महाथिर मोहम्मद मलेशिया के सातवें प्रधानमंत्री नियुक्त हुए हैं। वे चौथे प्रधानमंत्री के तौर पर 22 साल राज कर चुके हैं, 1981 से 2003 तक ! उसके पहले वे उप-प्रधानमंत्री और मंत्री भी रह चुके हैं। उनके सातवें प्रधानमंत्री बनने पर मुझे उतना आश्चर्य नहीं है, जितना इस बात पर कि उनकी आयु 92 वर्ष है। 92 वर्ष के किसी भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बारे में मैंने कभी न तो सुना, न पढ़ा, न देखा।
हां, ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ जरुर 92 साल की हैं। उनके अलावा भी कई बादशाहों और सम्राटों से मुझे मिलने का मौका मिला, जो 90 के पार थे या अपने पद से हट चुके थे। जैसे अफगानिस्तान के बादशाह जाहिर शाह, काबुल में अपने ही महल कारवे-गुलिस्तान में रहते थे लेकिन उन्होंने 1973 में ही सरदार दाऊद ने अपदस्थ कर दिया था। जर्मनी के चांसलर कोनराड आडनावर भी 91 साल के हुए लेकिन उन्हें काफी पहले ही सत्ता छोड़नी पड़ी थी। यह बात हमारे यहां मोरारजी देसाई पर लागू होती है लेकिन गजब हैं, महाथिर मोहम्मद जो 92 साल की आयु में संसद का चुनाव लड़कर फिर प्रधानमंत्री बने हैं। उन्होंने 15 साल पहले राजनीति से संन्यास ले लिया था लेकिन उनके दो चेले जब प्रधानमंत्री बने और उनके नाम कई बड़ी धांधलियों से जुड़ गए या अकर्मण्यता से तो मलेशिया की जनता ने अपने 92 वर्षीय शक्तिशाली पूर्व नेता को वापस सत्तारुढ़ कर दिया।
महाथिर के राज में मलेशिया दुनिया के सबसे तेज गति से विकास करने वाले राष्ट्रों में गिना जाने लगा था। उसे ‘एशियन टाइगर’ कहा जाता था। महाथिर अपने समय के एकछत्र नेता बन गए थे। न्यायपालिका और संसद उनके आगे थर्राती थी। मलेशिया के बादशाहों की भी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि वे महाथिर के मामलों में हस्तक्षेप करें। महाथिर ने दुनिया के यहूदियों को ललकारा था। उम्मीद है कि अपने इस आखिरी दौर में वे अधिक लोकतांत्रिक और सहिष्णु होंगे। वे लौटे हैं तो भारत के आडवाणीजी जैसे नेताओं को भी कोई आशा की किरण जरुर दिखी होगी।
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