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डाॅ. वेदप्रताप वैदिक

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति

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प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनितिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता
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बाइडन की नीति भारत के प्रति कैसी होगी ?

बाइडन की नीति भारत के प्रति कैसी होगी ?

November 9, 2020 By Dr. Vaidik Leave a Comment

अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में भारत सरकार ने किसी एक उम्मीदवार का पक्ष नहीं लिया और अपनी तटस्थता बनाए रखी, यह बहुत ही बुद्धिमानीभरा कदम था। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रक्षा और विदेश मंत्री ने इस चुनाव-अभियान के दौरान भारत आकर एक महत्वपूर्ण सामरिक समझौता भी किया लेकिन भारत के किसी भी नेता ने ऐसा कुछ नहीं कहा, जिससे भारत किसी एक पक्ष की तरफ झुकता हुआ दिखाई पड़े। ह्यूस्टन और अहमदाबाद में डोनाल्ड ट्रंप के लिए नरेंद्र मोदी ने जो पलक-पांवड़े बिछाए थे, वे अब इतिहास के विषय हो गए हैं।

डेमोक्रेटिक पार्टी के जोसेफ बाइडन राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए हैं। अब सभी भारतीयों के मन में यह जानने की उत्सुकता है कि बाइडन का रवैया भारत के प्रति कैसा होगा ? क्या मोदी और ट्रंप के व्यक्तिगत समीकरणों का बाइडन पर उल्टा असर पड़ेगा ? अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नेताओं के व्यक्तिगत समीकरणों का प्रभाव अवश्य होता है लेकिन उनके राष्ट्रहित सर्वोपरि होते हैं। क्या हम भूल गए कि राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोदी ‘बराक, बराक’ कहकर बुलाते थे और जब उनकी कुर्सी में ट्रंप बैठ गए तो उन्होंने उनके साथ परम सखा या गुरु-शिष्य के संबंध बना लिये।

विदेशी नेताओं के साथ व्यक्तिगत घनिष्टता बनाने की कला में मोदी बेजोड़ हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि बाइडन के साथ वे और भी बेहतर संबंध बना लें। ट्रंप के मुकाबले बाइडन अधिक सुसंस्कृत, मर्यादित और अनुभवी हैं। वे ओबामा के उप-राष्ट्रपति की तौर पर भारत-यात्रा कर चुके हैं। मुंबई में उनके एक नामराशि परिवार के साथ भी उनका आनुवांशिक संबंध रहा है। हमारे विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर अमेरिका में राजदूत की तौर पर बाइडन और उनकी उपराष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस को जानते रहे हैं।

ट्रंप और बाइडन में सबसे बड़ा अंतर यह है कि विदेश नीति के मामले में ट्रंप बिल्कुल नौसिखिए थे जबकि बाइडन पिछले लगभग 50 साल में या तो अमेरिका के सीनेटर या उप-राष्ट्रपति रहे हैं। वे सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे विदेशी मामलों में ट्रंप की तरह पल में माशा और पल में तोला नहीं होंगे। वे जो भी कदम उठाएंगे, सोच-समझकर उठाएंगे।

इसीलिए आशा की जाती है कि बाइडन-प्रशासन में भारत-अमेरिका संबंध प्रगाढ़ ही होंगे। इस प्रगाढ़ता को बढ़ाने में दो अन्य कारणों का भी योगदान होगा। पहला तो यह कि कमला हैरिस उनकी उप-राष्ट्रपति रहेंगी। कमलाजी भारतीय मूल की तो हैं ही, उनकी मां भारतीय थीं तो पिता अश्वेत अफ्रीकी मूल के थे। बाइडन को इन दोनों समुदायों के वोट दिलवाने में कमला हैरिस का योगदान भी रहा है। दूसरा, कमला के पति यहूदी हैं और वे उच्च कोटि की वकील और सीनेटर भी रही हैं। इसीलिए बाइडन-प्रशासन के नीति-निर्माण में उनकी भागीदारी किसी भी उप-राष्ट्रपति से ज्यादा ही होगी। वैसे भी वे अमेरिका की पहली महिला और अश्वेत उप-राष्ट्रपति हैं। वे राष्ट्रपति पद की भावी उम्मीदवार भी मानी जा रही हैं।

यह ठीक है कि डेमोक्रेटिक पार्टी का रवैया पिछले चार वर्षों में हर मुद्दे पर भारत के अनुकूल नहीं रहा है। कुछ मुद्दों पर बाइडन और कमला ने भारत की नीति का विरोध किया है। जैसे कश्मीर के सवाल पर उनकी मान्यता यह रही है कि मोदी सरकार वहां मानव अधिकारों की रक्षा ठीक तरह से नहीं कर रही है। उन्होंने धारा 370 हटाने का भी विरोध किया था। नागरिकता संशोधन कानून में मजहबी भेदभाव का भी डेमोक्रेटिक पार्टी ने विरोध किया था। उन्हें यह बात भी बहुत नागवार गुजरी थी कि हमारे विदेश मंत्री जयशंकर ने उस अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल से वाशिंगटन में मिलने से मना कर दिया था, जिसमें डेमोक्रेट सांसद प्रमिला जयपाल एक सदस्य थीं। इन कुछ मुद्दों के आधार पर कहा जा रहा है कि दोनों सरकारों में कुछ तनाव बना रह सकता है लेकिन मेरा प्रश्न यह है कि हमने यह क्यों नहीं सोचा कि इन सब मुद्दों पर ट्रंप-प्रशासन हमारा साफ-साफ समर्थन कर रहा था तो ट्रंप का विरोधी डेमोक्रेटिक दल हमारा विरोध करे, यह स्वाभाविक है। लेकिन अब डेमोक्रेट सत्ता में होंगे तो उनकी प्रतिक्रिया संतुलित होने की संभावना है। यों भी मैं मानता हूं कि भारत के आतंरिक मामलों में टांग अड़ाने का अधिकार किसी भी देश को नहीं है।

वैसे हम यह कैसे भूल सकते हैं कि बुश—प्रशासन और ओबामा—प्रशासन के दौरान बाइडन ने ही भारत के साथ परमाणु—समझौते की पहल की थी। सीनेटर और उप—राष्ट्रपति की हैसियत में कई बार वे भारत—समर्थक कदम उठा चुके हैं। ओबामा-प्रशासन के दौरान पेरिस के जलवायु समझौते को संपन्न करवाने और भारत का सक्रिय समर्थन लेने में बाइडन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उस समझौते के द्वारा दुनिया के वातावरण को प्रदूषण-मुक्त करने के लिए जो 100 बिलियन डाॅलर खर्च होने थे, उससे भारत को काफी मदद मिलती लेकिन ट्रंप ने अपनी अकड़ में आकर उसे रद्द कर दिया। अब बाइडन उसे अवश्य ही पुनर्जीवित करेंगे। भारत का उन्हें सक्रिय सहयोग मिलेगा।

ट्रंप ने बेरोजगार अमेरिकी वोटरों को पटाने के लिए भारतीयों के कार्य-वीजा पर रोक लगाई थी, उसे भी बाइडन-प्रशासन ढीला करेगा और व्यापारिक मामलों में जो रियायतें भारत को पहले से मिल रही थीं, उन्हें वह फिर से शुरु करेगा। चीन के साथ उसका तनाव बना रहेगा लेकिन ऐसा लगता है कि वह ट्रंप की तरह बौखलाएगा नहीं। वह चाहेगा कि चीन के मामले में भारत उसका साथ दे लेकिन वह भारत को अपना मोहरा बनाने की कोशिश नहीं करेगा।अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी के लिए ट्रंप की तरह बाइडन-प्रशासन भी उद्यत रहेगा। वह भारत का सक्रिय सहयोग लेगा। पाकिस्तान के प्रति उसे मजबूरन नरम रहना पड़ेगा लेकिन वह आतंकवाद का विरोध डटकर करेगा। ईरान के सवाल पर वह ट्रंप-नीति को शीर्षासन जरुर कराएगा, क्योंकि ईरान के परमाणु समझौते को संपन्न कराने में ओबामा की अहम भूमिका थी। भारत के लिए यह लाभदायक होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के बारे में ट्रंप-नीति को बदलने का फायदा भी भारत को मिलेगा।

ऐसा लगता है कि बाइडन-कमला प्रशासन के दौरान भारत और अमेरिका के संबंध ऐसे मुकाम पर पहुंचेंगे, जिस पर पहुंचकर ‘स्वाभाविक मित्र’ की उपाधि सच्चे अर्थों में चरितार्थ हो जाएगी।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

 

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