गोरखपुर और फूलपुर में अनहोनी हो गई। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि उप्र में पहले लोकसभा और फिर विधानसभा के चुनाव में इतने प्रचंड बहुमत से जीतने वाली भाजपा इन दोनों में इतनी बुरी तरह से पिट जाएगी। यह पिटाई तब हुई है, जबकि लखनऊ में भाजपा सरकार को आये अभी साल भर भी नहीं हुआ है। और पिटाई कहां हुई है? उन सीटों पर हुई है, जो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने खाली की थीं।
भाजपा के लिए इससे बड़ा धक्का आज के दिन क्या हो सकता है? यह धक्का योगी को तो है, लेकिन उससे बड़ा मोदी को है। क्योंकि ये सीटें विधानसभा की नहीं, संसद की हैं। मोदी की दो सीटें घट गईं। अब लोग सोचने लगे हैं कि क्या अब भी मोदी की हवा चल रही है ? चल नहीं रही है, निकल रही है। गुजरात के चुनावों ने ही गाड़ी पंचर कर दी थी लेकिन त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के नतीजों ने गुजरात के घावों पर थोड़ा मरहम लगा दिया था।
राजस्थान और मप्र के उपचुनावों ने हल्का-सा धक्का दिया था। वह प्रांतीय धक्का था लेकिन उप्र के इन दो उप-चुनावों ने अखिल भारतीय धक्का लगाया है। इससे यह सिद्ध हुआ है कि किसी प्रांत के मुख्य विरोधी दल एक हुए नहीं कि भाजपा डूब गई। अकेला उत्तरप्रदेश चाहे तो वही मोदी को विदा करने में काफी है। अखिलेश यादव ने जिस चतुराई से काम किया है, वह उन्हें 2019 में काफी बड़ी भूमिका में खड़ी कर सकती है।
उप्र की हार के साथ-साथ सोनिया गांधी के प्रीति-भोज की खबर ने भी लहरें उठाई हैं। देश की लगभग 20 विरोधी पार्टियों के नेता इस डिनर में शामिल हुए। विरोधियों का इतना बड़ा जमावड़ा चार साल में पहली बार हुआ है। संसद के दोनों सदनों को उन्होंने पहले ही ठप्प कर रखा है। सोनिया के प्रीति-भोज में कुछ प्रांतों के ऐसे नेता भी आमंत्रित थे, जिनकी पार्टियां एक-दूसरे की कट्टर विरोधी हैं। यदि ये सब एक हो गईं तो मोदी-पार्टी का क्या होगा ? नौटंकियों की नाव में बैठकर चुनाव की वैतरणी कैसे पार होगी ?
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