पिछले साल भर से ऐसा लग रहा था कि हमारे नौसिखिए नेता चीन के आगे पसर गए हैं लेकिन अब ताजा खबरों से ऐसा अंदाज लगता है कि जब जागो, तभी सबेरा ! अब खुद भारत सरकार अरुणाचल प्रदेश के भारत-चीन सीमांत पर न केवल जमकर फौजी तैनाती कर रही है अपितु उसका प्रचार भी कर रही है। इस प्रचार से चीन नाराज़ होता हो तो हो जाए। यही सही दृष्टि है। राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
अब तक यह होता रहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग को अहमदाबाद में झूले पर झुलाया और शी ने मोदी को सारे दक्षिण एशियाई देशों में झूले पर लटका दिया। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों पर रोक लगवाने पर चीन ने अड़गा लगा दिया, रोहिंग्या मामले में नरेंद्र मोदी बगलें झांकते रहे और शी ने अपने विदेश मंत्री वांग को बांग्लादेश और बर्मा भेजकर उनमें समझौता करवा दिया, मालदीव के अब्दुल्ला यामीन ने भारत की धमकियां को गीदड़भभकी सिद्ध कर दिया और भारत समर्थकों को अंदर कर दिया, श्रीलंका चीन से इतना सट गया कि भारत के कान खड़े हो गए।
इसी तरह नेपाल में चीनपरस्त वामपंथियों का बोलबाला हो गया। भारत के सभी पड़ौसी देशों में चीन अपना पैसा पानी की तरह बहा रहा है। उसने डोकलाम-विवाद में भारत को पटकनी मार दी। भारत को मजबूर कर दिया कि वह वहां से अपनी फौजें हटा ले और उस क्षेत्र में, चीन ने सड़कें बना लीं, हेलिपेड खड़े कर दिए और अपनी फौजें डटा दीं। उसने भारत पर इतना रौब जमा दिया कि भारत सरकार ने दलाई लामा के भारत-अफगान की षष्टि-पूर्ति पर होने वाले अनेक समारोह स्थगित कर दिए। लेकिन मुझे खुशी है कि मोदी सरकार अपने दब्बूपन से उबर रही है। कल धर्मशाला में हुए तिब्बती समारोह में केंद्रीय मंत्रियों ने भाग लिया और अरुणाचल सीमांत की नियंत्रण रेखा पर भारतीय फौज की कई डिवीजनें तैनात की गई हैं। इस रेखा का चीन ने पिछले साल 426 बार उल्लंघन किया है। अब इस सीमांत पर बोफोर्स की तोपें, ब्राह्मोस मिसाइल, टी-72 टैंक और सुखोई-30 लड़ाकू विमान तैनात कर दिए गए हैं। इसीलिए मैंने कहा कि जब जागे, तभी सबेरा।
चैतेंद्र प्रताप सिंह says
सहमत हूं. यह सब क्रियाकलाप 2019 को दायरे में रख कर हो रहा है. इस पर भी ध्यान करने की जरूरत है. आपसे अनुरोध है कि इस मसले पर भी लिखे.