रेफल विमानों का सौदा मोदी सरकार के गले का पत्थर बन सकता है, यह मैंने इस विवाद के उठते ही लिखा था। मैंने यह सुझाव भी दिया था कि सरकार को वे सब मोटे-मोटे कारण उजागर कर देने चाहिए, जिनकी वजह से 526 करोड़ रु. का विमान 1670 करोड़ रु. में खरीदा जा रहा है। प्रतिरक्षा की दृष्टि से जो गोपनीय तथ्य हैं, उन्हें उजागर किए बिना भी सारी बातें देश को बताई जा सकती थीं। लेकिन अब सरकार उन्हें कैसे छिपाएगी? सर्वोच्च न्यायालय ने अरुण शौरी, यशंवत सिन्हा, प्रशांत भूषण आदि की याचिकाओं पर विचार करते हुए सरकार को आदेश दे दिया है कि वह दस दिन में तीन बातों का लिखित स्पष्टीकरण दे। एक तो विमान की कीमत तिगुनी कैसे हुई ? दूसरा, इस 60 हजार करोड़ रु. के सौदे को संपन्न करते वक्त क्या प्रक्रिया अपनाई गई? और तीसरा, फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट के साथ भारतीय भागीदार को कैसे जोड़ा गया?
अभी दो हफ्ते पहले सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जहाज की कीमत के बारे में वह सवाल नहीं पूछना चाहती, (क्योंकि उससे हमारे कई प्रतिरक्षा-रहस्य उजागर हो सकते हैं।) लेकिन अब उसने विपक्षी नेताओं की तरह इस मुद्दे को भी उठा लिया है। इससे क्या जाहिर होता है ? क्या यह नहीं कि उसे भी दाल में कुछ काला नजर आने लगा है। रेफल सौदे में गोपनीयता की शर्त की अब धज्जियां उड़ जाएंगी। यह ठीक है कि अदालत ने सरकार से बंद लिफाफे में सारी सूचनाएं मांगी हैं और सरकार कह रही है कि 1923 के गोपनीयता अधिनियम के तहत वह रेफल-सौदे की सारी जानकारियां अदालत के सामने पेश करने के लिए मजबूर नहीं है। दूसरे शब्दों में अब न्यायपालिका और कार्यपालिका की बीच मुठभेड़ अवश्यंभावी है। इसका कितना बुरा असर मोदी की छवि पर होगा, कुछ कहना कठिन है। बोफोर्स ने 410 सांसदों वाले राजीव गांधी की छवि को चकनाचूर कर दिया था तो 272 सदस्यों वाले मोदी को यह रेफल विमान कहां ले उड़ेगा, पता नहीं। अब जबकि सीबीआई के दो पाटों में पिस रही मोदी सरकार के पसीने पहले ही छूटे हुए हैं, अदालत ने भी उसे पटकनी देना शुरु कर दी है। अभी भी ज्यादा कुछ बिगड़ा नहीं है। यदि रेफल-विमान की बारीकियां उजागर हो भी गई तों दुश्मन राष्ट्र आपका क्या कर लेंगे ? भारत सरकार इस गलतफहमी में न रहे कि रेफल के सारे रहस्य सिर्फ दासाल्ट कंपनी और सिर्फ उसके पास ही हैं। महाशक्तियों के समरशास्त्री भांग खाकर लेटे नहीं रहते हैं। वे सब पता करते रहते हैं। इन रहस्यों को छिपाने के चक्कर में वह कहीं अपनी लुटिया डुबा न बैठे ?
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