गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदी-दिवस के अवसर पर कोई ऐसी बात नहीं की, जिस पर कोई जरा भी आपत्ति कर सके लेकिन फिर भी कांग्रेस और कुछ दक्षिण भारतीय नेताओं ने उनका कड़ा विरोध कर दिया है। अपने आप को मुसलमानों का नेता कहने वाले असदुद्दीन औवेसी ने भी भाजपा-विरोधियों के स्वर में स्वर मिला दिया है। इन तमिल, कन्नड़, बांग्ला और मुस्लिम नेताओं को भाजपा का विरोध करना है, इसीलिए उन्होंने हिंदी के विरुद्ध शोरगुल मचाना शुरु कर दिया है। उनका कहना है कि अमित शाह हिंदी को सब पर थोपने के लिए अन्य भारतीय भाषाओं का गला घोंटना चाहते हैं। यह सरासर झूठ है। क्या अमित शाह हिंदीभाषी हैं ? नहीं हैं। वे ओवैसी, कुमारस्वामी, नारायण स्वामी, वाइको और ममता बेनर्जी की तरह गैर-हिंदीभाषी हैं। उनकी मातृभाषा हिंदी नहीं, गुजराती है।
इसलिए जो आरोप सेठ गोविंददास, डा. लोहिया और मुझ पर पचास-साठ साल पहले लगाए जाते थे, वे अमित शाह पर नहीं लगाए जा सकते। दूसरी बात, अमित शाह ने अपने भाषण में कई बार भारतीय भाषाओं के महत्व को दोहराया है। उनके भाषण में से एक शब्द भी ऐसा नहीं खोजा जा सकता, जिसके आधार पर यह सिद्ध किया जा सकता हो कि वे किसी भी भारतीय भाषा को हिंदी के आगे उपेक्षित या अपमानित करना चाहते हों। तीसरी बात, उन्होंने अंग्रेजी की गुलामी पर प्रहार किया है, जो बिल्कुल ठीक किया है। यदि हमारे राज-काज, अदालतों, पाठशालाओं-अस्पतालों, संसद-विधानसभाओं और रोजमर्रा के जीवन से अंग्रेजी का वर्चस्व खत्म होगा तो क्या होगा ? सारा देश आपस में जुड़ेगा। अभी सिर्फ अंग्रेजीदां भद्रलोक, जिसकी संख्या 5-7 करोड़ से ज्यादा नहीं है, आपस में जुड़ा हुआ है। क्या यह सच्चा और पूरा जुड़ाव है ? 130 करोड़ लोगों को आपस में कौनसी भाषा जोड़ सकती है? वह सिर्फ एक ही भाषा हो सकती है और वह है- हिंदी। इसमें अमित शाह ने क्या गलत कह दिया ? हिंदी की वह भूमिका कतई नहीं होगी जो अंग्रेजी की है। यदि हिंदी भी अंग्रेजी की तरह शोषण और ठगी की भूमिका निभाएगी तो उसका सबसे बड़ा विरोधी मैं होऊंगा। उसमें अमित शाह जैसे लोग भी मेरे साथ होंगे।
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