ज्ञानवापी की मस्जिद की हर गुंबद के नीचे कुछ न कुछ ऐसे प्रमाण मिल रहे हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि वह अच्छा-खासा मंदिर था। यही बात मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर लागू हो रही है। छोटी और बड़ी अदालतों में मुकदमों पर मुकदमे ठोक दिए गए हैं। अदालतें क्या करेंगी? वे क्या फैसला देंगी? क्या वे यह कहेंगी कि इन मस्जिदों को तोड़कर इनकी जगह फिर से मंदिर खड़े कर दो? फिलहाल तो वे ऐसा नहीं … [Read more...] about सत्ता ही सत्य, ईश्वर मिथ्या है
राजीव के हत्यारे की रिहाई
राजीव गांधी के हत्यारे ए.जी. पेरारिवालन को सर्वोच्च न्यायालय ने रिहा कर दिया। इस पर तमिलनाडु में खुशियां मनाई जा रही हैं। उस हत्यारे और उसकी मां के साथ मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन गले मिल रहे हैं। हत्यारे की कलम से लिखा गया एक लेख दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार ने छापा है, जिसमें उसने उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया है, जिन्होंने उसकी कैद के दौरान उसके साथ सहानुभूतियां दिखाई … [Read more...] about राजीव के हत्यारे की रिहाई
नाक में दम करती मंहगाई
मंहगाई यदि इसी तरह बढ़ती रही तो देश में अराजकता भी फैल सकती है। ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय थोक चीजों के दाम में 15.08 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है। इतनी मंहगाई 31 साल बाद बढ़ी है। इन तीन दशकों में मंहगाई जब थोड़ी-सी भी बढ़ती दिखाई देती थी तो देश में शोर मचना शुरु हो जाता था। संसद में शोर मचने लगता था, सड़कों पर प्रदर्शन होने लगते थे और सरकारों की खाट खड़ी होने लगती थी लेकिन … [Read more...] about नाक में दम करती मंहगाई
जो मंदिर में है, वही मस्जिद में भी है
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में अदालतें क्या फैसला करेंगी, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना समझ लीजिए कि यह मामला अयोध्या की बाबरी मस्जिद-जैसा नहीं है। कोई भी वकील या याचिकाकर्ता या हिंदू संगठन यह मांग नहीं कर रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद को ढहा दिया जाए और उसकी जगह जो मंदिर पहले था, उसे फिर से खड़ा कर दिया जाए। इस तरह की मांगों पर 1991 से ही प्रतिबंध लग चुका है, … [Read more...] about जो मंदिर में है, वही मस्जिद में भी है
कांग्रेसः न नेता और न नीति
कांग्रेस का चिंतन-शिविर समाप्त हो गया लेकिन क्या वह उसकी चिंता समाप्त कर पाया? कांग्रेस की चिंता तो अब भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। कांग्रेस की चिंता वास्तव में भारत के लोकतंत्र की भी चिंता है, क्योंकि सशक्त विरोधी दल के बिना कोई भी लोकतंत्र जल्दी ही प्रवाह पतित हो सकता है। वैसा लोकतंत्र बिना ब्रेक की मोटर गाड़ी बन जाता है। किसी भी पार्टी को सशक्त होने के लिए नीति और नेता की … [Read more...] about कांग्रेसः न नेता और न नीति
गेहूं बना सिरदर्द
अभी महिना भर पहले तक सरकार दावे कर रही थी कि इस बार देश में गेहूं का उत्पादन गज़ब का होगा। उम्मीद थी कि वह 11 करोड़ टन से ज्यादा ही होगा और भारत इस साल सबसे ज्यादा गेहूं निर्यात करेगा और जमकर पैसे कमाएगा। इसकी संभावना इसलिए भी बढ़ गई थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में गेहूं की कमी पड़ने लगी है लेकिन ऐसा क्या हुआ कि सरकार ने रातों-रात फैसला कर लिया कि भारत अब गेहूं निर्यात … [Read more...] about गेहूं बना सिरदर्द
अग्निकांडों से बचाव की तरकीब
पिछले चार साल में दिल्ली में आगजनी की भयंकर घटनाएं हुई हैं। लेकिन न तो जनता ने कोई सबक सीखा और न ही सरकारों ने कोई मुस्तैदी दिखाई। इसीलिए दिल्ली के मुंडका क्षेत्र में जबर्दस्त लोमहर्षक अग्निकांड हो गया है। एक चार मंजिला भवन में कुछ कंपनियों के दफ्तर चल रहे थे। वहां न तो कोई कारखाना था और न ही कोई भट्टी या चूल्हा था। शायद बिजली की खराबी से आग लगी। लगभग 30 लाशें तो कल ही मिल गई … [Read more...] about अग्निकांडों से बचाव की तरकीब
नाटो का विस्तार और भारत
‘नाटो’ नामक सैन्य संगठन में अब यूरोप के दो नए देश भी जुड़नेवाले हैं। ये हैं- फिनलैंड और स्वीडन। इस तरह 1949 में अमेरिका की पहल पर बने 15 देशों के इस संगठन के अब 32 सदस्य हो जाएंगे। यूरोप के लगभग सभी महत्वपूर्ण देश इस सैन्य संगठन में एक के बाद एक शामिल होते गए, क्योंकि शीतयुद्ध के जमाने में उन्हें सोवियत संघ से अपनी सुरक्षा चाहिए थी और सोवियत संघ के खत्म होने के बाद उन्हें स्वयं … [Read more...] about नाटो का विस्तार और भारत
राजद्रोह कानून को रद्द करें
अंग्रेजों के बनाए हुए 152 साल पुराने राजद्रोह कानून की शामत आ चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने उसे पूरी तरह से अवैध घोषित नहीं किया है लेकिन वैसा करने के पहले उसने केंद्र सरकार को कहा है कि 10 जून तक वह यह बताए कि उसमें वह क्या-क्या सुधार करना चाहती है। दूसरे शब्दों में सरकार भी सहमत है कि राजद्रोह का यह कानून अनुचित और असामयिक है। यदि सरकार की यह मन्शा प्रकट नहीं होती तो अदालत इस … [Read more...] about राजद्रोह कानून को रद्द करें
चिंतन शिविर या चिंता-शिविर?
उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन-शिविर आयोजित किया जा रहा है। सबसे आश्चर्य तो मुझे यह जानकर हुआ कि इस जमावड़े का नाम चिंतन-शिविर रखा गया है। हमारे नेता और चिंतन! इन दो शब्दों की यह जोड़ी तो बिल्कुल बेमेल है। भला, नेताओं का चिंतन से क्या लेना-देना? छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों की बात जाने दें, देश की अखिल भारतीय पार्टियों के नेताओं में चिंतनशील नेता कितने है? क्या उन्होंने गांधी, … [Read more...] about चिंतन शिविर या चिंता-शिविर?