दैनिक भास्कर, नई दिल्ली, 27 नवंबर 2010 | भारत के इतिहास की यह कितनी बड़ी विडंबना होगी| हमारे समाज के बारे में लिखा जाएगा कि भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार उस समय हुई, जब डॉ. मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे| सबसे स्वच्छ प्रधानमंत्री की सबसे भ्रष्ट सरकार ! सचमुच भ्रष्टाचार के इतने बड़े और इतने सारे मामले पिछली किसी भी सरकार के दौरान सामने नहीं आए| ये तो हैं, जो सामने आए हैं| जो सामने नहीं आए, पता नहीं उनकी संख्या कितनी है| जब ‘तहलका’ हुआ था तो देश को जबर्दस्त धक्का लगा था लेकिन अब जबकि यह संचार-घोटाला हुआ है, देश गहरे सदमे में उतर गया है| सदमा इस बात का है कि प्रधानमंत्री क्या करते रहे ? उन्होंने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया ? भ्रष्टाचार करनेवाला मंत्री तो इस्तीफा देकर अलग हो गया| कुछ वर्षों में लोग उसका नाम भी भूल जाएंगे लेकिन इस कलंक का टीका डॉ. मनमोहन सिंह के माथे पर हमेशा चिपका रहेगा| उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद प्रधानमंत्र्ी ने अपना वकील बदला और यह बदला हुआ वकील और भी बुरी तरह से फंस गया| अदालत ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पी जे थोमस की नियुक्ति पर गंभीर प्रश्न-चिन्ह लगाए तो भारत के महान्यायवादी जी ई वाहनवती ने जो जवाब दिया है, वह उन सबकी बोलती बंद कर सकता है, जो भारत में स्वच्छ प्रशासन के हामी हैं| वाहनवती ने थोमस का पक्ष लेते हुए कहा कि यदि चार्जशीट की वजह से थोमस की ईमानदारी संदिग्ध है तो सारे जजों की ईमानदारी भी संदिग्ध मानी जा सकती है|
महान्यायवादी के इस दुस्साहस पर अदालत चुप कैसे रह गई, समझ में नहीं आता| यह अदालत की ही अवमानना नहीं है, देश की न्याय-प्रकि्रया का भी मखौल है| प्रधानमंत्री का यह वकील क्या अब इस लायक रह गया है कि वह संचार-घोटाले में न्याय का पक्ष ले सके ? थोमस के ख्लिााफ लगे आरोप अभी तक सिद्घ नहीं हो सके हैं और उन्हें अभी तक कोई सजा भी नहीं हुई है लेकिन दस साल पहले जिस अफसर को केरल में पामोलिन तेल आयात के घोटाले में गहरी बदनामी मिली और संचार-घोटाले के समय जो संचार-सचिव रहा हो, उस ेअब सतर्कता आयुक्त बनवाना क्या ईमानदार शासन का काम हो सकता है ? यह दाल में काला नहीं, काले में दाल-जैसा अपराध है| लगता है कि ईमानदार प्रधानमंत्री की नाम के नीचे बेईमानी का शैश्व नरक भदभदा रहा है और उसे उसकी दुर्गन्ध तक नहीं सता रही| उच्चतम न्यायालय का यह प्रश्न बिल्कुल सटीक है कि थोमस-जैसा आयुक्त संचार-घोटाले की जांच कैसे करेगा ? इस टिप्पणी के बाद भी अगर थोमस अपने पद पर बने रहेंगे तो वे मनमोहन-सरकार के गले के पत्थर बन जाएंगे| थोमस अपराधी हैं या नहीं हैं, यह तथ्य गौण है| प्रमुख बात यह है कि उनकी छवि क्या है ? थोमस-जैसे आदमी का सतर्कता आयुक्त होना वैसा ही है जैसे मुर्गों के दड़बे पर किसी मरियल मुर्गी को पहरेदार बनाकर बिठा दिया गया हो|
यही भ्रष्टाचार का चरमोत्कर्ष है| यही महाधृतराष्ट्रवाद है| पहले तो मंत्रियों को भ्रष्टाचार करने की छूट दीजिए और फिर उन पर निगरानी रखने के लिए उनसे भी भ्रष्ट अफसरों को नियुक्त कर दीजिए| कौन किसको पकड़ेगा ? अब पता चला न, कि 10 प्रतिशत की विकास-दर के बावजूद देश में करोड़ों लोग भूखे पेट क्यों सोते हैं, उनके पास रहने को मकान क्यों नहीं हैं, वे चीथड़े पहने क्यों घूमते हैं, हजारों किसान आत्म-हत्या क्यों करते है, इलाज के अभाव में लाखों लोग भरी जवानी में श्मशान-घाट क्यों पहुंच जाते हैं ? आम जनता की खून-पसीने की कमाई नेता और सेठ लोग जीम जाते हैं| जब तक उनका भांडाफोड़ न हो, किसी को उसका सुराग तक नहीं लगता| सारा काम बड़ी सफाई के साथ होता है| अभी में कॉम्नवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसायटी और अन्य घोटालों में खाए गए पैसों की बात नहीं कर रहा हूं| सिर्फ संचार-घोटाले को ही लें| इस घोटाले में सरकार को लगभग पौन दो लाख करोड़ रू. का घाटा हुआ है| पौने दो लाख बार एक करोड़ को गिनिए| दिमाग चकरा जाएगा| यह इतना रूपया है कि पूरे भारत की जनता को भारत सरकार दो साल तक सस्ते दाम पर अनाज दे सकती थी| इस रूपए से पांच साल तक भारत के संपूर्ण शिक्षा-तंत्र् को चलाया जा सकता था| आठ साल तक देश के सारे मरीजों का मुफ्त में इलाज़ हो सकता था| देश के चार-पांच करोड़ बेघर परिवारों को इस रूपए से मकान बनाकर दिए जा सकते थे| यह रूपया अब उन कंपनियों की जेब में चला गया, जिन्हें संचार मंत्र्ी ए. राजा ने 2 जी स्पेक्ट्रम टके सेर बांट दिया | ये कंपनियां यह रूपया कहां से उगाहेंगी ? भारत के उन 65 करोड़ लोगों से जो मोबाइल फोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं| मध्यम वर्ग ही नहीं, मजदूरों और किसानों की हाय भी इन बेईमानों को लगेगी|
जनता की इस हाय से अगर प्रधानमंत्री अपनी सरकार को बचाना चाहते हैं तो उन्हें अदालत और संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जैसी दीर्घसूत्री समाधानों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए| राजा का इस्तीफा भी कोई समाधान नहीं है| राजा द्वारा दिए गए सभी लाइसेंस तुरंत रद्द किए जाने चाहिए| लाइसेंसों की नीलामी दुबारा की जानी चाहिए| अदालतें और जांच-समितियां अपना काम करती रहें और वे यह देखें कि इस घोटाले में किसने क्या भूमिका अदा की है| वह चाहे तो नेताओं, अफसरों, कंपनियों (और पत्र्कारों-दलालों) को भी दंडित करें| यह घोटाला सरकार ने किया है तो इसका समाधान भी वही निकाले| अदालतों और समितियों के भरोसे रहनेवाली सरकार जनता की नज़रों में रोज़ गिरती चली जाएगी| बोफर्स पर बनी संसदीय समिति की रपट का जनमत पर आखिर क्या प्रभाव पड़ा ? इतिहास ने प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को यह एक अपूर्व अवसर प्रदान किया है, जबकि वे संसार को बता सकते हैं कि उनकी ईमानदारी केवल उन तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसकी पहुंच उनकी सरकार तक भी है| यदि उनकी सरकार ईमानदारी से नहीं चलेगी तो जिस भारत को हम विश्व महाशक्ति बनाना चाहते हैं, वह संसार में ‘अंधेर नगरी’ की तरह जाना जाएगा और उसकी सरकार ‘चौपट राजा’ की तरह !
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