लंदन से लौटते ही मैंने ज्यों ही भारतीय अखबार खोले, देखा कि कुछ शहरों में भारी छापे पड़े। इन छापों में सैकड़ों मन मावा और दूध मिला। मावा और दूध, दोनों फर्जी थे। नकली थे। उनसे बनी मिठाइयां पता नहीं क्या जुल्म ढाएंगी ? कैंसर पैदा करेंगी, यकृत को चौपट करेंगी या और किसी गंभीर बीमारी के बीज बो देंगी।दीवाली के मौके पर ऐसी लाखों मन मिठाइयां पूरे देश में खपाई जाती हैं। सरकार किन-किन को और कितनों को पकड़ेगी ? इसका सबसे अच्छा इलाज यही है कि देश के करोड़ों लोग यह प्रतिज्ञा करें कि दीवाली पर वे अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को मिठाई के डिब्बे नहीं देंगे और लोग संकल्प लेंगे कि वे मिठाई नहीं खाएंगे।
हां, यदि दीवाली पर मिठाई आ ही गई तो उसे फेकेंगे नहीं, बस चख भर लेंगे, आधा चम्मच भर या चुटकी भर ! ताकि देनेवाले का सम्मान बचा रहे। बेहतर तो यह हो कि सारे भारत के लोग इस त्यौहार को कुछ अलग ढंग से मनाएं। वे मिठाई की बजाय फल, मेवे, किताबें, वस्त्र, कलम, फूल, बर्तन आदि रोजमर्रा के इस्तेमाल की सस्ती (और मंहगी) चीजें भी भेंट में दे सकते हैं। ये चीजें जब तक रहेंगी, भेंटकर्ताओं की याद को भी ताजा करती रहेंगी।मिठाई तो खाई और खत्म ! आजकल नया रिवाज चल पड़ा है। दीवाली के उपलक्ष्य में रात भर पार्टियां चलती रहती हैं। उनमें शराब और मास-मछली का जबर्दस्त दौर चलता रहता है और पटाखेबाजी भी होती है और दीयों की रोशनी के लिए मनों तेल भी जलाया जाता है। पटाखेबाजी पर दिल्ली में प्रतिबंध लगा है। ऐसा प्रतिबंध सारे देश में कठोरतापूर्वक लगना चाहिए।पटाखें चलें और वे ऐसे हों, जो रोशनी तो करें, दिल तो बहलाएं लेकिन उनमें धुंआ और शोर न हो। दिल्ली का प्रदूषण देखता हूं तो मुझे प्रदूषणमुक्त लंदन की याद आती है। यह ठीक है कि प्रदूषण और मिठाइयों में मिलावट को रोकना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन जब तक हम जन-साधारण प्रतिज्ञा नहीं करेंगे कि हमें दीवाली कैसे मनानी है, सरकार हाथ मलती ही रह जाएगी।
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