अब से 50 साल पहले गांधीजी के जिस दिन सौ साल पूरे हुए थे (2 अक्तूबर 1969) मैं लंदन में था। अब भी उसी सिलसिले में 11 अक्तूबर को लंदन में मेरा कार्यक्रम है। मुझे याद है कि लंदन में हुई उस विश्व-संगोष्ठी में इटली के गांधी कहे जानेवाले दानिएल दोल्ची जैसे कई देशों के शीर्ष विद्वान और समाजसेवी आए थे। मेरे हिंदी भाषण का अंग्रेजी अनुवाद प्रसिद्ध साहित्यकार निर्मल वर्मा ने किया था। अब मैं सोचता हूं कि इन पिछले 50 वर्षों में हमने गांधी का क्या किया ? हम व्यक्तियों ने, भारत राष्ट्र ने और दुनिया ने गांधी के साथ क्या व्यवहार किया ? पिछले 50 वर्षों में देश के ज्यादातर शहरों और गांवों में तथा दुनिया के ज्यादातर देशों में गांधी की मूर्तियां स्थापित हो गई हैं, घरों और दफ्तरों में उनके चित्र लग गए हैं, उनके जन्म-दिन पर छुट्टियां और उत्सव मना लिये जाते हैं लेकिन वे लोग, वे देश और व दुनिया अब दुर्लभ हो गई है, जिसे देखकर गांधीजी खुश हो जाते । अब से लगभग सौ साल पहले दुनिया में तीन बड़े नाम उभरे थे। रुस के व्लादिमीर इलिच लेनिन, भारत के मोहनदास गांधी और चीन के माओ त्से तुंग ! लेकिन अब लेनिन और माओ के नामलेवा-पानीदेवा कहीं मुश्किल से ही मिलते हैं। ये दोनों नेता अपने-अपने देश में ही अजनबी हो गए हैं। लेकिन गांधी हैं कि जिनका नाम भारत में ही नहीं, सारी दुनिया में फैलता जा रहा है। गांधीजी के नाम की माला वे लोग और संगठन भी जपने लगे हैं, जो पानी पी-पीकर उन्हें कोसते थे। वह क्या वजह है, जिसके कारण लेनिन और माओ इतिहास की गुफाओं में गुम होते जा रहे हैं और गांधी की चमक बढ़ती चली जा रही है ? कार्ल मार्क्स के शिष्य लेनिन और माओ का जोर परिस्थिति बदलने पर था जबकि गांधी का जोर मनस्थिति बदलने पर था। मार्क्स और लेनिन समाज और राज्य को उलटना चाहते थे और गांधी व्यक्ति को पलटना चाहते थे। राज्य और समाज को हिंसा के जरिए उलटने की नीति निष्फल हो गई है लेकिन अहिंसा, सत्य और प्रेम के जरिए मनुष्य को, व्यक्ति को, उसकी चेतना को जगाया जा सकता है। यह विश्वास ही गांधीजी को आज भी जिंदा रखे हुए है। बस जिंदा ही रखे हुए है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। दुनिया में क्या, भारत में ही गांधी कहां दिखाई पड़ते हैं ? पत्थरों की मूर्तियों में, दीवार पर टंगे चित्रों में, नोटों और सिक्कों पर ! हमारे जीवन में गांधी कहां है ? क्या हमारे व्यवहार का आधार सत्य और अहिंसा है ? क्या हम शाकाहार, नशाबंदी, सदाचार, अपरिग्रह, सविनय अवज्ञा, सादगी, सवधर्म सदभाव, विश्व-बंधुत्व का अपने दैनंदिन जीवन में अनुशीलन करते हैं ? गांधी सारी दुनिया के महापुरुषों से अलग इसीलिए हैं कि वे दूसरों को जो कहते थे, उसे पहले खुद पर लागू करके दिखा देते थे। अब न भारत में कोई ऐसे नेता हैं, न विदेशों में। करोड़ों लोग किसका अनुकरण करें ? गांधी सिर्फ विचार नहीं है, कर्म है। हमारे बीच जब कोई कर्त्ता ही नहीं है तो कर्म कहां से होगा ? बस, हम गांधी की माला जपते रहें।
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