प्रियंका गांधी के कांग्रेस- महासचिव बनने पर देश के खबरतंत्र में खलबली-सी मच गई है। सारे टीवी चैनलों और अखबारों में यही सबसे बड़ी खबर रही। कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं में इतना जोश दिखाई पड़ रहा है कि जैसे अब उप्र की 80 संसदीय सीटों में से कम से कम 50 सीटें तो वे ले ही जाएंगे। मायावती और अखिलेश ने कांग्रेस को अछूत घोषित कर रखा था। अब कांग्रेस उनको मजा चखा देगी।
उधर भाजपा कह रही है कि प्रियंका को इसीलिए अब मैदान में उतार दिया गया है कि राहुल गांधी फेल हो गए हैं। प्रियंका राहुल से छोटी है लेकिन उसमें परिपक्वता अधिक मालूम पड़ती है और क्योंकि अब सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की मुद्रा में हैं तो वे अपनी जगह प्रियंका को बिठा दे रही हैं। इसमें गलत क्या है? अभी तक कांग्रेस मां-बेटा पार्टी थी। अब वह भाई-बहन पार्टी बन जाएगी जैसे कि भाजपा भाई-भाई पार्टी है। नरेंद्र भाई और अमित भाई।
कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर देश की लगभग सभी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बन गई हैं। गनीमत है कि खुद भारत अभी तक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं बना है। इसका कारण क्या है? जनता की जागरुकता ! वह परिवारवाद को कई बार पटकनी मार चुकी है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने पहले चुनाव (1967) में कई राज्य हार गईं और केंद्र में स्पष्ट बहुमत नहीं ला सकीं। नेहरु की बेटी को काफी पापड़ बेलने पड़े। इसी प्रकार राजीव गांधी को उनके पहले चुनाव में 410 सीटें शहीद इंदिराजी के नाम पर मिलीं लेकिन जब उन्होंने दूसरा चुनाव अपने नाम पर लड़ा तो उनकी सीटें आधी रह गईं।
1977 में जनता ने इंदिरा गांधी का पूरे उत्तर भारत से सफाया कर दिया था। 2014 में मां-बेटे को जनता ने 50 सीटों पर ला पटका। इसीलिए हमारे राजनीतिक विश्लेषकों को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि देश की जनता बुद्धू है और वह किसी भी व्यक्ति को सिर्फ इसीलिए अपना नेता मान लेगी कि उसके पूर्वज बड़े नेता रहे हैं। इसमें शक नहीं कि प्रियंका दर्शनीय और आकर्षक है लेकिन वह राजनीति में आ रही है नेता बनने के लिए, सिनेमा में अभिनेता बनने के लिए नहीं।
इसके अलावा प्रियंका के कमजोर कंधों पर उन्हें अपने पतिदेव राबर्ट वाड्रा को भी सदा ढोते रहना पड़ेगा। जाहिर है कि मोदी की तुलना में दोनों भाई-बहन पासंग बराबर भी नहीं हैं लेकिन उत्तरप्रदेश में तो वे दोनों मोदी के लिए ईश्वरीय वरदान सिद्ध होने वाले हैं। वे सपा और बसपा के वोट-बैंक में सेंध लगाएंगे और मोदी के अघोषित मददगार सिद्ध होंगे। मायावती और अखिलेश अब भी कांग्रेस से गठजोड़ कर लें तो अकेला उत्तरप्रदेश मोदी को वापस गुजरात भिजवा सकता है।
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