नागरिकता संशोधन कानून लगभग वैसी ही भूल है, जैसी मोदी सरकार ने नोटबंदी की भयंकर भूल की थी। इन दोनों कामों के करने के पीछे भावना तो बहुत अच्छी रही लेकिन इनके दुष्परिणाम भयावह हुए हैं। नोटबंदी से सारा काला धन सफेद हो गया। काले धनवालों ने उल्टे उस्तरे से सरकार की मुंडाई कर दी। सैकड़ों लोगों ने अपनी जान से हाथ धोए और 30 हजार करोड़ रु. नए नोट छापने में बर्बाद हुए। लेकिन नोटबंदी ने भाजपा सरकार का ज्यादा नुकसान नहीं किया, क्योंकि लोगों को पक्का विश्वास था कि वह देश के भले के लिए की गई थी लेकिन नागरिकता संशोधन कानून मोदी सरकार और भाजपा की जड़ों को मट्ठा पिला सकता है। यह कानून भाजपा के लिए कहीं भस्मासुरी सिद्ध न हो जाए।
इस कानून का मूल उद्देश्य तो बहुत अच्छा है कि पड़ौसी मुस्लिम देशों के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाए लेकिन उसका आधार सिर्फ धार्मिक उत्पीड़न हो, यह बात भारत के मिजाज से मेल नहीं खाती। उत्पीड़न किसी भी तरह का हो, और वे उत्पीड़ित सिर्फ तीन पड़ौसी मुस्लिम देशों के ही क्यों, किसी भी पड़ौसी देश के हों, भारत के द्वार उनके लिए खुले होने चाहिए। हर व्यक्ति के गुण-दोष परख कर ही उसे भारत का नागरिक बनाया जाए। न थोक में नागरिकता दी जाए और न ही थोक में मना की जाए। इस सिद्धांत का पालन ही सच्चा हिंदुत्व है।
लेकिन इस संशोधित कानून ने इस सिद्धांत का सरासर उल्लंघन किया है। इसीलिए मुसलमानों से ज्यादा हिंदू नौजवान इसका विरोध कर रहे हैं। सारे देश के विरोधियों को इस कानून ने एक कर दिया है। बांग्लादेश जैसे भारत के अभिन्न मित्र देश ने पिछले कुछ सप्ताहों में अपने मंत्रियों की चार भारत-यात्राएं स्थगित कर दीं। कई मित्र-राष्ट्रों ने इस कानून को अनुचित बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इतना विरोध हुआ कि कोलकाता में उन्हें शहर के अंदर कार छोड़कर हेलिकाप्टर से यात्रा करनी पड़ी है। अनेक राज्य सरकारें (विपक्षी) इस कानून को लागू नहीं करने की घोषणा कर चुकी हैं। इस बेढंगे कानून की वजह से ‘नागरिकता रजिस्टर’ जैसा उत्तम काम भी खटाई में पड़ता नजर आ रहा है।
Mustafa says
very good article. at present indians have good image worldwide because all world knows india is a civilized society, democratic and secular country. As per current scenario the impression will be – religious intolerant & discriminatory society, people don’t have religious freedom. Rules are made according to religion.
i am working in Gulf countries since last 15 years. Hindus are working in important position and key posts here they have to face all this bullshit.
Important to note that policy of govt and nature of general public here is not same. Indians have to bear the brunt and direct effects on indians will be huge,
For other other countries i cannot say much. But the overall impression is not good.
Even the europeans here are talking about this.