अब मुंबई के बाद दिल्ली में किसानों का जोरदार प्रदर्शन हो रहा है। दिल्ली में किसी घटना का महत्व अपने आप अखिल भारतीय बन जाता है। इस बार सारे भारत से 200 किसान संगठन एक साथ दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी मांगें गुंजाएंगे। जब चौधरी चरणसिंह सत्ता में थे तो लग रहा था कि देश के इन अन्नदाताओं की सुध लेने वाला आ गया है लेकिन उनकी सत्ता इतने कम दिन चली कि उस दौरान कुछ ठोस नहीं हो सका। चौधरी देवीलाल उप-प्रधानमंत्री पद तक भी पहुंचे लेकिन उस समय भी सत्ता की उठा-पटक ने ऐसी शक्ल अख्तियार की कि ये किसान नेता भी देश के करोड़ों किसानों के दुख दूर नहीं कर सके।
भारत-जैसे देश में किसानों की दुर्दशा का मूल कारण यह है कि उनका कोई धनी-धोरी नहीं है। सत्ता के गलियारों में उनकी आवाज को गुंजाने वाला कोई नहीं है। वे गरीब हैं, ग्रामीण हैं, अल्प-शिक्षित हैं, प्रायः छोटी जातियों के हैं। उनका कोई ऐसा अखिल भारतीय संगठन नहीं है, जो सरकारों का टेंटुआ दबा सके। जो किसानों के बेटे संसद में पहुंचते हैं, वे शहरी हवा के दीवाने बन जाते हैं। उनमें इतना दम नहीं होता कि वे अपनी पार्टियों के नेताओं पर दबाव डालें और उनसे किसानों की दशा सुधारने को कहें।
यों देखा जाए तो आज भी देश में किसान समुदाय किसी भी समुदाय से बड़ा है लेकिन देश का पेट भरने वाला अन्नदाता किसान खुद भूखा मरता है। लाखों किसान आत्महत्या के लिए मजबूर होते हैं। अपना इलाज करवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते हैं। दवा के अभाव में वे दम तोड़ देते हैं। उनके बच्चों की शिक्षा की कोई ठीक-ठाक व्यवस्था नहीं होती। वे गांव और खेती छोड़कर शहरों की तरफ दौड़ लगाते हैं और झोपड़पट्टियों में रह कर पशुओं की जिदंगी बिताते हैं। यदि उन्हें आप वापस गांवों की तरफ लौटाना चाहते हों तो फसलों के दाम बढ़ाइए। लागत मूल्य से कम से कम डेढ़े दाम दिलवाइए। उन्हें बीज, सिंचाई और खाद की सुविधाएं उपलब्ध करवाइए। उन्हें शिक्षा और चिकित्सा सुलभ करवाइए। उनके लिए बजट में विशेष प्रावधान करवाइए। यदि वर्तमान सरकार संसद के इस शीतकालीन सत्र में यह सब काम करे, जैसे कि फसल बीमा की पहल की गई थी, तो 2019 का चुनाव जीतना उसके लिए कठिन नहीं होगा।
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