है लेकिन विपक्षी नेताओं की लोकप्रियता तो उस गिरावट से भी ज्यादा गिरी हुई है। उसमें तो किसी तरह का उठान दिख ही नहीं रहा है। इसके बावजूद लगभग सभी विपक्षी नेता मोदी के विरुद्ध एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसी कई पहल हो चुकी हैं लेकिन इस बार सबसे प्रमुख विरोधी दल कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहल की है। उनकी पहल में कुछ ऐसे दल भी एक साथ आए हैं, जो प्रांतों में एक-दूसरे के खिलाफ, लड़ रहे हैं। उनकी इस बैठक में यह बात बहुत जोर से कही गई कि इस विपक्षी गठबंधन का नेता कौन हो, यह प्रश्न इस समय ध्यान देने लायक नहीं है।
अभी तो एक ही बात पर सब अपना ध्यान केंद्रित करें कि सब मिलकर एक हो जाएं। यह एकता किसलिए हो, यह कोई साफ-साफ नहीं बता रहा। लेकिन इसे सब साफ-साफ समझ रहे हैं। इस एकता का लक्ष्य सिर्फ एक है। वह है, सत्ता हथियाना। सारे विपक्षी दल इसी सोच में खोए हुए हैं कि भाजपा-गठबंधन ने मुश्किल से 35-40 प्रतिशत वोट लिये हैं और वह सरकार बनाकर गुलछर्रे उड़ा रही है और हम विपक्ष में बैठे खट्टी छाछ बिलो रहे हैं। हमारे विपक्षी दलों की दो समस्याएं सबसे बड़ी हैं। एक तो उनके पास एक भी नेता ऐसा नहीं है जो मोदी की टक्कर में खड़ा हो सके और दूसरी बात यह कि विपक्ष के हाथ अभी तक कोई ऐसा मुद्दा नहीं लगा है, जिसके दम पर वह मोदी सरकार को अपदस्थ कर सके। इसमें शक नहीं कि किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरुरी है और यह भी सच है कि इस समय देश की समस्याओं के विकराल रुप को देखते हुए लग रहा है कि देश को सुयोग्य नेतृत्व की जरुरत है लेकिन हमारे विपक्ष के पास खाली झुनझुने के अलावा क्या है ?
वह उसी तरह अल्पदृष्टि है, जैसी वर्तमान सरकार है। उसके पास कौनसी ऐसी वैकल्पिक दृष्टि है, जो जनता का लाभ कर सकती है या उसे तुरंत आकर्षित कर सकती है? उसके पास सत्तारुढ़ दल की तरह ही दूरदृष्टि का अभाव है। कोरोना महामारी के संकट में भाजपा सरकार को दोषी ठहरानेवाले दलों की प्रांतीय सरकारों ने कौनसा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया? बेरोजगार लोगों के लिए उन्होंने कौनसी बेहतर राहत पहुँचाई? पिछले दो वर्षों में आई चुनौतियों के सामने यदि विपक्ष की प्रांतीय सरकारें कोई चमत्कारी काम करके दिखा देतीं तो उनका सिक्का अपने आप दौड़ने लगता। हमारे विपक्षी दलों के पास कुल मिलाकर करोड़ों सदस्य हैं लेकिन वे प्रदर्शनों, धरनों और तोड़फोड़ के अलावा क्या करते हैं ? क्या उन्होंने कभी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जन-आंदोलन चलाया? क्या वे कभी शिक्षा के प्रचार और लोक-सुविधाओं के विस्तार में कोई सक्रियता दिखाते हैं ? ऐसा लगता है कि समाज-सेवा और समाज-सुधार से उनका कोई वास्ता नहीं है। उनका लक्ष्य बस एक ही है। वह है, सत्ता कैसे हथियाना? इस दृष्टि से जैसा पक्ष है, वैसा विपक्ष है और जैसा विपक्ष है, वैसा ही पक्ष है। दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हैं।
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