आज दो खबरों पर मेरा ध्यान एक साथ गया। एक तो पूर्व प्रधानमंत्री डॅ. मनमोहनसिंह द्वारा नरेंद्र मोदी को दी गई इस सलाह पर कि आप याद रखें कि आप सारे भारत के प्रधानमंत्री हैं (सिर्फ भाजपा के नहीं)। प्रधानमंत्री के भाषणों में एक मर्यादा होनी चाहिए। उनका स्तर होना चाहिए। मनमोहनसिंहजी का इशारा मोदी के उन भाषणों की ओर था, जो वे आजकल चुनावी सभाओं में देते हैं।
दूसरी खबर, जिसने मेरा ध्यान खींचा, वह यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय अब मोदी के सभी भाषणों का एक बड़ा संग्रह छापने वाला है, कई खंडों में ! अब आप ही बताइए कि इन दोनों खबरों को एक साथ पढ़ कर आप भी सोच में पड़ जाएंगे या नहीं ? मनमोहनजी ने जो सलाह मोदी को दी है, उस सलाह की जरुरत क्या राहुल गांधी को मोदी से भी ज्यादा नहीं है ? हालांकि दोनों नेताओं का बौद्धिक स्तर लगभग एक-जैसा ही है लेकिन मोदी के निंदक भी मानते हैं कि मोदी के प्रहारों में कुछ दम होता है जबकि राहुल का बोला हुआ लौटकर उन पर ही भारी पड़ जाता है। जैसे कि यह जुमला कि ‘मोदी चोर है’।
जो भी हो, प्रधानमंत्री तो लोग कुछ महिनों या कुछ वर्षों के लिए बनते हैं। असली सवाल यह है कि अपनी 50-60 साल पुरानी आदतों को वे अचानक कैसे छोड़ सकते है ? लेकिन उनके भाषणों को इकट्ठा करके छापना तो उनके भाषणों से भी बड़ा मजाक है। सरकार के करोड़ों रु. की शुद्ध बर्बादी है। प्रधानमंत्री तो कोई भी नागरिक बन सकता है लेकिन यह जरुरी नहीं कि वह पढ़ा-लिखा भी हो, विद्वान भी हो, विचारक भी हो और उसे भाषण देना भी आता हो। मोदी को भाषण देना तो जरुर आता है लेकिन यदि उनके सारे भाषण छाप दिए गए तो उन्हें पढ़कर वे खुद भी परेशान हो जाएंगे।
जो भाषण उनके नौकरशाहों ने उन्हें लिखकर दिए हैं, उनमें से शायद कुछेक छापने लायक हों, क्योंकि उनमें सरकारी नीतियों का विवरण होता है लेकिन वे इतने उबाऊ होते हैं कि उन्हें पढ़ने के लिए किताब कौन खरीदेगा? नेहरु और नरसिंहराव की बात जाने दें, जो अपना भाषण खुद लिखते थे या लिखे हुए को खुद सुधारते थे। बाकी प्रधानमंत्रियों में कौन ऐसे हैं, जिनके भाषण छपने लायक हैं या पैसे खर्च करके पढ़ने लायक हैं ? मोदी के भाषणों को ठीक-ठाक करके छापने के लिए जो संपादक-मंडल बना है, उसमें मेरे एक प्रतिभाशाली सहपाठी हैं और एक अभिन्न मित्र हैं। मुझे डर लग रहा है कि उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। पता नहीं, उन्होंने इसके लिए हां क्यों भर दी? उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। मैं उनकी सफलता की कामना करता हूं।
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