तेलगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू 2018 में वही नारा दे रहे हैं, जो 1967 में डाॅ. राममनोहर लोहिया ने दिया था। लोहिया कहते थे, कांग्रेस हटाओ और नायडू कह रहे हैं, भाजपा हटाओ। उस समय प्रधानमंत्री थीं, इंदिरा गांधी और उन्हें प्रधानमंत्री बने एक साल ही हुआ था जबकि अब प्रधानमंत्री हैं- नरेंद्र मोदी, जिन्हें चार साल से ज्यादा हो गए हैं। इंदिराजी नेहरु परिवार की निरंतरता की प्रतीक थीं और मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिपाही रहे हैं। नायडू के भाजपा हटाओ के नारे का असली अर्थ है- मोदी हटाओ।
मोदी हटाओ इसलिए कि भाजपा के विरुद्ध जितने भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वे वास्तव में मोदी के विरुद्ध ही हैं। जैसे नोटबंदी, जीएसटी, रेफल-सौदा, सीबीआई दंगल आदि के सारे काले टीके मोदी के माथे पर चिपकाए जा रहे हैं। समस्त सरकारी संस्थाओं को कमजोर करने की भी सारी जिम्मेदारी मोदी पर डाली जा रही है। भारत सरकार का गुजरातीकरण करने के लिए भी मोदी को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। केंद्र सरकार के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर गुजराती अफसरों को थोपने और उनसे मनमाने काम कराने के आरोप भी प्रधानमंत्री पर लगाए जा रहे हैं। माना यह जा रहा है कि देश में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है और यह काम मोदी की शक्ति-पिपासा को पूरा करने के लिए किया जा रहा है।
चंद्रबाबू नायडू अटलजी के वक्त भाजपा-गठबंधन की एकता में अग्रणी भूमिका निभा रहे थे। अब वे मोदी हटाओ गठबंधन के संयोजक बन गए हैं। वे बार-बार दिल्ली आ रहे हैं और लगभग सभी विरोधी नेताओं से मिल रहे हैं। उनमें चतुराई है और लचीलापन है। वे अनुभवी तो है ही। इसीलिए उन्होंने अगले प्रधानमंत्री के प्रश्न को टाल दिया। राहुल गांधी ने जो गलती की, वह उन्होंने नहीं दोहराई। इस विरोधी गठबंधन में आधे दर्जन नेता ऐसे हैं, जिनके सीने में प्रधानमंत्री पद धड़क रहा है। नायडू की कोशिश है कि सारे नेता मिलकर एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएं। यदि ऐसा हो गया तो समझ लीजिए कि मोदी का लौटना असंभव है। भाजपा को 100 सीटें मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। इस समय विरोधियों के पास न तो कोई ऐसा नेता है और न ही ऐसी नीति है, जो मोदी के लिए प्राणलेवा चुनौती बन सके। यदि ऐसी चुनौती खड़ी हो गई तो यह असंभव नहीं कि मोदी सरकार अब इन बचे-खुचे कुछ महिनों में ऐसे चमत्कारी कदम उठा ले, जो उसकी डगमगाती नैया को बचा ले जाएं।
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