लंदन से लौटने पर मियां नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम की गिरफ्तारी ने पाकिस्तान के राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। नवाज़ चाहते तो लंदन में ही टिके रहते। उनकी पत्नी कुलसुम मरणासन्न हैं ही। लेकिन नवाज ने 25 जुलाई के 12 दिन पहले जेल जाना तय किया, यह निर्णय ही बताता है कि उनका गणित क्या रहा होगा। इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी ने जैसा 1981 में उनकी वापसी तय कर दी थी, कहीं नवाज के साथ भी वैसा न हो जाए !
नवाज को भरोसा है कि उनके पक्ष में जन-सहानुभूति की बाढ़ उमड़ पड़ेगी और वे प्रचंड बहुमत से जीतेंगे। लंदन से जारी किए गए उनके बयान में भी इशारा साफ है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान की जनता के लिए वह ऐतिहासिक अवसर आ खड़ा हुआ है याने यह चुनाव अभी तक हुए सभी चुनावों से अलग है। यदि पाकिस्तान की जनता इस बार नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग को चुन लेगी तो वह पाकिस्तान की राजनीति से फौज के दबदबे को हमेशा के लिए खत्म कर देगी लेकिन जहां तक फौज का सवाल है, उसने पर्दे के पीछे से पूरे मंच को काबू किया हुआ है। अदालत ही नहीं, अन्य नेतागण भी उसके इशारे पर नाच रहे हैं। नवाज के भाई और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार शाहबाज शरीफ भी अपनी पत्रकार-परिषद में फौज के बारे में मौन थे। फौज के इशारे पर ही लगभग डेढ़ सौ उम्मीदवार खड़े कर दिए गए हैं।
ये निर्दलीय हैं और इनका चुनाव—चिन्ह जीप है। इनमें से ज्यादातर नवाज की पार्टी के दल-बदलू हैं। इमरान खान और फौज की सांठ-गांठ सबको पता है। यदि नवाज़ की लीग किसी तरह जीत गई तो भी उस सरकार को फौज चलने नहीं देगी ओर यदि इमरान खान की सरकार बन गई तो पंजाब में हिंसा का तंबू तन जाएगा। पख्तूनख्वाह और बलूचिस्तान में पिछले दो दिन में लगभग दो सौ लोग मारे गए हैं। आने वाले कुछ माह पाकिस्तान के लिए बेहद संकट भरे होंगे। यदि लहर नवाज के पक्ष में उमड़ती दिखी तो चुनाव टल भी सकते हैं। उनकी जान को भी खतरा हो सकता है। मजहब के नकली आधार और भारत से दुश्मनी के आधार पर बना हमारे ही लोगों का यह पड़ौसी राष्ट्र हमसे कितना अलग है और किस बुरी तरह खुद को ही नोंचता रहता है।
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