आज सारी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्रसंघ ने 8 मार्च का दिन इसके लिए घोषित किया है। संयुक्तराष्ट्र में यह दिवस इसलिए मान्य हुआ कि यूरोप और अमेरिका की महिलाओं ने 20 वीं सदी के शुरु से ही महिला-अधिकारों के लिए जबर्दस्त आंदोलन किए। पश्चिमी राष्ट्रों में महिलाओं के साथ अत्याचार का इतिहास बहुत लंबा रहा है। औरत को कभी आदमी के बराबर समझा ही नहीं गया। औरत याने हव्वा की उत्पत्ति पुरुष याने आदम की पसली से बताई गई है। नारी को नरक का द्वार कहा गया है। ब्रिटेन में लोकतंत्र को आए लंबा समय बीत गया लेकिन औरतों को मूलाधिकार 1918 में जा कर मिला।
औरतों को आदमी के बराबर दर्जा देने की लड़ाई में सबसे ज्यादा अडंगा यूरोप और अरब देशों के धर्म-ध्वजियों ने लगाया। आज भी इन पश्चिमी देशों में शिक्षा और संपन्नता के प्रसार के बावजूद स्त्रियों का दर्जा सम्मानजनक नहीं है। वे पुरुष की आक्रामक काम-वासना की शिकार होती हैं। अमेरिका के राष्ट्रपतियों के किस्से किसे पता नहीं है? आज भी दुनिया की शासन-व्यवस्था और व्यापार में औरतों का स्थान नगण्य है। दुनिया के लगभग 200 राष्ट्रों में से दो दर्जन भी ऐसे भी नहीं है, जिनकी राष्ट्राध्यक्ष स्त्रियां रही हैं। दुनिया के संसदों और मंत्रिमंडलों में औरतों का स्थान 20 प्रतिशत भी नहीं है। उद्योग-व्यापार के क्षेत्र में दुनिया के सबसे संपन्न व्यक्तियों की सूची बनाई जाए तो उसमें महिलाओं का स्थान खोजने के लिए हमें खुर्दबीन लगानी होगी। महिला दिवस पर सारी दुनिया में जबानी जमा-खर्च होता रहता है। जरुरी यह है कि महिलाओं के अधिकार और सम्मान के लिए कुछ ठोस कानूनी और नैतिक कदम उठाए जाएं।
दुनिया के सभी संसदों और विधानसभाओं में कम से कम 40 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित की जाएं। मंत्रिमंडलों में भी उन्हें कम से कम 30 प्रतिशत सीटें मिलें। इसके लिए यह जरुरी है कि देश की हर बच्ची के सुशिक्षित बनाने के लिए सारी सुविधाएं दी जाएं। जो नागरिक अपनी बेटियों को नहीं पढ़ाएं, उन पर जुर्माना किया जाए। महिला अधिकारों या नर-नारी समता के नाम पर चल रहे निरंकुश दुराचरण पर सख्ती से रोक लगाई जाए। दहेज-विरोधी आंदोलन जोरों से चलाया जाए। विज्ञापनों में नारी-देह के फूहड़ प्रदर्शन पर रोक लगाई जाए। बलात्कारियों को मृत्यु-दंड दिया जाए और उनके फैसले तत्काल किए जाए। दस-बीस साल तक इस तरह का अनुशासन सारे देश चलाएं तो फिर महिला-दिवस मनाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।
Leave a Reply