कभी-कभी कोई एक घटना या दुर्घटना किसी बड़े सुधार का कारण बन जाती है, जैसे कि अप्रैल में कुशीनगर में हुई रेल दुर्घटना। उप्र के इस स्थान पर रेल्वे-क्रांसिंग वैसा ही खुला पड़ा था, जैसे कि देश के अन्य साढ़े तीन हजार क्रासिंग पड़े रहते थे। वहां बच्चों की स्कूल बस पर दौड़ती हुई रेल चढ़ गई और 13 बच्चे मर गए। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। कई बार हुआ है। हर साल दर्जनों लोग मारे जाते हैं। पिछले दस साल में 1200 से ज्यादा लोग ऐसे खुले रेल्वे क्रांसिगों पर मारे जा चुके हैं। यह सिलसिला अंग्रेज के जमाने से चला आ रहा है। अंग्रेज ने रेल अपने फायदे के लिए बनाई थी। भारतीय बगावत को दबाने के लिए एक कोने से दूसरे कोने तक रेल चलाना जरुरी था। पुलिस और फौज भिजवाना सबसे जरुरी काम था। मालगाड़ियां चलाना इसलिए जरुरी था कि इंग्लैंड के कारखाने भारत के कच्चे माल से चलाए जाते थे।
जो सवारियां बड़े शहरों के बीच यात्राएं करती थीं, उनकी सुविधा और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता था लेकिन गांवों और कस्बों से गुजरनेवाली रेल की पटरियों, क्रासिंग और स्टेशनों की जो खस्ता हालत डेढ़ सौ साल पहले थी, वह अब तक चली आ रही थी। उनमें थोड़ा-बहुत सुधार जरुर होता रहा है लेकिन हजारों रेल्वे-क्रासिंग पर न तो कोई दरवाजे होते हैं, न कोई घंटियां होती है और न ही वहां कोई चौकीदार खड़े होते हैं। कुशीनगर की दुर्घटना पांच माह पहले हुई थी। इस बीच लगभग तीन हजार क्रासिंगों पर या तो चौकीदार खड़े कर दिए गए हैं या उनके नीचे से सड़क निकाल दी गई है या उन्हें बंद कर दिया गया है। यह चमत्कारी काम रेल मंत्री पीयूष गोयल की पहल पर हुआ है। यह सभी मंत्रियों के लिए अनुकरणीय पहल है।
इससे भी ज्यादा कई जरुरी काम शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में किए जाने हैं ताकि देश के गरीब, ग्रामीण और वंचित- दलित लोगों का कल्याण हो सके। रेल्वे-क्रासिंग पर अक्सर किन लोगों की बलि चढ़ती है ? बेजुबान किसान, मजदूर, ग्रामीण, आदिवासी, अपंग लोगों की। सरकारें इन्हीं लोगों के वोटों से बनती हैं लेकिन बनने के बाद वे वोटों वाले नहीं, नोटोवालों की सेवा में लग जाती हैं। यह पहल सच्ची लोकतांत्रिक पहल तो है ही, मैं इसे पुण्य-कार्य भी मानता हूं। अब से रेल से कट मरनेवालों की संख्या जरुर घटेगी।
Leave a Reply