दिल्ली के एक परिवार के 11 सदस्यों ने एक साथ आत्महत्या कर ली। ऐसी खबर पहली बार सुनने में आई अमेरिका में सैकड़ों लोगों ने कुछ वर्ष पहले एक गुरु के कहने पर सामूहिक आत्महत्या की थी। यह मामला आत्महत्या का है या हत्या का, कहना मुश्किल है। पुलिस खोज में लगी हुई है। लेकिन अभी तक जो प्रमाण मिले हैं, उनसे साफ-साफ लगता है कि यह मामला आत्महत्या का ही है। यदि यह हत्या का मामला होता तो उसी रात संतनगर की उस घनी बस्ती में हड़कंप मच जाता। पहले 11 लोगों की हत्या की जाती और फिर उन्हें छत से लटकाया जाता और सारे मुहल्ले में चूं भी नहीं होती, यह कैसे हो सकता है ? 11 लोगों की एक साथ हत्या करने के लिए कम से कम 22 हत्यारों की जरुरत तो होती ही। इतने लोग तो उनके शवों को लटकाने के लिए ही जरुरी होते। शवों पर तलवार या गोली के निशान भी नहीं हैं।
उस कमरे में जो डायरी मिली है, उससे भी यही संकेत मिलता है कि किसी तथाकथित तांत्रिक गुरु के चक्कर में फंसकर इस परिवार ने सामूहिक आत्महत्या का यह निर्णय कर डाला। अंधविश्वास की भी हद है। जीते जी मोक्ष दिलाने वाले बाबाओं की कमी नहीं है, भारत में। वे इसी चक्कर में अपनी भक्तिनों के साथ व्यभिचार और बलात्कार करते हैं और अपने भक्तों की संपत्तियां हड़प लेते हैं। इस भाटिया परिवार की संपन्नता, सज्जनता और संतुष्टि की पुष्टि भी सारे अड़ोसी-पड़ौसी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में पुलिस को उस व्यक्ति की खोज करनी चाहिए, जिसने इस परिवार को इस मौत के कुए में ढकेला है। उस व्यक्ति को तुरंत दंडित किया जाना चाहिए और प्रचारपूर्वक किया जाना चाहिए ताकि ढोंगी और धूर्त्त बाबाओं, साधुओं और संतों से समाज की रक्षा हो सके। इन धूर्तों के विरुद्ध देश में जबर्दस्त अभियान चलाया जाना चाहिए ताकि सच्चे साधु-संतों का अपमान न हो। इस तरह की दुखद घटनाओं की जिम्मेदारी उन लोगों पर कहीं ज्यादा आती है, जो बिना सोचे-समझे किसी भी बात पर भी विश्वास कर लेते हैं। कार्ल मार्क्स ने ठीक ही कहा था कि धर्म अफीम की तरह काम करता है। धर्म के नाम पर जितना अधर्म, अत्याचार और पाप होता है, उतना राजनीति के नाम पर भी नहीं होता। इसीलिए मैं सभी आम लोगों से कहता हूं कि आप जितने शक की नजर से नेताओं को देखते हैं, उससे भी ज्यादा पैनी नजर से इन साधुओं, मौलानाओं और पादरियों को देखा करें।
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