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डाॅ. वेदप्रताप वैदिक

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प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनितिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता
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काबुल में टिकी रहें फौजें

काबुल में टिकी रहें फौजें

November 20, 2020 By Dr. Vaidik Leave a Comment

अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की है कि वह अपनी सेना के 2500 जवानों को अफगानिस्तान से वापस बुलवाएगा। यह काम क्रिसमिस के पहले ही संपन्न हो जाएगा। जिस अफगानिस्तान में अमेरिका के एक लाख जवान थे, वहां सिर्फ 2 हजार ही रह जाएं तो उस देश का क्या होगा ? ट्रंप ने अमेरिकी जनता को वादा किया था कि वे अमेरिकी फौजों को वहां से वापस बुलवाकर रहेंगे क्योंकि अमेरिका को हर साल उन पर 4 बिलियन डाॅलर खर्च करना पड़ता है, सैकड़ों अमेरिकी फौजी मर चुके हैं और वहां टिके रहने से अमेरिका को कोई फायदा नहीं है। 2002 से अभी तक अमेरिका उस देश में 19 बिलियन डाॅलर से ज्यादा पैसा बहा चुका है। ट्रंप का तर्क है कि अमेरिकी फौजों को काबुल में अब टिकाए रखने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि अब तो सोवियत संघ का कोई खतरा नहीं है, पाकिस्तान से पहले-जैसी घनिष्टता नहीं है और ट्रंप के अमेरिका को दूसरों की बजाय खुद पर ध्यान देना जरुरी है। ट्रंप की तरह ओबामा ने भी अपने चुनाव-अभियान के दौरान फौजी वापसी का नारा दिया था लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इस मामले में काफी ढील दे दी थी लेकिन ट्रंप ने फौजों की वापसी तेज करने के लिए कूटनीतिक तैयारी भी पूरी की थी।

उन्होंने जलमई खलीलजाद के जरिए तालिबान और काबुल की गनी सरकार के बीच संवाद कायम करवाया और इस संवाद में भारत और पाकिस्तान को भी जोड़ा गया। माना गया कि काबुल सरकार और तालिबान के बीच समझौता हो गया है लेकिन वह कागज पर ही अटका हुआ है। अमल में वह कहीं दिखाई नहीं पड़ता। आए दिन हिंसक घटनाएं होती रहती हैं। इस समय नाटो देशों के 12 हजार सैनिक अफगानिस्तान में हैं। अफगान फौजियों की संख्या अभी लगभग पौने दो लाख है जबकि उसके-जैसे लड़ाकू देश को काबू में रखने के लिए करीब 5 लाख फौजी चाहिए। मैं तो चाहता हूं कि बाइडन-प्रशासन वहां अपने, नाटो और अन्य देशों के 5 लाख फौजी कम से कम दो साल के लिए संयुक्तराष्ट्र की निगरानी में भिजवा दे तो अफगानिस्तान में पूर्ण शांति कायम हो सकती है। ट्रंप को अभी अपना वादा पूरा करने दें (25 दिसंबर तक)। 20 जनवरी 2021 को बाइडन जैसे ही शपथ लें, काबुल में वे अपनी फौजें डटा दें। हालांकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान पहली बार काबुल पहुंचे हैं लेकिन तालिबान को काबू करने की उनकी हैसियत ‘ना’ के बराबर है। बाइडन खुद अमेरिकी फौजों की वापसी के पक्ष में बयान दे चुके हैं लेकिन उनकी वापसी ऐसी होनी चाहिए कि अफगानिस्तान में उनकी दुबारा वापसी न करना पड़े। यदि अफगानिस्तान आतंक का गढ़ बना रहेगा तो अमेरिका सहित भारत-जैसे देश भी हिंसा के शिकार होते रहेंगे।

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