प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को मिली हत्या की धमकियां बेहद चिंता का विषय है। दिल्ली, मुंबई और नागपुर से पकड़े गए नक्सलवादियों के दस्तावेजों और चिट्ठियों से ऐसे संकेत मिले हैं कि वे लोग देश में एक और राजीव गांधी- कांड करना चाहते हैं। जनवरी में हुए भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में पकड़े गए ये माओवादी कोई अनपढ़ और जंगली लोग नहीं हैं। ये पढ़े-लिखे और खाए-धाए लोग हैं। ये अपने आप को बुद्धिजीवी और विचारशील कहते हैं। मैं इनसे पूछता हूं कि क्या वे राजीव गांधी हत्याकांड को दोहराने के दुष्परिणाम की कल्पना नहीं कर सकते ? यदि मोदी को उनकी प्रचार-यात्रा के दौरान उन्होंने कहीं मारने का दुस्साहस कर दिया तो क्या वे यह नहीं जानते कि देश के एक-एक माओवादी-नक्सलवादी को भारत की जनता मौत के घाट उतार देगी ?
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हजारों निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतरना पड़ा था। वे सिख तो निर्दोष थे लेकिन जो भी अपने आप को माओवादी कहता है, वह हिंसक है या हिंसा का समर्थक है। ऐसे लोगों को निर्मूल करने में भारत की फौज और पुलिस के अलावा आम जनता को भी कौन मना करेगा ? माओवादी अपने सिद्धांतों और विचारों को अहिंसक ढंग से प्रचार करें। उनके इस अधिकार की रक्षा हम सब नागरिक करेंगे लेकिन किसी बड़े नेता पर हाथ डालकर वे उन आदर्शों को भी दफनाने की तैयारी कर रहे हैं, जिनके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया हुआ है। गिरफ्तार माओवादियों के वकीलों ने अदालत में सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों को फर्जी बताया है। उनका तर्क यह है कि गिरफ्तारशुदा लोगों के घरों पर छापा पड़े महिने भर से ज्यादा हो गया। यदि उनमें इतनी खतरनाक सामग्री थी तो पुलिस ने उन्हें उसी वक्त गिरफ्तार क्यों नहीं किया और सारे खतरों को उजागर क्यों नहीं किया ? अब वह जो कुछ कर रही है, वह सरकार के इशारे पर कर रही है। कांग्रेस के नेता संजय निरुपम का कहना है कि जब भी मोदी के पांव डगमगाने लगते हैं, वे इसी तरह की फर्जी कहानियों का जाल बिछा देते हैं। केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा है कि जिन पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनका माओवादियों से कोई संबंध नहीं है। वे दलित नेता हैं। आठवले के बयान ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है। यदि रिपब्लिकन पार्टी के नेता आठवले सही पाए गए तो यह मोदी और फड़नवीस सरकार के लिए बड़ा धक्का होगा।
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