जिस बात को मैं पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को कहता रहा हूं, मुझे खुशी है कि वही बात अब भारत सरकार के गृहमंत्री राजनाथसिंह ने सार्वजनकि रुप से कह दी है। राजनाथजी ने पाकिस्तान की सरकार से कहा है कि यदि वह आतंकवाद से अकेली नहीं लड़ सकती तो भारत उसका साथ देने को तैयार है। हम दोनों देश मिलकर आतंकवाद से उसी तरह लड़ें, जैसे कि अफगानिस्तान के आतंकवाद से लड़ने के लिए अमेरिका उसका साथ दे रहा है। पाकिस्तान की फौज राजनाथसिंह की इस टिप्पणी को उस पर किया गया एक व्यंग्य भी मानकर चल सकती है लेकिन मेरा निवेदन यह है कि प्रधानमंत्री इमरान खान को राजनाथजी का यह प्रस्ताव एकदम मान लेना चाहिए। इस समय पाक फौज उनके जितने करीब है, किसी प्रधानमंत्री के उतने करीब नहीं रही। यहां इमरान के विरोधी यह सवाल उठा सकते हैं कि फिर कश्मीर का क्या होगा ? क्या हम कश्मीर के सवाल को हवा में उड़ जाने दें? यह सवाल बिल्कुल वाजिब है।
मेरा जवाब यह है कि कश्मीर से भी ज्यादा संगीन झगड़ा भारत-चीन सीमा का है। है या नहीं? है। फिर भी दोनों देश बरसों से लगातार बात कर रहे हैं। रिश्ते बढ़ा रहे है। एशिया और अफ्रीका में संयुक्त उद्योग लगा रहे हैं। दोनों देशों के नेता कई बार गलबहियां डालकर मिलते रहते हैं। भारत और चीन मिलकर अफगानिस्तान में भी साथ-साथ काम करने वाले हैं। ऐसा भारत और पाकिस्तान के बीच क्यों नहीं हो सकता? हम दो सहोदर राष्ट्र हैं। दोनों की मां एक ही है। जैसे दो जर्मनियों, दो वियतनामों और दो कोरियाओं की है।
यदि दोनों देशों के बीच सदभावना और सहयोग का माहौल बने तो कश्मीर का मसला चुटकियों में हल हो सकता है। कश्मीर एक गंभीर समस्या है, यह भारत मानेगा और आतंकवाद उससे भी ज्यादा गंभीर है, यह पाकिस्तान मानेगा। आतंकवाद ने भारत से कहीं ज्यादा तबाही पाकिस्तान में मचा रखी है। यदि ये दोनों समस्या हल हो जाएं तो मेरा दावा है कि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के राष्ट्र मिलकर दुनिया के बेहद शक्तिशाली और संपन्न इलाके बन सकते हैं। सिर्फ अगले पांच वर्षों में लगभग इन डेढ़ अरब लोगों की गरीबी दूर हो सकती है। 21 वीं सदी को अगर एशिया की सदी बनना है तो इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
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