जम्मू-कश्मीर के दो मंत्रियों के इस्तीफों ने भाजपा की छवि खराब होने से बचा ली है। इन मंत्रियों पर यह आरोप था कि इन्होंने उस हिंदू एकता मंच की सभा में भाग लिया था, जिसने बलात्कारी पुलिस अफसरों को बचाने की कोशिश की थी। इन पुलिसकर्मियों ने आसिफा नामक एक बकरवाल मुस्लिम लड़की (उम्र 8 साल) के साथ पहले बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी थी।
इस जघन्य अपराध पर पर्दा डालने के लिए इसे सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा था। इस कुकृत्य की निंदा सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, सारे देश में हो रही थी। सिर्फ भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार ही तनावग्रस्त नहीं हो गई थी बल्कि केंद्र की मोदी सरकार पर भी उंगलियां उठने लगी थीं। इस घटना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा होने लगी थी। मोदी का मौन मनमोहनसिंह के मौन से भी ज्यादा दहाड़ें मार रहा था। यदि भाजपा इस मामले पर अकर्म की मुद्रा में कुछ दिन और रह जाती तो श्रीनगर में महबूबा मुफ्ती की सरकार का चलना मुश्किल हो जाता लेकिन भाजपा ने यह बहुत ही सराहनीय फैसला किया कि अपने दोनों मंत्रियों से इस्तीफा मांग लिया। मंत्रियों ने अपनी सफाई में यही कहा कि वे अज्ञानतावश उस कार्यक्रम में चल गए थे। उन्होंने अब मांग की है कि उन अपराधियों को मृत्युदंड दिया जाए।
लगभग इसी तरह की घटना पर उत्तरप्रदेश के उस विधायक का इस्तीफा अभी तक नहीं मांगा गया जबकि वहां सरकार गिरने का डर नहीं है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भाजपा की इस पहल पर हृदय से धन्यवाद दिया है और उनकी पार्टी ने इस बात पर गर्व प्रकट किया है कि पूरे भारत ने आसिफा को अपनी बेटी माना है। इस मौके पर महबूबा ने यह भी कहा है कि कश्मीर के नौजवानों का असंतोष और गुस्सा चरम सीमा पर है। यदि उसका संतोषजनक समाधान शीघ्र नहीं किया गया तो जम्मू-कश्मीर में अराजकता फैल सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि सरकारों के पास अब कश्मीरियों की समस्याएं हल करने के रास्ते चुक गए हैं। यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है।
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