जोधपुर के एक समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबदे ने जो टिप्पणियों की हैं, उन पर मेरा प्रतिक्रिया करने का मन हो रहा है। बोबदेजी ने यह ठीक ही कहा है कि न्याय न्याय है, वह प्रतिशोध या बदला नहीं हो सकता है। इसीलिए किसी भी व्यक्ति का अपराध सिद्ध होने के पहले गुस्से में आकर उसको सजा दे देना उचित नहीं है।यही ठीक हो तो फिर देश में अदालतों की जरुरत ही क्या है? लोग अपने आप ‘न्याय’ करने लगेंगे। ऐसा न्याय समाज में अराजकता फैला देगा। लेकिन न्याय मिलने में सालों-साल लग जाएं और हजारों-लाखों रु. खर्च हो जाएं तो क्या आप उसे न्याय कहेंगे? जब खेती ही सूख जाए और फिर आप झमाझम बारिश ले आएं तो लोग आपको क्या कहेंगे? ‘का बरखा, जब कृषि सुखानी?’
हमारे देश में करोड़ों मुकदमे अधर में लटके रहते हैं। तीस-तीस चालीस-चालीस साल वे फैसलों का इंतजार करते रहते हैं। उन मुकदमों के जज सेवा-निवृत्त हो जाते हैं। उनके वादी, प्रतिवादी और वकील दिवंगत हो जाते हैं। जो फैसले निचली अदालतें करती हैं, उनमें से कई ऊंची अदालतों में जाकर उलट जाते हैं। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि अदालतों की बहसें और फैसले अंग्रेजी में होते हैं, जो वादी और प्रतिवादी के लिए जादू-टोने की तरह बने रहते हैं।
न्याय के नाम पर यह ठगी आजादी के बाद भी देश में धड़ल्ले से चल रही है। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश जैसे देशों में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इस ठगी को रोकने की हिम्मत आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं की है। इसके विरुद्ध राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बराबर आवाज उठा रहे हैं। उनकी पहल पर ही सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी वेबसाइट कई भारतीय भाषाओं में कर दी है। कोविंदजी मेरे पुराने साथी हैं। मुझे उन पर गर्व है। वे राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठकर भी अपने सिद्धांतों को नहीं भूले हैं। कोविंदजी ने जोधपुर में फिर कहा है कि न्याय को जरा सस्ता करो, सुलभ करो, गरीब आदमी की हैसियत ही नहीं होती कि वह मुकदमा लड़ सके।
गरीब आदमी को जैसे मैं शिक्षा और इलाज मुफ्त देने की वकालता करता हूं, वैसे ही उसे इन्साफ भी मुफ्त मिलना चाहिए। इन तीनों चीजों को जादू-टोने से बाहर निकालने का एक ही शुरुआती उपाय है। वह है, इनकी पढ़ाई के माध्यम से अंग्रेजी को निकाल बाहर किया जाए। यदि वकालत, डाक्टरी और शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएं बन जाएं तो कुछ ही वर्षों में भारत महाशक्ति बन सकता है।
Ausaf Ahmad Khan adv high court Lucknow ow says
we agree with your thought in fact the justice might be in the oreintal language and traditionalsnner rather it be done in foreign language and method ology now the free is required from justice dispension system and we Indian should call that we do not need your anything except the rule of law it is our right and solo need of the timeodolo