कोरोना पर हुई तालाबंदी (लाॅकडाउन) को अब तीन महिने पूरे हो रहे हैं। सरकार ने ताला खोल दिया है, लेकिन दरवाज़े अभी भी बंद हैं। करोड़ों लोग अपने दरवाजे के बाहर पांव रखने में भी डर रहे हैं। घर में बैठे-बैठे उनका दम घुट रहा है। समझ में नहीं आ रहा कि वे अपना दिन काटें तो कैसे कांटें ? जो लोग अपने दफ्तरों, कारखानों और दुकानों में लौट आए हैं, उनके पास पहले-जैसी व्यस्तता नहीं है, क्योंकि नियमित काम-काज ने अभी अपनी पुरानी रफ्तार नहीं पकड़ी है लेकिन कोरोना की रफ्तार रोजाना तेज होती जा रही है।
ऐसी हालत में घरों और दफ्तरों में बैठे लोग क्या करें ? मुझसे 85 वर्ष की मेरी एक महिला अध्यापिका ने फोन कर पूछा कि ‘तालाबंदी के इन दिनों में तुम्हें कैसा लग रहा है?’’ मैंने कहा कि आपको याद नहीं है कि अब से 63 साल पहले भी मुझसे यही सवाल पूछा गया था, जब मैं पटियाला जेल से छूटकर अपने शहर इंदौर पहुंचा था। जो मैंने तब महसूस किया था, वह ही अब महसूस कर रहा हूं। याने मैं घर में रहकर जेल का आनंद ले रहा हूं।’’
यह ठीक है कि पिछले तीन महिने से देश के करोड़ों लोग अपने ही घरों में गिरफ्तार हैं लेकिन यह गिरफ्तारी जेल की गिरफ्तारी से भी अधिक आनंददायक सिद्ध हो सकती है। मैंने छात्र-काल में आंदोलन चलाते हुए कई बार जेल काटी लेकिन गिरफ्तारी के उन दिनों का इस्तेमाल मैंने अपनी शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक बेहतरी के लिए जमकर किया। अब करोड़ों लोग चाहें तो कोरोना की इस मुसीबत को इस बेहतरी के अवसर में बदल सकते हैं।
सबसे पहली बात यह कि अपने मन से कोरोना का डर निकाल दें। बहुत-सी बीमारियां डर के मारे ही हो जाती हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप लापरवाह हो जाएं। सभी सावधानियों का दृढ़ता से पालन करें। साबुन से हाथ धोएं, मुखपट्टी लगाएं, शारीरिक दूरी रखें, भीड़-भड़क्के को टालें और दिन भर व्यस्त रहने का कार्यक्रम रोज सुबह या एक दिन पहले रात को ही बनाकर सोएं। कार्यक्रम ऐसा बनाएं कि आपके पास ऊबने का समय ही न बचे।
यदि आप सुबह 5 से 6 के बीच उठ जाएं तो यह शुभ दिनारंभ होगा। नित्यकर्म से निवृत्त होने के बाद बालक और युवा लोग दौड़ लगाने, कसरत करने और प्रातः भ्रमण का कार्यक्रम बना सकते हैं। जो लोग अधिक उम्र के हैं, वे 5 हजार से 10 हजार कदम रोज पैदल चलने का व्रत ले सकते हैं। आप अपने मोबाइल फोन में वह ‘एप’ भरवा लीजिए, जो आपको आपके कदमों की संख्या बताता रहेगा। जब पैदल घूमते वक्त आप रुक-रुककर अपने कदमों की संख्या उस ‘एप’ में देखेंगे तो आपका उत्साह बढ़ता रहेगा।
जब आप घूमते हैं तो उस समय का उपयोग आप इस तरीके से कर सकते हैं कि आपके कई काम एक साथ सध जाएं। जैसे सुबह घूमते वक्त अपना मोबाइल फोन जेब में रखे और तार अपने कान में लगाकर रखें। मोबाइल की यूट्यूब में जाकर आप सूर, तुलसी, मीरा, कबीर आदि के भजन, वेदमंत्र, गुरु ग्रंथ साहब, कुरान और बाइबिल के वचन आदि सुनें। अपनी इस चलती-फिरती महफिल में आप कुमार गंधर्व, भीमसेन जोशी, सुब्बुलक्ष्मी, प. जसराज, राधिका चोपड़ा, आबिदा परवीन जैसों का गायन सुनें तो उसके दो फायदे होंगे। एक तो आपकी सुबह अपने आप आध्यात्मिक हो जाएगी। प्लेटो कहा करते थे कि संगीत आत्मा की शिक्षा है। उसके साथ-साथ आपको यह पता नहीं चलेगा कि आप पांच हजार कदम चले या दस हजार ! थकान तो होगी ही नहीं।
इसके अलावा इस प्रातः भ्रमण में आप तीन काम एक साथ कर सकते हैं। व्यायाम, ध्यान और प्राणायाम ! चलने पर व्यायाम अपने आप हो जाता है। ध्यान कैसे करें ? उसके दो-तीन सरल तरीके हैं। एक तो अपनी सांस की आवाजाही पर पूरा ध्यान लगाएं। इसे ही विपश्यना या विपासना कहते हैं। यह ध्यान लगते ही मस्तिष्क सभी विचारों से शून्य होकर मुक्त अवस्था में पहुंच जाता है। दूसरा चलते समय अपने कदमों की आवाज सुनने की कोशिश करिए। ये आवाज़ कान में नहीं आएगी, दिमाग में आएगी। इस आवाज़ पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आप कदमों की गिनती भी करते रह सकते हैं। यह प्रयोग आपके दिमाग को चिंतामुक्त करेगा और उसे शक्तिशाली बनाएगा।
ध्यान का एक नया प्रयोग मैंने इधर किया और उसे बहुत उपयोगी पाया। आप अपने आप को ढीला छोड़ दें। हम रोज प्रायः सभी काम मशीनी ढंग से करते हैं याने यंत्रवत! सब काम कैसे हो जाते हैं, हमे पता ही नहीं चलता। हम कैसे नहाए, कैसे हमने खाना खाया, दिन में कहां गए, किससे मिले, क्या-क्या बात हुई— सब कुछ अपने आप होता जाता है। आजकल तालाबंदी के दिन हैं। आपके पास काफी अतिरिक्त समय रहता है। ज़रा यह प्रयोग करके देखें। जिस काम में आप जितना समय लगाते हैं, उसमें ज़रा दूना समय लगाकर देखिए। चाहे नहाना हो, गाना हो या आना जाना हो। आपको नए आनंद की अनुभूति होगी। अपनी विलक्षण चेतना का बोध आपको होगा। जो ग्रास आप दो मिनिट में चबाते हैं, उस पर तीन-चार मिनिट लगा दीजिए। आप देखेंगे कि चबाने की आवाज आपको सुनाई देगी, आपके दांत, जबड़े और जुबान पर उसकी छुअन मालूम पड़ेगी और आप जिस दाल-रोटी को बरसों से चबा रहे हैं, उसमें नई रसानुभूति होगी। यह आनंद आप तालाबंदी में आसानी से उठा सकते हैं।
आधा दिन तो आपका इसी व्यस्तता में बीत जाएगा। इस बीच आप थोड़ी देर अखबार भी पढ़ लेंगे, थोड़ा-बहुत टीवी भी देख लेंगे और दो-चार टेलिफोन भी सुन लेंगे। तालाबंदी के दिनों जो लोग व्यायाम नहीं करते, उन्हें खाने-पीने में बड़ा संयम रखना होगा। वरना, हर माह एक-दो किलो वजन बढ़ना तो बड़ी बात नहीं होगी। बुजुर्ग लोग फल, दलिया, खिचड़ी, सूप, हरी सब्जियों पर दारोमदार रखें तो बेहतर होगा। भारत में कोरोना यूरोप और अमेरिका की तरह नहीं फैला, इसका कारण हमारी भोजन-पद्धति भी है। भारतीय भोजन में जिन मसालों का प्रयोग होता है, वे ही क्वाथ (काढ़े) के रुप में सेवन किए जाते हैं। हल्दी, दालचीनी, अदरक, तुलसी, काली मिर्च, अश्वगंधा, मुलहठी, गिलोय, नींबू, अजवाइन आदि का सेवन तालाबंदी के इन उदासी भरे दिनों में शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखता है। पुरुष लोग इस फुर्सत के दौर में थोड़ा समय रसोई और घर की साफ-सफाई में लगाएं तो उन्हें मानसिक प्रसन्नता का अनुभव होगा।
घरेलू गिरफ्तारी के इन दिनों में टीवी सबका बड़ा साथी है लेकिन टीवी चैनलों पर जिस तरह से कोरोना के हताहतों और चीनी हमले की खबरें पेश की जा रही हैं, उनसे करोड़ों लोग हताश, निराश और उदास होने लगते हैं। टीवी देखे बिना तो रहा नहीं जा सकता लेकिन संभलकर देखें, कम देखें और उस पर कुछ फिल्में, नाटक, काव्य आदि का आनंद लें तो बेहतर रहे। सबसे अच्छा तो यह हो कि दोपहर से शाम तक के कुछ घंटे स्वाध्याय में लगाए जाएं। मैं जब भी जेल जाता था तो प्रेमचंद और शरतचंद चटर्जी आदि के उपन्यास, भारतीय और पश्चिमी दार्शनिकों के ग्रंथ और इतिहास व राजनीति की ताजा किताबें एक बड़े सूटकेस में पहले से भरकर रखता था। आजकल भी उन्हीं का स्वाध्याय फिर से हो रहा है। इन दिनों का इस्तेमाल आप अपनी आत्मकथा और डायरी लिखने में भी कर सकते हैं। बच्चों के साथ बैठकर कई घरेलू खेल भी खेल सकते हैं।
इन दिनों शारीरिक दूरी का तोड़ यही है कि आप रोज एक-दो घंटे तक फेसटाइम या व्हाटसाप पर अपने मित्रों से गप लगाएं। छह फुट नहीं, छह इंच की दूरी से बात करें। अपने बाल्यकाल के प्रसंगों और मित्रों को भी याद करें। भूतकाल को वर्तमान में खींच लाएं। महापुरुषों की जीवनियां पढ़ें तो वर्तमान और भविष्य दोनों प्रकाशित होते रहें। कोरोना से डरने की बजाय इस दौर मे त्रिकाल का आनंद लें।
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