R Sahara, 6 Feb 2005 : अहिंसा ग्राम शब्द से ऐसी ध्वनि निकलती है मानो यह कोई गॉंधीवादी या सर्वोदय आश्रम हो लेकिन यह कोरा आश्रम नहीं है| रतलाम में इस हफ्ते जिस अहिंसा ग्राम का उद्घाटन हुआ है, वह आश्रम भी है, ‘कम्यून’ भी है, यूटोपिया भी है, कार्यशाला भी है और सच पूछा जाए तो एक सपना है| एक ऐसा सपना जिसका लक्ष्य है, लोगों को गरीबी से मुक्त करना| गरीबी से मुक्ति : विकास की युक्ति – यह नारा है, इस अहिंसा ग्राम का ! इस ग्राम में फिलहाल सौ मकान बनाए गए हैं| इन मकानों में 100 परिवारों को रखा जाएगा, जिनकी आमदनी 1200 रू. प्रति माह से भी कम है| याने एकदम गरीब ! हो सकता है कि वे भिखारी ही हों| इन परिवारों को मुफ्त आवास देकर अपने भरोसे नहीं छोड़ दिया जाएगा| उन्हें तरह-तरह के रोजगारों का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि एक-दो माह में ही वे अपनी रोटी खुद कमा सकें| उनकी बनाई चीजों को बेचने का पूरा इंतजाम होगा| याने समाजवादी मूठ में पॅूंजीवादी तलवार लगी होगी और इस तलवार पर अहिंसा की धार होगी| अहिंसा का अर्थ यह कि इस ग्राम में मद्य-मॉंस का निषेध होगा और समस्त ग्रामवासियों के लिए प्रतिदिन आसन-प्राणायम, व्यायाम और ध्यान अनिवार्य होगा| किसी ग्रामवासी पर कोई मज़हब या संप्रदाय नहीं थोपा जाएगा| ग्राम में भर्ती करते समय कोई मज़हबी, जातीय, भाषाई या इलाकाई भेद-भाव नहीं किया जाएगा| जो लोग समर्थ हो जाऍंगे और अपना मकान बनाने की स्थिति में होंगे, वे मकान खाली कर देंगे| उन्हें पॉंच से दस साल तक का समय भी दिया जाएगा|
यह अभिनव योजना सरकारी नहीं है| शुद्घ व्यक्तिगत है| रतलाम के युवा उद्यमी चेतन्य काश्यम के उर्वर मस्तिष्क की उपज है| उन्होंने अपनी ज़मीन पर अपने पैसे लगाकर ये मकान बनाए हैं| ये मकान एक साल में बनने थे लेकिन उन्होंने सिर्फ नौ माह में ही बनाकर खड़े कर दिए हैं| करोड़ों रूपए लगाकर कोई चीज़ दान दे देना आसान है लेकिन किसी उपक्रम को लगातार चलाते रहना असाधारण बात है| चेतन्य काश्यम का यह अभिनव प्रयास सफल जरूर होगा, क्योंकि लगभग इसी तरह का प्रयास बांग्लादेश में भी हुआ और उसे विश्व की महान सफलताओं मे गिना जाने लगा है| अर्थशास्त्र के एक प्रोफेसर ने अपने गॉंव के बेहद गरीब लोगों को कुछ कर्ज देकर रोजगार में लगाया| कुछ सौ रू. से शुरू हुआ यह प्रकल्प आज कई अरब रू. तक पहॅुंच गया है| पिछले दो-ढाई दशक में लगभग एक करोड़ बांग्लादेशी इस ग्रामीण बैंक से लाभान्वित हुए हैं| जो चेतन्य काश्यप कर रहे हैं, वह इस ग्रामीण बैंक से भी आगे का कदम है| सिर्फ रोजगार ही नहीं, वे आगार (मकान) और संस्कार भी दे रहे हैं| समाजवाद, पूंजीवाद और अध्यात्मवाद – इन तीनों के समन्वय का यह अनूठा उपक्रम यदि सफल हो गया तो वह दुनिया के सामने एक नई मिसाल पेश करेगा| दुनिया में जो भी साधन सम्पन्न लोग हैं, उन्हें यह प्रयोग प्रेरित करेगा कि वे अपना पैसा ऐसे सत्कार्य में लगाऍं, जो उनका इहलोक और परलोक दोनों सुधारेगा| गॉंधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्घांत का यह मूर्तिमंत रूप है| कोई आश्चर्य नही कि अहिंसा ग्राम की सफलता हमारी सरकारों को भी प्रेरित करे| गरीबों को जमीनों के पट्टे बॉंटने, सस्ता अनाज देने, मुफ्त शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था करने के कल्याणकारी कार्यों की करूण कहानी किसे पता नहीं है| राज्य के इन कल्याणकारी कार्यों को भी अहिंसा-ग्राम नई दिशा दे सकता है| अहिंसा-ग्राम के उद्रघाटन समारोह में देशभर से आए हजारों नर-नारियों और मध्यप्रदेश के महत्वपूर्ण नेताओं को देखकर मुझे यह विश्वास हो चला है कि गरीबी-उन्मूलन का यह सपना अब केवल रतलाम तक सीमित नहीं रहेगा|
जादूकापिटारा
इस बार रतलाम के पहले इंदौर जाना हुआ| अचानक श्री काशिनाथजी त्रिवेदी के पुत्र अनिल त्रिवेदी मिल गए| अनिल समाजवादी हैं, वकील हैं, सर्वोदयी भी हैं| काशिनाथजी का शताब्दि-समारोह इस वर्ष मनाया जाएगा| वे गॉंधीजी और विनोबाजी के आत्मीय सहयोगी रहे| गॉंधीवादी साहित्यकारों और पत्रकारों में उनका नाम अग्रणी है| उन्होंने अब से तीस साल पहले मेरी पुस्तक ‘अंग्रेजी हटाओ : क्यों और कैसे ?’ का पहला गुजराती अनुवाद किया था| इन्हीं काशिनाथजी के बड़े बेटे प्रो. कीर्ति त्रिवेदी ने कमाल का काम किया है| वे मुम्बई की पवाई स्थित आई. आई. टी. में प्रोफेसर हैं| उन्होंने एक फुट ऊॅंचा और उतना ही लंबा और चौड़ा बक्सा बनाया है, जिसमें टी वी, कम्यूटर, डीवीडी प्लेयर, मोडम आदि कई आधुनिकतम संचार सुविधाऍं लगी हुई हैं| अनिलजी ने जैसे ही इस यंत्र को चलाया, उनकी पूरी दीवार पर्दा बन गई, बिल्कुल सिनेमा के पर्दे की तरह ! जादू का पिटारा-सा खुल गया| अब दुनिया को यह पूछने की जरूरत नहीं कि आपके टीवी का स्क्रीन कितने इंच का है? अब तो यह पूछिए कि आपकी दीवार कितने फुट की है? इस यंत्र का यही लाभ है| गॉंवों के सैकड़ों बच्चे एक साथ कंम्यूटर से शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे| पंचायतों में जन-शिक्षण के काम में भी क्रांति हो जाएगी| डेढ़ लाख रू. लागत का यह यंत्र तीसरी दुनिया की सामाजिक क्रांति का उपयोगी उपकरण बने बिना नहीं रहेगा|
Leave a Reply