प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे पिछले माह चीन चले गए थे, वैसे ही वे रुस चले गए। ये दोनों यात्राएं अनौपचारिक थीं। याने इनमें कोई एजेंडा पहले से तय नहीं था और बातचीत के बाद कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हुआ। रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ मोदी की यह कोई पहली भेंट नहीं थी। ये दोनों नेता पिछले चार साल में कई बार मिल चुके हैं। वे 15-20 दिन बाद फिर मिलने वाले हैं लेकिन अभी ही उनके मिलने का कारण क्या है ?
इसका सबसे बड़ा कारण डोनाल्ड ट्रंप है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान और रुस के विरुद्ध अनेक प्रतिबंध घोषित कर दिए हैं। इन प्रतिबंधों का सीधा असर भारत पर पड़ेगा। भारत इस समय रुस से एस-400 नामक प्रक्षेपास्त्र खरीदना चाहता है, जिनकी कीमत करीब 30 हजार करोड़ रु. है। वह रुस से परमाणु पनडुब्बी भी लेना चाहता है और सुखाई टी-50 लड़ाकू विमान भी। इस वक्त भारत की 68 प्रतिशत शस्त्रास्त्र की जरुरत रुस ही पूरी करता है। भारत-रुस व्यापार अभी 80 हजार करोड़ रु. का है। उसमें गत वर्ष 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यदि ट्रंप के प्रतिबंध लागू हुए तो भारत-रुस का यह आदान-प्रदान बुरी तरह प्रभावित होगा।
इसी प्रकार ईरान पर लगे प्रतिबंधों के कारण हमारी चाहबहार प्रायोजना ठंडे बस्ते में बंद हो जाएगी। तेल के दाम बढ़ जाएंगे। जाहिर है कि मोदी की इस यात्रा ने इन प्रतिबंधों को दरकिनार करने का संदेश दे दिया है। अमेरिका की खातिर भारत अपने राष्ट्रहितों की कुरबानी क्यों करे ? अमेरिका को नाराज किए बिना भारत अपने राष्ट्रहितों की रक्षा कर रहा है।
मोदी और पुतिन की इस भेंट में दोनों राष्ट्रों ने अपने-अपने हितों की रक्षा का प्रयत्न किया है। शीतयुद्ध के जमाने में रुस के साथ भारत के संबंध इतने घनिष्ट थे कि वे अमेरिका, चीन और पाकिस्तान की ओर से आने वाली चुनौतियों को संतुलित करते थे लेकिन अब रुस भी अपनी विदेश नीति के मामले में काफी लचीला और व्यावहारिक हो गया है तो फिर भारत अपने आपको सिर्फ अमेरिका के साथ नत्थी क्यों कर ले ?
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