राष्ट्रीय सहारा, 18 अप्रैल 2011 : पाकिस्तान और अमेरिका, दोनों के लिए एक नया सिरदर्द खड़ा हो गया है| भारत सरकार भी अब एक नई मुसीबत में फंस गई है| इस मुसीबत का जनक है, तस्व्वुर हुसैन राणा ! राणा यों तो कनाडा का नागरिक है लेकिन वह है मूलत: पाकिस्तानी| उसे भी डेविड कोलमन हेडली के साथ पकड़ा गया था| इन दोनों पाकिस्तानियों ने ही मुंबई-हमले की साजिश रची थी| ये दोनों षडयंत्र्कारी इस समय शिकागो की जेल में हैं और अमेरिकी सरकार इन मुकदमा चला रही है|
कनाडा के एक अखबार ‘ग्लोब एंड मेल’ ने सारे षंडयंत्र् के लिए पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई को ही सूत्र्धार बताया है| राणा का कहना है कि उन्होंने लश्करे-तैयबा जैसी गैर-सरकारी संस्था के एजेंट के तौर पर नहीं बल्कि एक संप्रभु सरकार के कहने पर मुंबई के ताज होटल और दूसरे ठिकानों पर आतंकवादी भेजे थे| इसका मतलब क्या हुआ ? क्या राणा लश्कर को बचाने की कोशिश कर रहा है ? नहीं, वह खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है| वह संप्रभु सरकार की ओट में छिपना चाहता है| अमेरिका में एक ऐसा कानून है, ‘फारेन सॉवरेन इम्यूनिटीज एक्ट’, जिसके तहत उन सब अपराधियों को छूट मिल जाती है, जो किसी विदेशी संप्रभु सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर कोई अपराध कर देते हैं| अमेरिकी अदालत ने राणा के तर्क को रद्द कर दिया है, क्योंकि उसने कहा है कि राणा ने अपना अपराध अमेरिका में किया है और कोई भी विदेशी सरकार किसी अमेरिकन या केनेडियन नागरिक को स्थानीय कानून तोड़ने के लिए नहीं कह सकती|
राणा तो बच नहीं पाएगा, उसके साथ-साथ पाकिस्तानी सरकार भी फंस गई है| क्या संयोग है कि इधर आईएसआई के मुखिया सुजा पाशा अपना भिक्षापात्र् फैलाए वाशिंगटन पहुंचे और उधर राणा का मामला उछल गया| उन्हें उलटे पांव इस्लामाबाद भागना पड़ा| राणा के बयान के सारे तथ्य जब सामने आएंगे तो पाकिस्तानी सरकार दुनिया में अपना मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी| पाकिस्तान आतंकवाद की फेक्टरी है, यह बात भारत नहीं कह रहा है बल्कि खुद पाकिस्तानी कह रहे हैं| मियां की जूतियाँ मियां के सिर पड़ रही हैं| पाकिस्तान अपने ही जाल में फंस रहा है| ज़रा याद करें कि मुंबई-हमले के वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ ज़रदारी बार-बार क्या कह रहे थे| वे कह रहे थे कि यह हमला ”गैर राष्ट्रीय पात्रेंI’ ने किया है याने पाकिस्तानी सरकार से इसका कोई लेना-देना नहीं है| भारत के गृह सचिव गोपाल पिल्लई इस कथन का निरंतर खंडन करते रहे हैं| हेडली ने आईएसआई के किसी अफसर मेजर इकबाल का नाम लिया था और अब राणा ने पिल्लई के दावे पर मुहर लगा दी है| राणा के तर्क को अमेरिकी अदालत माने या रद्द करे, यह उसका मसला है, यहाँ जरूरी यह है कि राणा से सारे रहस्य उगलवाने की छूट भारत को मिलना चाहिए| अमेरिकी सरकार का कर्त्तव्य है कि वह भारतीय अधिकारियों को इन अपराधियों से पूछताछ का मौका दे|
यह ठीक है कि इन अपराधियों ने अमेरिका के खिलाफ कोई साजिश नहीं की है लेकिन एक तो मुंबई-हमले में कुछ अमेरिकी भी मारे गए थे और दूसरा, सारे दुनिया में चल रहे आतंकवाद के विरूद्घ अमेरिका खड़गहस्त है तो वह भारत के आग्रह को मानकर सच्चाई की तह तक क्यों नहीं पहुंचना चाहता ? यह ठीक है कि ये दोनों अपराधी मुंबई-कांड के कारण नहीं पकड़े गए थे बल्कि किसी डेनिश अखबार पर हमले की साजिश करते हुए पकड़े गए थे| मुंबई-हमले का रहस्य तो अचानक खुल गया| यदि अमेरिका सचमुच भारत का मित्र् है और वह सचमुच आतंकवाद का उन्मूलन चाहता है तो उसे इन अपराधियों को भारत के हवाले कर देना चाहिए| लेकिन असली सवाल यह है कि क्या वह ऐसा करेगा ? यह असंभव-सा है| इसके कई कारण हैं| पहला तो यही कि भारत सरकार में द्दढ़ता की कमी है| यदि भारत में इंदिरा गांधी सरकार की तरह कोई मजबूत सरकार होती तो वह ओबामा प्रशासन की नाक में दम कर देती| वह परमाणु-सौदे या प्रतिरक्षा-सौदों या दूसरे कई आर्थिक सौदों को दांव पर लगा देती| वह कहती कि जब तक हम आतंकवाद की जड़ पर प्रहार नहीं करेंगे, न तो हमारे परमाणु-संयंत्र् सुरक्षित रहेंगे, न हमारे कल-कारखाने और न ही हमारी जनता ! जब तक आतंकवाद की जड़ उखाड़ने में आप हमारी खुली मदद नहीं करेंगे हम आपके साथ किसी भी प्रकार का बड़ा गठबंधन नहीं करेंगे|
दूसरा कारण यह है कि अमेरिका को भारत-विरोधी आतंकवाद की उतनी चिंता नहीं है, जितनी उस काल्पनिक आतंकवाद की है, जो अमेरिका-विरोधी माना जाता है| इसीलिए ओबामा, सारकोजी, केमरन जैसे पश्चिमी नेता भारत आते हैं और जबानी जमा-खर्च करके वापस चले जाते हैं| तीसरा, पाकिस्तान अमेरिका के गले में हड्रडी की तरह फंसा हुआ है| उसे वह उगल सकता है न निगल सकता है| अमेरिका का मानना है कि पाकिस्तान के सहयोग के बिना वह अफगानिस्तान से अपना पिंड नहीं छुड़ा सकता| अमेरिकी नीति-निर्माताओं को क्या इतनी भी समझ नहीं है कि अमेरिका को अफगानिस्तान में उलझाए रखना पाकिस्तान की सबसे बड़ी प्राथमिकता है| अमेरिका की इस उलझन के कारण ही पाकिस्तान बैठे-बिठाए अरबों डॉलर हर साल उससे हथिया लेता है| हथियार भी उसे प्रचुर मात्र में मिलते हैं, जिनका इस्तेमाल भारत के विरूद्घ ही होना है|
जब तक अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ काफी सख्ती से पेश नहीं आएगा और जब तक वह भारत-विरोधी आतंकवाद को भी अमेरिका-विरोधी आतंकवाद नहीं मानेगा, तब तक वह अफगानिस्तान के दल-उल में खुद तो फंसा ही रहेगा, वह भारत को भी चैन की सांस नहीं लेने देगा| भारत सरकार में इतना दम नहीं कि वह पाकिस्तान को जुलाब दे सके| उस पर तो अब भी शर्म-अल-शेख का भूत सवार है| राणा के रहस्योद्रघाटन के बाद भी कि्रकेट को जारी रखने पर आया विदेश मंत्री का बयान, इसका प्रमाण है| पाकिस्तान के मामले में अमेरिका को भारत की तरफ झुकाने की बजाय भारत अमेरिका की तरफ झुकता हुआ नजर आता है| इस लचर-पचर नीति का नुकसान भारत और अमेरिका के साथ-साथ पाकिस्तान भी भुगत रहा है| भारत के मुकाबले आजकल पाकिस्तान आतंकवाद का ज्यादा बड़ा शिकार बन गया है|
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