राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर्वोच्च प्रमुख श्री मोहन भागवत ने तीन राष्ट्रीय मुद्दों पर बहुत ही तर्कसंगत विचार प्रस्तुत किए हैं। ये मुद्दे हैं- काशी और मथुरा के मंदिर, समान आचार संहिता और शरणार्थी कानून। इन तीनों मुद्दों को लेकर संघ और भाजपा पर आरोप लगाया जाता है कि उनकी दृष्टि अत्यंत संकीर्ण, सांप्रदायिक और समाज-विरोधी है लेकिन इन तीनों मुद्दों पर पहले जो भी कुछ लिखा … [Read more...] about मोहन भागवत का बौद्धिक साहस
Archives for September 2020
शिक्षा में क्रांति का तरीका
राज्यपालों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े पते की बात कह दी। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति सरकार की नीति नहीं है, देश की नीति है। बिल्कुल वैसे ही जैसी कि विदेश नीति या रक्षा नीति होती है। उन्होंने शिक्षा नीति पर सर्वसम्मति की मांग की है लेकिन कुछ विपक्षी दल इस नई शिक्षा नीति में सुधार के लिए रचनात्मक सुझाव देने की बजाय उसकी भर्त्सना करने में … [Read more...] about शिक्षा में क्रांति का तरीका
‘रासुका’: आपात्काल की अवांछित संतान
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने डाॅ. कफील खान को रिहा करने का फैसला दिया था, उस पर मैंने जो लेख लिखा था, उस पर सैकड़ों पाठकों की सहमति आई लेकिन एक-दो पाठकों ने काफी अमर्यादित प्रतिक्रिया भी भेजी। उन्होंने इसे हिंदू-मुसलमान के चश्मे से देखा। मेरा निवेदन यह है कि न्याय तो न्याय होता है। वह सबके लिए समान होना चाहिए। उसके सामने मजहब, जात, ओहदा और हैसियत आदि का कोई ख्याल नहीं होना चाहिए। … [Read more...] about ‘रासुका’: आपात्काल की अवांछित संतान
लद्दाख का हल मुश्किल नहीं
भारत के रक्षामंत्री राजनाथसिंह और चीन के रक्षामंत्री वेई फेंगहे की मास्को में दो घंटे बात हुई लेकिन उसका नतीजा क्या निकला ? दोनों अपनी-अपनी टेक पर अड़े रहे। फेंगहे कहते रहे कि वे चीन की एक इंच जमीन नहीं छोड़ेंगे और यही बात भारत की जमीन के बारे में राजनाथ भी कहते रहे। दोनों एक-दूसरे पर उत्तेजना फैलाने का आरोप लगाते रहे, फिर भी दोनों सारे मामले को बातचीत से हल करने की इच्छा दोहराते … [Read more...] about लद्दाख का हल मुश्किल नहीं
क्या बात है कि बात नहीं हो रही ?
कल मास्को में रक्षामंत्री राजनाथसिंह की बातचीत चीन के रक्षा मंत्री वी फंगहे के साथ हुई। अगले हफ्ते दोनों देशों के विदेश मंत्री मिलकर बात करनेवाले हैं। पहले भी फोन पर उनकी बात हुई है। पिछले पांच दिनों से दोनों देशों के फौजी अफसर भी चुशूल में बैठकर बात कर रहे हैं। बातचीत के लिए चीन की तरफ से पहल हुई है, इससे क्या साबित होता है ? एक, तो यह कि भारत ने पेंगांग झील के दक्षिण में … [Read more...] about क्या बात है कि बात नहीं हो रही ?
हिरण पर क्यों लादें घास ?
आंध्र प्रदेश की सरकार ने पिछले साल अपने सारे स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी कर देने का फैसला किया और विधानसभा ने 19 जनवरी 2019 को उस पर मुहर लगा दी। भाजपा ने इसका विरोध किया और उसके दो नेताओं- सुदेश और श्रीनिवास ने उच्च न्यायालय में याचिका लगा दी। उच्च न्यायालय ने इस अंग्रेजी को थोपने के फैसले को गैर-कानूनी घोषित कर दिया लेकिन अब आंध्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय की शरण में … [Read more...] about हिरण पर क्यों लादें घास ?
संसद में सवाल-जवाब क्यों नहीं ?
संसद का यह वर्षाकालीन सत्र शुरु होगा 14 सितंबर से लेकिन उसे लेकर अभी से विवाद छिड़ गया है। विवाद का मुख्य विषय यह है कि सदन में अब प्रश्नोत्तर काल नहीं होगा। इसके पक्ष में सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा का एक तर्क यह है कि लोकसभा और राज्यसभा सिर्फ चार-चार घंटे रोज़ चलेंगी। यदि उनमें एक घंटा सवाल-जवाब में खर्च हो गया तो कानून-निर्माण का काम अधूरा रह जाएगा। दूसरा तर्क यह है कि सांसदों के … [Read more...] about संसद में सवाल-जवाब क्यों नहीं ?
डॉ. कफील खानः फिजूल गिरफ्तारी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायाधीश सौमित्रदयाल सिंह को दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने डॉ. कफील खान के मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। सात महिने से जेल में पड़े डॉ. खान को उन्होंने तत्काल रिहा करने का आदेश दे दिया। डॉ. खान को इसलिए गिरफ्तार किया गया था कि उन्होंने 12 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. के गेट पर एक ‘उत्तेजक’ भाषण दे दिया … [Read more...] about डॉ. कफील खानः फिजूल गिरफ्तारी
घिरे अर्थ-संकट के बादल
भारत की अर्थ-व्यवस्था अब अनर्थ-व्यवस्था बनती जा रही हैं। इससे बड़ा अनर्थ क्या होगा कि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा गिरावट भारत की अर्थ-व्यवस्था में हुई है। कोरोना की महामारी से दुनिया के महाशक्ति राष्ट्रों के भी होश ठिकाने लगा दिए हैं लेकिन उनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10-15 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट नहीं आई है। ब्रिटेन की गिरावट 20 प्रतिशत है लेकिन हमने ब्रिटेन को भी … [Read more...] about घिरे अर्थ-संकट के बादल
ये टीवी चैनल हैं या ‘मूरख-बक्से’ ?
जब मैं अपने पीएच.डी. शोधकार्य के लिए कोलंबिया युनिवर्सिटी गया तो पहली बार न्यूयार्क में मैंने टीवी देखा। मैंने मेरे पास बैठी अमेरिकी महिला से पूछा कि यह क्या है ? तो वे बोलीं, यह ‘इंडियट बाॅक्स’ है याने ‘मूरख बक्सा’! अर्थात यह मूर्खों का, मूर्खों के लिए, मूर्खों के द्वारा चलाए जानेवाला बक्सा है। उनकी यह टिप्पणी सुनकर मैं हतप्रभ रह गया लेकिन मैं कुछ बोला नहीं। आज भी मैं उनकी बात … [Read more...] about ये टीवी चैनल हैं या ‘मूरख-बक्से’ ?