जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कन्हैया कुमार और उनके साथियों पर सरकार ने देशद्रोह का मुकदमा दायर कर दिया है और ऐसा ही एक मुकदमा असम के एक विद्वान हीरेन गोहैन, अखिल गोगोई और पत्रकार मंजीत मंहत पर पुलिस ने दायर किया है। इन दोनों मुकदमों में आरोप लगभग एक-जैसे हैं। एक में कश्मीर की आजादी और भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए गए थे और दूसरे में नागरिकता विधेयक का विरोध करते हुए असम के अलगाव और संप्रभुता की मांग की गई थी।
जाहिर है कि ये दोनों मांगें ही नहीं, इनका विचार तक भर्त्सना के योग्य है। ऐसे विचार भारत की एकता और अखंडता के विरुद्ध हैं। इन विचारों का जितना जबर्दस्त खंडन किया जा सके, जरुर किया जाना चाहिए लेकिन यह मेरी समझ में नहीं आता कि इस तरह के विचार रखने वालों को आप देशद्रोही कैसे कह सकते हैं ? और उन पर मुकदमा चलाने की तुक क्या है? भारतीय पेनल कोड की धारा 124 (ए) के अनुसार यदि भारत की एकता या व्यवस्था को खंडित करने के लिए कोई हिंसा का सहारा ले तो उस पर देशद्रोह का मुकदमा जरुर चलाया जा सकता है।
इस धारा का इस्तेमाल कई राज्यों ने सिखिस्तान और नक्सल-समर्थकों पर भी किया है। विधि आयोग ने अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इस धारा को अप्रासंगिक बताया है और उसने इसे सुधारने का सुझाव भी दिया है। हमारी सरकारें इतनी छुई-मुई हो गई हैं कि वे किसी पर भी देशद्रोह का बिल्ला चिपका देती हैं और फिर अदालत में जाकर मुंह की खाती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दो-तीन प्रसिद्ध मुकदमों में इस धारा 124 (ए) के दुरुपयोग को रोकने का फैसला भी दिया है। हमारे नेताओं की तर्क-शक्ति प्रायः कमजोर होती है। वरना ऐसे अतिवादी विचारों के विरुद्ध वे अपने तर्क-तीरों की वर्षा करके उनको ध्वस्त कर सकते हैं।
आपातकाल थोपने के पहले 1975 में जयप्रकाश नारायण को भी देशद्रोही कहने की हिमाकत की गई थी। 2014 में पाकिस्तान के आतंकवादी हाफिज सईद का इंटरव्यू करने पर कुछ मूर्ख नेताओं और पत्रकारों ने मुझे भी देशद्रोही कह डाला था। अगर जयप्रकाश नारायण और मेरे-जैसे लोग देशद्रोही हो सकते हैं तो बताइए भारत का कौन प्रधानमंत्री है, जिसे आप देशभक्त कह सकते हैं ?
और फिर जो लोग कभी किसी भाषण में कुछ राष्ट्रविरोधी बातें कह देते हैं, हमें उनके ‘कारण’ में उतरना चाहिए। वे लोग क्रोध में आकर या जोश में आकर अपना संतुलन खो बैठते हैं ? वे अपनी छवि खराब कर लेते हैं। उन्हें करने दीजिए। विचारों की स्वतंत्रता का अर्थ यही है। ऐसे लोग उनका गुस्सा ठंडा होने पर फिर हमारे साथ लौट आते हैं। क्या आपको पंजाब के मास्टर तारासिंह, मिजोरम के ललदेंगा और तमिलनाडु के अन्नादुरई के किस्से याद नहीं हैं ?
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