यदि किसी देश की अदालत उस देश के प्रधानमंत्री और उसके रिश्तेदारों को भ्रष्टाचार के आरोप में पहले बर्खास्त कर दे और फिर लंबी सजा सुना दे तो उस अदालत के साहस की कौन तारीफ नहीं करेगा लेकिन नवाज़ शरीफ को 10 साल, उनकी बेटी मरियम को 7 साल और उनके दामाद सफदर को जो सजा पाकिस्तान के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो ने सुनाई है उसे उचित मानने के पहले बहुत-से शक पैदा होते हैं। पहली बात तो यह है कि आम चुनाव के तीन हफ्ते पहले यह सजा क्यों सुनाई गई ? अभी-अभी कहा गया था कि वह ब्यूरो चुनाव के पहले सजा इसलिए नहीं सुनाएगा कि किसी भी उम्मीदवार को वह परेशानी में नहीं डालना चाहता। इस घोषणा के कारण अब मरियम और सफदर चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। नवाज़ को तीन-चार माह पहले ही सजा सुनाई जा सकती थी। लेकिन उसे जान-बूझकर टाला गया ताकि चुनाव के वक्त उसे भुनाया जा सके। कहीं इसका असर एकदम उल्टा तो नहीं होगा?
नवाज़ की पत्नी कुलसुम मरणासन्न हैं। इस मौके पर कहीं यह घोषणा करेला और नीम चढ़ा साबित न हो जाए ? यह घोषणा यह भी सिद्ध करती है कि फौज मियां नवाज़ के साथ अपने पुराने बदले निकाल रही है। वह पाकिस्तान में अपना कठपुतली राज लाना चाहती है। ब्यूरो और अदालतें उसी के इशारे पर नाच रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि नवाज़ ने भ्रष्टाचार किया ही नहीं होगा ? पाकिस्तान में क्या एक भी पार्टी नेता छाती ठोककर कह सकता है कि वह भ्रष्टाचार नहीं करता ? राजनीति और भ्रष्टाचार का चोली-दामन का साथ है। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ब्यूरो ने सिर्फ नवाज को ही क्यों पकड़ा ? वह आसिफ जरदारी और इमरान खान को भी क्यों नहीं पकड़ता ? न्याय तो सबके लिए एक-जैसा होना चाहिए।
पाकिस्तान की फौज जो कुछ करवा रही है, वह महाभ्रष्टाचार है। अब वह खुद तख्ता-पलट नहीं करती। अपना काम वह अब अदालतों से करवाती है। पाकिस्तान का जैसा भी अधमरा लोकतंत्र पहले से है, अब उसे कब्र में लिटाने की तैयारी हो रही है। इसका इलाज सिर्फ पाकिस्तान की जनता के हाथों में है। यदि वह नवाज की पार्टी को प्रचंड बहुमत से जिता देगी तो फौज की दखलंदाजी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।
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