सर्वोच्च न्यायालय अब एक बार फिर ‘मलाईदार परत’ के लोगों को आरक्षण देने के सवाल पर विचार करने के लिए तैयार हो गया है। इसी अदालत ने अपने पिछले फैसलों में साफ-साफ कहा था कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति देते समय अनुसूचितों में जो मालदार, सुशिक्षित, पहले से पदों में जमे हुए लोगों को बाहर रखा जाना चाहिए।यह फैसला देते वक्त जजों के तर्क ये थे कि ये लोग मलाईदार (क्रीमी) हो चुके हैं। ये लोग अब पिछड़े नहीं रहे। ये अगड़ों के बराबर हैं। यदि पिछड़ों और अनुसूचितों में से पदोन्नति के लिए इन्हें भी चुना जाएगा तो वास्तव में जो पिछड़े हैं, वे और भी पिछड़ जाएंगे। ये मलाईदार लोग अपने पिछड़ों की सारी मलाई खुद ही चट कर जाएंगे।
पिछड़ों को हमेशा पिछड़ा बनाए रखने में इस वर्ग की अवांछित भूमिका सबसे तगड़ी होगी। पिछड़ों में भी नया जातिवाद उभरेगा। उनमें ईर्ष्या-द्वेष की भावना घर करेगी। समाज में तनाव बढ़ेगा। सामाजिक न्याय का मूल लक्ष्य प्रतिहत होगा। मैं तो कहता रहा हूं कि जन्म और जाति की आधार पर पदोन्नति तो क्या, आरक्षण ही खत्म किया जाना चाहिए। यह आरक्षण हमारे करोड़ों ग्रामीण और गरीब तबकों में गहरी हीनता-ग्रंथि बांध देता है। वे सर्वोच्च पद पर पहुंचकर भी इस हीनता ग्रंथि से मुक्त नहीं हो पाते। पूरा समाज भी उन पर अयोग्यता का कलंक मढ़ता रहता है। इसीलिए कई बार सुनने में आता है कि अनुसूचित जाति का रोगी किसी अनुसूचित डाक्टर से आपरेशन करवाने में घबराता है।
मैं तो सोचता हूं कि इस बार सात जजों की इस बैंच को चाहिए कि वह नौकरियों में जातीय आरक्षण को ही अवैध घोषित कर दे लेकिन शिक्षा में गरीब, ग्रामीण और वंचित वर्गों के लिए 50 नहीं 70 प्रतिशत तक आरक्षण कर दे। उनके बच्चों के लिए शिक्षा के साथ-साथ भोजन, वस्त्र और निवास भी मुफ्त हो तो यह देश तेजी से आगे बढ़ेगा, समतामूलक बनेगा और लोगों के बीच समरसता बढ़ेगी।
chandra mohan tiwari says
very scientific analysis sir.