महाराष्ट्र में रातों-रात जो सत्ता-पलट हुआ था, वह अब सत्ता-उलट हो गया है। पहले अजित पवार का इस्तीफा हुआ। फिर देवेंद्र फड़नवीस का भी इस्तीफा हो गया। क्यों नहीं होता ? अजित पवार के उपमुख्यमंत्रिपद पर ही फड़नवीस का मुख्यमंत्री पद टिका हुआ था। फड़नवीस के इस्तीफे की वजह से अब विधान-सभा में शक्ति-परीक्षण की जरुरत नहीं होगी।सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति-परीक्षण का आदेश जारी करके अपनी निष्पक्षता जरुर सिद्ध कर दी है लेकिन क्या किसी लोकतंत्र के लिए यह शर्म की बात नहीं है कि 188 विधायकों को सिर्फ तीन जजों ने नाच नचा दिया? अदालत ऊपर हो गई और जनता के प्रतिनिधि नीचे हो गए।
महाराष्ट्र की विधानसभा में यदि शक्ति परीक्षण होता तो भाजपा की इज्जत पैंदे में बैठ जाती। इसीलिए इस्तीफा देकर फड़नवीस ने अच्छा किया लेकिन भाजपा को इस घटना ने जबर्दस्त धक्का लगा दिया है। शिव सेना, राकांपा और कांग्रेस के मुंबई में साथ आने का एक संदेश यह भी है कि दिल्ली की भाजपा सरकार के खिलाफ भारत की सभी पार्टियां एक होने में नहीं चूकेंगी।मोदी के लिए यह बड़ी चुनौती होगी। फड़नवीस और अजित पवार को जो आनन-फानन शपथ दिलाई गई थी, उससे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, महाराष्ट्र के राज्यपाल और भाजपा अध्यक्ष की छवि भी विकृत हुए बिना नहीं रहेगी। यदि फड़नवीस की सरकार बन जाती तब भी उसका परिणाम यही होता।यदि सत्ता-पलट का यह क्षणिक नाटक नहीं होता और विपक्ष के ‘अप्राकृतिक’ गठबंधन की सरकार बन जाती तो फड़नवीस के प्रति महाराष्ट्र की सहानुभूति बढ़ जाती। अब विपक्ष का यह गठबंधन पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है, हालांकि इसके आतंरिक अन्तर्विरोध इतने गहरे हैं कि यह पांच साल तक ठीक से चल पाएगा या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है।
ABhatia says
Its unfortunate to have witnessed the ugliest form of Politics in Maharastra. No party or leader, has demonstrated faith in democracy/ values of serving people. All have been badly exposed for keeping their self interest above every thing. Ajit Pawar and BJP are the biggest looser. Such immaturity was never expected from BJP.