दक्षिण-कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन की इस भारत-यात्रा के दौरान दोनों देशों के संबंधों के अधिक घनिष्ट होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। ये संभावनाएं सिर्फ व्यापार के क्षेत्र में ही नहीं बढ़ी है बल्कि राजनीतिक और सामरिक क्षेत्रों में भी कई नए संकल्प हुए हैं। नोएडा में मोबाइल फोन के बहुत बड़े कारखाने का शिलान्यास तो हो ही गया है।
अब संकल्प यह भी है कि कुछ वर्षों में 20 बिलियन डालर का द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 50 बिलियन डालर का हो जाए। भारत में लगभग 600 छोटी-मोटी कोरियाई कंपनियां सक्रिय हैं, फिर भी व्यापार इतना कम क्यों है ? ऐसा इसलिए भी है कि भारत जो सामान्य व्यापारिक सुविधाएं चाहता है, उन्हें देने में भी दक्षिण कोरिया कोताही बरत रहा है। इस बार 11 समझौतों पर दस्तखत हुए हैं। अब कोरिया के साथ वज्र नामक तोपों का निर्माण भी होगा और दोनों राष्ट्र मिलकर अफगानिस्तान में कुछ संयुक्त कारखाने भी लगाएंगे।
दक्षिण कोरिया और भारत में नजदीकी का एक कारण चीन भी है। चीन ने उत्तर कोरिया की पीठ ठोककर द. कोरिया को सदा परेशान करने की कोशिश की है। इसके अलावा उ. कोरिया ने ए.क्यू. खान के जरिए परमाणु शस्त्र-निर्माण की सामग्रियां पाकिस्तान को दी थी। इसीलिए भारत ने इस परमाणु-फैलाव का जिक्र किया और द. कोरिया ने चीन सागर में चीनी दादागीरी का जिक्र किया। दोनों देशों ने चीन और पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन अपने-अपने जख्म खोलकर दिखाए।
भारत ने उत्तर और दक्षिण कोरियाओं के बीच अभी-अभी उभरे सद्भाव की सराहना की तो दक्षिण कोरिया ने भारत का परमाणु सप्लायर्स ग्रुप का सदस्य बनाने का समर्थन किया। इस समय भारत को द. कोरिया की जितनी जरुरत है, उससे ज्यादा उसे भारत की जरुरत है, क्योंकि उसकी अर्थ-व्यवस्था की गति धीमी पड़ती जा रही है। यों भी भारत इस समय अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चार बड़ों के भारत-प्रशांत (इंडो-पेसिफिक) मोर्चे का सदस्य बन गया है।
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