विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर का मोर्चा दुबारा खोल दिया है। मुझे आश्चर्य है कि वह पिछले चार साल मौन-व्रत क्यों धारण किए रही ? मेरे लिए अयोध्या में राम मंदिर मजहबी मसला है ही नहीं। उसे हिंदू-मुसलमान का मसला बनाना बिल्कुल गलत है। यह मसला है, देसी और विदेशी का ! यह बात मैं अपने बड़े भाई तुल्य अशोक सिंघलजी, जो कि विश्व हिन्दू परिषद के बरसों—बरस अध्यक्ष रहे, से भी हमेशा कहता रहता था। विदेशी आक्रांता जब भी किसी देश पर हमला करता है तो उसके लोगों का मनोबल गिराने के लिए वह कम से कम तीन काम जरुर करता है। एक तो उसके श्रद्धा-केंद्र पूजा-स्थलों को नष्ट करता है। दूसरा, उसकी स्त्रियों को अपनी हवस का शिकार बनाता है और तीसरा, उसकी संपत्तियों को लूटता है। जहां तक बाबर का सवाल है, उसने और उसके-जैसे हमलावरों ने सिर्फ भारत में ही नहीं, उज़बेकिस्तान और अफगानिस्तान में भी कई श्रद्धा-केंद्र को नष्ट किया। वे मंदिर नहीं थे। वे मस्जिदें थीं। वे दुश्मनों की मस्जिदें, उनकी औरतें और उनकी संपत्तियां थीं। यह जानना हो तो आप पठानों के महान कवि खुशहालखान खट्टक की शायरी पढ़िए। सहारनपुर के प्रसिद्ध उर्दू शायर हजरत अब्दुल कुद्दुस गंगोही का कलाम देखिए। उन्होंने लिखा है कि मुगल हमलावरों ने जितने मंदिर गिराए, उनसे ज्यादा मस्जिदें गिराईं। औरंगजेब ने बीजापुर की बड़ी मस्जिद गिराई थी, क्योंकि उसे बीजापुर के मुस्लिम शासक को धराशयी करना था। इसीलिए मैं कहता हूं कि अयोध्या के राम मंदिर को मीर बाक़ी ने गिराया हो या किसी और ने, यह सवाल मज़हबी नहीं, राष्ट्रीय है। यह शर्म की बात है कि यह मामला बरसों-बरस से अदालतों में लटका हुआ है। हमारी सरकारें और नेता निकम्मे साबित हो रहे हैं। 1992 में मैंने पहल की थी। मामला हल होने को था लेकिन 6 दिसंबर को मस्जिद का ढांचा ढह गया। अब मेरी राय यह है कि देश के मुसलमानों को पहल करनी चाहिए और राम जन्मभूमि की जगह मंदिर ही बनने देना चाहिए और उस 70 एकड़ जमीन में एक शानदार मस्जिद के साथ-साथ दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों के पूजा-स्थल भी बन सकें, ऐसा एक अध्यादेश सरकार को तुरंत लाना चाहिए ताकि अयोध्या सर्वधर्म समभाव का विश्व-केंद्र बन सके।
(इस मुद्दे पर मेरे ग्रंथ ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान, राजकमल प्रकाशन’ में मैंने विस्तार से चर्चा की है)
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