कल जो बजट वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने पेश किया, उसने विपक्ष की हवा निकाल दी थी। उनकी बोलती बंद कर दी थी। उनके लटके हुए चेहरे ही बता रहे थे कि उन्हें इस बजट से कितना डर लग रहा था। अब वे यह आलोचना कर रहे हैं कि पीयूष ने तीन-चार महिने के सरकारी खर्च की अनुमति संसद से लेने की बजाय पूरे साल भर का बजट पेश कर दिया। तीन-चार महिने बाद पता नहीं कौनसी सरकार बनेगी। उसे इस सरकार का बोझ ढोना पड़ेगा। तर्क की दृष्टि से यह बात ठीक है लेकिन वर्तमान बजट में ऐसी कोई भी आपत्तिजनक बात दिखाई नहीं पड़ती, जो देश के लिए हानिकारक हो। हां यह ठीक है कि नागरिकों को जो रियायतें दी गई हैं, उनसे सरकार का घाटा 3.3 प्रतिशत से बढ़कर 3.4 प्रतिशत हो जाएगा। याने अरबों रु. बढ़ जाएगा। लेकिन कांग्रेस राज में यह 2.7 से कूदकर 5.8 प्रतिशत हो गया था। विपक्ष का यह कहना कि यह चुनावी बजट है, बिल्कुल ठीक है।
यदि इस मौके को मोदी सरकार नहीं भुनाती तो क्या करती? राम मंदिर का मसला अभी अधर में लटका हुआ है। उसके पास अपनी खाल बचाने का और कौन सा रास्ता रह गया है ? पांच लाख रु. तक की आय पर टैक्स की रियायत देकर लगभग तीन-चार करोड़ लोगों, किसानों को 6000 रु. साल देकर 14 करोड़ परिवार और 42 करोड़ मजदूरों को, (जिनकी आय 15000 रु. तक है) पेंशन की गोली देकर यदि यह सरकार अपने वोट पटाना चाहती है तो इसमें गलत क्या है? सभी दल वोट पटाने के लिए तरह-तरह के पैंतरे और हथकंडे अपनाते हैं। क्या कांग्रेस ने हर नागरिक को न्यूनतम आय का रसगुल्ला नहीं दिखाया है ? दोनों पार्टियां नागरिकों को सब्जबाग दिखाती हैं, चने के झाड़ पर चढ़ाती हैं। ये बात दूसरी है कि ऐन चुनावों के वक्त दी गईं इन रियायतों को जनता रिश्वत के रुप में लेगी या उत्तम नीतियों के रुप में ? यह तो किसान ही बता सकता है कि 3 रु. रोज में वह क्या तो नहाएगा और क्या निचोड़ेगा ?
किसी किसान को 3 रु. रोज देने को क्या हम किसान सम्मान राशि कह सकते हैं ? वह तो भिक्षा राशि से भी कम है। उसे कुछ देना ही था तो उसे तेलंगाना और ओडिसा-जैसा कुछ देते। क्या कोई आयकरदाता 10-15 हजार रु. की टैक्स की बचत पर अपने विवेक को बेच डालेगा ? अपना वोट देते वक्त क्या वह आंख मींच लेगा? कोई मजदूर 60 साल का होने पर याने 40-45 साल बाद 3000 रु. महिना पेंशन में अपना गुजारा कैसे करेगा ? इन 3 हजार रु. की कीमत 300 रु. के बराबर भी नहीं रहेगी। फिर भी आप आम आदमी को फिसलने से कैसे रोकेगें ?
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