प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एप’ के जरिए भारत की स्त्रियों से सीधा संवाद कायम किया और डींग मारी कि हमारी सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए क्या-क्या किया है। थोड़ा-बहुत उन्होंने किया जरुर है लेकिन ऐसा लगता है कि भारत की महिलाओं के रोजगार की स्थिति के बारे में उन्हें सच्चाई का कुछ भी पता नहीं है। भारत में महिलाओं को इतना कम रोजगार मिला हुआ है कि दुनिया के 131 देशों में उसका स्थान 121 वां है याने हम पायदान पर बैठे हुए हैं लेकिन हम मानकर चल रहे हैं कि हम सिंहासन पर बैठे हैं। भारत से गया-बीता देश सउदी अरब है, जहां औरतों को नौकरी पर जाने ही नहीं दिया जाता। भारत की आर्थिक स्थिति में महिलाओं का योगदान सिर्फ 16 प्रतिशत है जबकि चीन में इससे दुगुना है और पश्चिमी देशों में इससे भी ज्यादा है। 2005 में महिला रोजगार 35 प्रतिशत था। वह घटकर 26 प्रतिशत रह गया है।
यह तब हुआ है जबकि रोजगार के लायक महिलाओं की संख्या 25 करोड़ से बढ़कर अब लगभग 50 करोड़ हो गई है। यदि ये महिलाएं रोजगार करने लगे तो भारत की समृद्धि सवाई-डेढ़ी हो जाए लेकिन हमारे देश में होता यह है कि जितने नए रोजगार निकलते हैं, उनमें से 90 प्रतिशत आदमियों के पास चले जाते हैं। इसके अलावा मध्य और संपन्न वर्ग के लोग अपनी महिलाओं से काम नहीं करवाना चाहते। इतना ही नहीं, हमारे यहां लड़कियों को शिक्षित करना भी जरुरी नहीं माना जाता। उनके जीवन का सबसे मुख्य लक्ष्य उनकी शादी ही होता है। शादी के लिए जितना जरुरी हो, उतना पढ़ा देना काफी माना जाता है।
बांग्लादेश हमसे कहीं आगे है। वहां का वस्त्र-उद्योग महिलाओं के भरोसे ही चल रहा है। उसके कपड़ा कारखानों में औरत-मजदूरिनों की संख्या आधे से भी ज्यादा है। चीन की इतनी आर्थिक उन्नति का एक रहस्य महिला रोजगार में भी छिपा हुआ है। भारत में इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी ने– दो सबसे ताकतवर महिलाओं ने लगभग 25 साल राज किया लेकिन वे भी भारतीय महिलाओं को न तो राज-काज में, न समाज में, न रोजगार में, न शिक्षा में और न ही रुतबे में आगे बढ़ा सकीं ? तो बेचारे नरेंद्र मोदी से क्या उम्मीद करें?
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