भारत के लगभग सभी टीवी चैनलों और अखबारों में यह खबर खूब छपी है कि मायावती के भाई की 400 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली गई है। दिल्ली के पास नोएडा इलाके में उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंदकुमार की यह सात एकड़ जमीन थी। यह जमीन आनंद ने उस समय कब्जाई थी, जब उसकी बड़ी बहन उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री थी। यह जमीन बेनामी है। आनंद और उसकी पत्नी विचित्रा इस मंहगी जमीन पर एक पांच सितारा होटल और कई आलीशान इमारतें बनाने की तैयारी कर रहे थे। आनंद के पास जाहिरा तौर पर इस समय 1350 करोड़ रु. की संपत्ति है। उसने कई फर्जी कंपनियां बना रखी हैं। यह वही आनंदकुमार है, जो 1996 में इसी नोएडा-प्रशासन में 7-8 सौ रु. माहवार की नौकरी करता था लेकिन बहनजी के राज में वह अरबपति बन गया।
मायावती ने अपने इसी भाई को बहुजन समाज पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया है। जाहिर है कि आनंद पर लगे आरोप अदालत में सिद्ध हो गए तो उसे कम से कम सात साल की सजा मिलेगी और कुल संपत्ति का 25 प्रतिशत याने अरबों रु. जुर्माना भी भरना पड़ेगा। केंद्र की मोदी सरकार और उप्र की योगी सरकार को बधाई कि उसने लिहाजदारी नहीं दिखाई और नेताजी को कठघरे में खड़ा कर दिया लेकिन मैं पूछता हूं कि क्या देश में मायावती एक ही है और आनंद एक ही है ? सरकार ने सिर्फ आनंद को पकड़ा, मायावती कैसे छूट गई ? आपने पत्ते तोड़ लिये लेकिन जड़ तो हरी की हरी है। आनंद ने यदि यह भ्रष्टाचार किया है तो किसके दम पर किया है ? देश में सैकड़ों मायावतियां हैं और हजारों आनंद हैं ? क्या देश में एक भी नेता ऐसा है, जो कह सके कि मेरा दामन साफ है ? मायावती का तो कोई परिवार नहीं है। कहा जाता है कि लोग अपने बाल-बच्चों के लिए भ्रष्टाचार करते हैं।
मायावती का संदेश है कि अब देश बिना परिवारवाले नेताओं से भी सावधान रहे। नेतागीरी इस देश में काजल की कोठरी बन गई है। किसी नेता का दामन साफ रह ही नहीं सकता। यदि मोदी और योगी भारत की राजनीति शुद्धिकरण करना चाहते हैं तो उन्हें चाहिए कि वे सभी दलों के प्रमुख नेताओं और उनके रिश्तेदारों की खुली जांच करवाएं और उनकी सारी संपत्तियां जब्त करवाएं। भाजपा को भी न छोड़ें। सरकार के पास इतना धन इकट्ठा हो जाएगा कि उसे आयकर वसूलने की जरुरत नहीं रहेगी।
Harendra says
आपके इस आर्टिकल में आपने कहा जिनके परिवार नहीं वे भी भ्रष्ट हैं भाजपा भी धुली नहीं फिर नरेंद्र मोदी का भी परिवार नहीं आपके अनुसार भ्रष्ट वे भी है तो ये साफ साफ कहने में आप इनको क्यों छोड़ रहे आखिर आप जैसे अनुभवी सही को सही कहने में खुद की जबान लड़खड़ाते क्यों महसूस करते हैं यही ना कि जमावट इतनी अच्छी है कि राज खुले नहीं है और आप, शर्मा जैसे पत्रकारों से खोजी पत्रकारिता की उम्मीद करना व्यर्थ है शासकीय संपत्ति को निजी हाथों में सोंपना भी यही है आखिर निजी संस्थान इतने ही सफल हे तो उन्हें खुले मार्केट में आगे बढ़ने दो , संपत्ति जमीन, पूंजी, बाजार , जमाजमाया सब कुछ शासन का अब ये ओनेपोने दाम पर निजी का वो चलायेंगे . जैसे रेल्वे ? निजी संस्थान जमीन खरीदने से लेकर चलाने लायक बनाने तक अपने बूते करें कोन रोकता है , ऐसे करो निजी करण । चुनाव जीतने में लिए सहयोग का का इस तरह चुकान उम्दा वयापारी व व्यापारी सोच का परिचायक नहीं है