मैंने कल लिखा था कि कर्नाटक में भाजपा को बहुमत नहीं मिला और वहां वह सरकार नहीं बनाएगी यह उसके लिए फायदे का सौदा होगा क्योंकि अब 2019 के लिए वह कमर कसकर लड़ेगी लेकिन राज्यपाल वजूभाई वाला ने येदुरप्पा को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी। राज्यपाल ने कांग्रेस और जद के गठबंधन की सरकार बनाने की अपील रद्द कर दी। 116 सीटों वाले गठबंधन को दरी पर बिठा दिया और 104 सीटों वाली भाजपा को सिंहासन पर लिटा दिया।
36 प्रतिशत वोट पाने वाली भाजपा के दावे को राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया और 52 प्रतिशत वोट पाने वाले गठबंधन की अर्जी को उन्होंने कूड़े में फेंक दिया। क्या यह कारनामा लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा ? क्या राज्यपाल का स्वविवेक इसी को कहते हैं ? राज्यपाल से भाजपा ने सदन में शक्ति परीक्षण के लिए 7 दिन मांगे थे। उन्होंने 15 दिन दे दिए। राज्यपाल ने अपनी साख पैंदे में बिठा ली। अब पता चल रहा है कि उनकी पृष्ठभूमि क्या रही है। अखबार और चैनल इस भाजपा के कार्यकर्त्ता की मिट्टी पलीद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का हाल भी विचित्र है। उसके जजों की नौटंकी भी अदभुत है। मध्य रात्रि में अदालत लगाई और फैसला ऐसा दिया कि जैसे वे दूध पीते बच्चे हो। जैसे उन्हें पता ही न हो कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिली हैं। यह भारत की अदालत है या टिंबकटू की ? अब उसे वह पत्र देखने हैं, जो दोनों पक्षों ने राज्यपाल को लिखे हैं।
उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह येदुरप्पा की शपथ रोक सके तो क्या अब उसने तिकड़मबाजी को प्रोत्साहित नहीं कर दिया है ? क्या उसने भाजपा को सारे अनैतिक हथकंडे अपनाने का मौका नहीं दे दिया है? मैं कहता हूं कि राज्यपाल और अदालत दोनों मिलकर भाजपा की कब्र खेाद रहे हैं। अब क्या होगा ? सारे विरोधी दलों की एकता मजबूत होगी। वे गोवा, बिहार, मेघालय, मणिपुर आदि के गड़े मुर्दों को भी उखाड़ेंगे। सारे देश में भाजपा की सत्ता-लोलुपता के नारे गूंजेगे और 2019 में मोदी की दाल पतली हो जाएगी।
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