नीरव मोदी के बैंकिंग घोटाले ने सरकार की नींद खोल दी है। तभी तो उसने सभी सरकारी बैंकों को निर्देश दिया है कि उनके सारे डूबतखातों की रपट वे सरकार को 15 दिन के अंदर-अंदर दे दे। इसके अलावा जिसके भी डूबतखाते की रकम 50 करोड़ से ज्यादा हो, उसके खिलाफ वे तुंरत कार्रवाई करें। इसके अलावा इन बैंकों में वर्षों से एक ही पद पर जमे हुए अफसरों के आनन-फानन तबादले हो रहे हैं। पंजाब नेशनल बैंक के सेवा-निवृत्त और सेवारत अफसरों की खिंचाई जारी है। इस बीच नए-नए डूबतखातों के प्रमाण भी उजागर होते जा रहे हैं। मोदी और चौकसी की धोखाधड़ी में अब नए 1323 करोड़ रु. जुड़ गए हैं। जैसा कि हमने इस कांड के शुरु में ही लिखा था कि सरकार यदि सख्ती से पेश आएगी तो ऐसे सैकड़ों नए मामले सामने आते चले जाएंगे। अब सरकार पर जनमत का इतना जबर्दस्त दबाव बन गया है कि वह संसद के अगले सत्र में ऐसा कानून ला रही है, जिसकी वजह से भगोड़े कर्जदारों की संपत्तियों को सरकार आनन-फानन नीलाम कर सकेगी। उन पर मुकदमा वगैरह बाद में चलता रहेगा लेकिन यहां सवाल यह है कि भागते भूत की लंगोटी पकड़ने से सरकार को मिलेगा क्या ?
ताजा खबर यह है कि मेहुल चौकसी को 100 करोड़ की गिरवी के बदले 5280 करोड़ रु. का कर्ज दे दिया गया। कई मामलों में गिरवी की संपत्तियां होती ही नहीं हैं या फर्जी होती हैं। यह नया आदेश वैसे तो अच्छा है लेकिन यह काफी नहीं है। जरुरत इस बात की है कि बैंकों के लुटेरों और उनके परिजनों की सारी चल-अचल संपत्तियों को जब्त किया जाए और उनको उम्र-कैद की सजा तक दी जाए। जिन अफसरों ने फर्जी संपत्तियों पर मुहर लगाई या कर्ज देने में ढिलाई बरती, उन्हें बर्खास्त किया जाए, उनकी संपत्तियां भी जब्त की जाएं और उन्हें भी कठोरतम सजा दी जाए। जिन नेताओं ने बैंकों की इस लूट-पाट में सहयोग किया हो और यदि उनके प्रमाण उपलब्ध हों तो उन्हें भी कड़ी सजा दी जाए। इस मामले में संसद ऐसा कानून बनाए कि वित्तीय अपराध करने के पहले ही अपराधियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ने लगे।
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