Hindustan, 25 May 2011 : दुर्भाग्य पाकिस्तान का पीछा नहीं छोड़ रहा है। अभी ओसामा कांड की स्याही सूखी भी नहीं थी की इस फौजी राज्य पर एक नया वज्रपात हो गया है। मेहरान के नौसैनिक हवाई अड्डे पर 18 घंटे तक आतंकवादियों का कब्जा बना रहना, यह किस बात का प्रमाण है? क्या इसका नहीं कि पाकिस्तान की फौज निहायत निकम्मी और लापरवाह है ? 2009 में उसके रावलपिंडी के मुख्यालय पर भी आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। अभी ओसामा की हत्या के बाद पेशावर के पास चारसद्दा के हमलें में भी लगभग 90 लोग मारे गए थे। इन घटनाओं ने भी पाकिस्तानी फौज के कान खड़े नहीं किए और वह मेहरान में सोती हुई पकड़ी गई।
मेहरान में 10 फौजी मारे गए और आतंकवादी सिर्फ चार मारे गए। दो भाग गए। एक भी पकड़ा नहीं गया। इसका अर्थ क्या हुआ? जागने के बाद भी पाकिस्तानी फौज ऊंघती रही। इतने कम आतंकवादियों ने 20 कि.मी में फैले इस सैन्य अड्डे पर कब्जा कैसे कर लिया? इस सैन्य अड्डे से सिर्फ 24 कि.मी दूर मससूर का परमाणु शस्त्रागार है। यदि आतंकवादी मेहरान पर कब्जा कर सकते है तो मससूर पर क्यों नहीं कर सकते? यदि वे मेहरान अड्डे पर खड़े दो पी 3 सी ओरियन जहाजों को अपने हथगोलों और मिसाइलों से उड़ा सकते हैं तो मससूर के परमाणु-शस्त्रों को क्यों नहीं उड़ा सकते? टूटने के बाद जहाज तो अपनी जगह पड़े रहते हैं लेकिन परमाणु-शस्त्रों के टूटने पर उनकी विकिरणें सैकड़ों मीलों तक तबाही मचा देती हैं। मेहरान की घटना ने इस शंका पर मुहर लगा दी है कि पाकिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।
ओसामा कांड ने पाकिस्तान की दोमुंही नीति की पोल खोल दी थी। अब मेहरान-कांड ने अमेरिका को दोबारा सतर्क कर दिया है। पाकिस्तान के प्रति अब अपनी समग्र नीति पर पुनर्विचार करने के लिए अमेरिका को बाध्य होना पड़ेगा। ओबामा प्रशासन पर सीनेटरों और कांग्रेसमेनों का दबाव पड़ेगा की वे पाकिस्तान के फौजीकरण पर रोक लगायें और उसकी परमाणु महत्वाकांक्षा को नख-दंतहीन करें। ये दोनों घटनाएं शायद अमेरिका को समस्या की असली जड़ तक पंहुचने में मदद करें।
अमेरिकी नीति-निर्माताओं को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि आखिर पाकिस्तान अपनी फौजी मांसपेशी को हमेशा फुलाते क्यों रहना चाहता है? उसे सिर्फ भारत से डर है। भारत के डर के मारे उसने पाकिस्तान की जनता की छाती पर फौज को सवार कर रखा है। पाकिस्तान की जनता के पेट पर लात मारकर वह अपनी फौज को मुटियाता जा रहा है। एक संप्रभु और स्वाभिमानी राष्ट बनने की बजाय वह दलाल और भटियार की भूमिका निभाने को सहर्ष तैयार हो जाता है।
यह एक सुखद संयोग है कि पहली बार किसी अमेरिकी राष्टपति और किसी शीर्ष पाकिस्तानी नेता ने एक साथ यह बुनियादी बात कही है। ओबामा और नवाज शरीफ दोनों ने कहा है कि पाकिस्तान भारत से डरना बंद करे। उसे वह अपना शत्रु न समझे। यदि पाकिस्तान भारत को अपना दुश्मन नहीं समझेगा तो उसे अफगानिस्तान से सामरिक गहराई ढ़ूंढ़ने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी। वह अफगानिस्तान को अपना सामरिक पिछवाड़ा इसीलिए तो बनाना चाहता है कि कहां से भारत पर आक्रमण करना आसान होगा और यदि भारत आक्रमण करे तो पाकिस्तान को पीछे खिसकने के लिए यथेष्ट जगह मिल जाएगी। अपने इस एक सूत्री लक्ष्य की सिद्धी के लिए पाकिस्तान ने अपने गले मे अल-कायदा और तालिबान के पत्थरों के पहिए लटका लिए। ये ही पत्थर उसके सिर को कुचल रहे हैं। पाकिस्तानी फौज की इससे बड़ी बेइज्जती क्या होगी कि अब उसकी बिल्ली ही उसको म्याउं-म्याउं कर रही है। उस पर गुर्रा रही है, झपट रही है और उसे नोंच रही है। मियां की जूती मियां के सिर पर बज रही है।
मेहरान की घटना से पाकिस्तान को सबसे बड़ा सबक तो यह सीखना चाहिए कि आतंकवादी किसी के सगे नहीं होते। जिन मुजाहिदों को जनरल जिया ने कारमल और नजीबुल्लाह के खिलाफ भिड़ाया था, उन्होंने ही उनको चुनौती दे डाली और शायद वे ही उनकी मौता का कारण बने। जिन तालिबान और आई एस आई तबकों को बेनजीर भुट्टो और उनके गृहमंत्री जनरल नसीरुल्लाह बाबड ने उकसाया था,उन्ही तत्वों ने बेनजीर की हत्या कर दी। राजीव गांधी की हत्या किसने की? उन्हीं तमिल टाइगरों ने, जिन्हें हमने दूध पिलाया था। जिन तालिबान को भारत पर झपट्टा मारने के लिए तैयार किया गया था, उनके बारे में पाकिस्तान के गृहमंत्री अब मेहरान से कल बोल रहे थे कि उन्होंने पाकिस्तान पर हमला बोल दिया है। उनका इशारा यह भी था कि इस हमले का लाभ भारत को मिलेगा, क्योंकि वे ही सैन्य-सुविधाएं नष्ट की गई हैं, जो भारत के विरूद्ध काम आ सकती थी।
सच्चाई तो यह है कि मेहरान पर हुए हमले से भारत के खुश होने का सवाल ही नहीं उठता। बल्कि उल्टा है। भारत की चिंता अब ज्यादा बढ़ गई है। पिछले हफ्ते आई एस आई के मुखिया शुजा पाशा ने जब कहा कि भारत को पता होना चाहिए कि पाकिस्तान परमाणु हमला भी कर सकता है तो हमारे प्रधानमंत्री ने सुरक्षा-संबंधी विशेष बैठक बुलाई थी। अब मेहरान के बाद इस खतरे ने पहले से भी अधिक ठोस रूप धारण कर लिया है। जो आतंकवादी आत्महत्या के लिए सदा तैयार रहते हैं, उन्हें भारत या पाकिस्तान पर परमाणु बम फेंकने में कितनी देर लगेगी। वे वास्तव में भारत और पाकिस्तान दोनों के साझा शत्रु हैं।
इन शत्रुओं कव मुकाबला अकेली पाकिस्तान की फौज नहीं कर सकती। यदि कर सकती होती तो सलमान तासीर की हत्या के बाद पाकिस्तान की फौज और सभी राजनीतिक दलों की बोलती क्यों बंद हो गई थी? पंजाब के उस महान राज्यपाल की अंत्येष्टि इतने दबे पांव क्यों करनी पड़ी। इसीलिए कि पिछले 64 साल से भारत के विरूद्ध जो मजहबी जहर फैलाया गया है, उसने भारत का तो बाल भी बांका नहीं किया लेकिन बेचारे पाकिस्तान की नस-नस को उसने खोखला कर दिया है। उसने पाकिस्तान में लोकतंत्र की हत्या तो कर ही दी है, उसे एक आतंकवादी राष्ट भी बना दिया है। कितनी विडंबना है कि आज पाकिस्तान अपनी लगाई आग में ही झुलस रहा है।
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