मुझे खुशी है कि जम्मू-कश्मीर में ज्यों-ज्यों ठंड बढ़ रही है, बर्फ पिघलनी शुरु हो गई है। जैसी कि मुझे आशा थी, संयुक्तराष्ट्र महासभा के भारत-पाक दंगल के बाद कश्मीर के हालात सुधरेंगे, अब वही हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ. फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला से उनकी पार्टी के कई नेताओं की भेंट हुई। फारुक अब्दुल्ला काफी खुश नजर आए। अब अन्य कश्मीरी नेताओं से भी उनकी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं के रास्ते खुलते जा रहे हैं। भेंट करनेवाले पार्टी-नेताओं ने यह तो नहीं बताया कि कश्मीर के पूर्ण-विलय की प्रक्रिया पर उनकी प्रतिक्रिया क्या है ? वे धारा 370 और 35 ए के बारे में मौन साधे रहे लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कह दिया कि जब तक उनके नेताओं को रिहा नहीं किया जाएगा, वे अक्तूबर में होनेवाले प्रखंड विकास समिति के चुनावों में भाग नहीं लेंगे। यदि ये प्रमुख कश्मीरी पार्टियां इन स्थानीय चुनावों का बहिष्कार करेंगी तो कश्मीर में नया नेतृत्व उभरेगा। केंद्र सरकार शायद इस बात को पसंद करेगी लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कश्मीर के ये प्रमुख नेतागण अलगाववादियों से अपनी नजदीकी शायद बढ़ा लें। ऐसे में राज्यपाल सत्यपाल मलिक और गृहमंत्री अमित शाह को अपने फैसले काफी दूरंदेशी के आधार पर करने होंगे। इस समय कश्मीर से जो ताजा खबरें आ रही हैं, उससे तो ऐसा अंदाज लगता है कि हालात सुधरते जा रहे हैं। यह कितनी बड़ी बात है कि इतने तनाव की स्थिति में भी हिंदुओं के त्यौहार नवरात्रि को हिंदू और मुसलमानों ने साथ-साथ मनाया। मंदिरों में सैकड़ों हिंदू और मुसलमान कश्मीरियों ने साथ-साथ भोजन किया। बाजारों में भी खरीददारों की भीड़ काफी बड़ी रहीं। उधर पाकिस्तान में कश्मीर को लेकर लोगों की परेशानी बढ़ती जा रही है। प्र.मं. इमरान खान की अमेरिका और सउदी अरब की यात्रा का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। अब वे तीसरी बार चीन जा रहे हैं। पाकिस्तान की फौज भी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। ‘पाकिस्तानी कश्मीर’ के लोग भारत-पाक नियंत्रण रेखा को लांघना चाहते थे और अपना गुस्सा प्रकट करना चाहते थे लेकिन इमरान ने उनको भी हतोत्साहित किया। इन सब घटनाओं को भारत के कश्मीरी चुपचाप देख रहे हैं। जरा सोचिए, उनके मन पर क्या असर हो रहा है ? उन्हें पता चल गया है कि भारत सरकार ने 5 अगस्त को कश्मीर में जो कुछ किया है, उसे भारत की आम जनता का जबर्दस्त समर्थन तो है ही, दुनिया के देश भी उसमें कोई टांग नहीं अड़ाना चाहते। पाकिस्तान सिर्फ जबानी जमा-खर्च कर रहा है। खानापूरी कर रहा है। सत्तारुढ़ ताकतों को अपना मुंह दिखाने के लिए यह सब नौटंकी करनी जरुरी है। भारत भी पाकिस्तान की इस मजबूरी को समझता है। इसीलिए वह तेज जुबान चलाने से बच रहा है।
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