R Sahara, 26 June 2004 : भारत में नई सरकार बनते ही भारत और पाकिस्तान के बीच गलतफहमियों का बाजार गर्म हो गया था। तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई थी लेकिन अब जो रहा है, वह लगभग चमत्कार ही है। चाहे परमाणु मुद्दे पर अफसरों की बातचीत हो या दोनों देशों के विदेश मंत्रिायों की चीन में भेंट हो, ऐसा लग रहा है, मानो भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं, सहयोगी हैं और यह भी संभव है कि वे दोनों मिलकर परमाणु-समस्या पर कोई संयुक्त-मोर्चा खड़ा करने की तैयारी कर रहे हैं।
मई 1998 में जब भारत ने परमाणु-विस्फोट किया तो पाकिस्तान ने जवाबी विस्फोट किया। नहले पर दहला मारा। सारी दुनिया ने माना कि विश्व-विध्वंस का ऐसा आयोजन पहले कभी नहीं हुआ। इसके पहले भी परस्पर प्रतिद्वंद्वियों ने परमाणु बम बनाए लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी ने आज बम-विस्फोट किया तो उसके प्रतिद्वंद्वी ने पंद्रह दिन के अंदर ही जवाबी विस्फोट कर दिया। और ऐसा भी कभी नहीं हुआ कि दोनों प्रतिद्वंद्वी पड़ौसी हों। अमेरिका और सोवियत संघ में प्रतिद्वंद्विता जरूर थी लेकिन दोनों में हजारों किलोमीटरों का फासला था। इसके अलावा अमेरिकी परमाणु शस्त्राास्त्राों के मुकाबले रूसी शस्त्राास्त्रा कई वर्ष बाद आए। इसी प्रकार 1964 में जब चीनी बम आया तो रूस उसका पड़ौसी जरूर था लेकिन दोनों की राजधानियों में हजारों कि.मी. का फासला था और दोनों एक-दूसरे के परमाणु-प्रतिद्वंद्वी भी नहीं थे। चीन का लक्ष्य अमेरिका था। लेकिन भारत और पाकिस्तान का मामला बिल्कुल ही अलग है। दोनों एक-दूसरे के इतने निकट हैं कि कुछ मिनिटों में ही वे एक-दूसरे का भयंकर विनाश कर सकते हैं। इसके अलावा पिछले पॉंच-छह दशकों में वे कई बार परम्परागत युद्ध आमने-सामने लड़ चुके हैं। और परमाणु आयुध सम्पन्न होने के बाद भी वे करगिलऱ्युद्ध में सीधे टकरा चुके हैं। इसीलिए सारी दुनिया दक्षिण एशिया को भावी परमाणुऱ्युद्ध का समरांगण मानती है। महाशक्तियों को डर है कि पिछले साठ साल में उन्होंने जो हिमाकत नहीं की, वह किसी भी दिन भारत या पाकिस्तान कर सकते हैं। परमाणु सम्पन्न पॉंचों महाशक्तियॉं खुद को काफी जिम्मेदार और परिपक्व राष्ट्र मानती हैं, जबकि उनकी नज़र में भारत और पाकिस्तान ऐसे राष्ट्र हैं, जो कभी भी कोई भी कदम उठा सकते हैं। उनके पास परमाणु आयुध हैं लेकिन कोई परमाणु-सिद्धांत नहीं हैं। वे बिना लायसेंस के ड्राइवर हैं। उनका कुछ भरोसा नहीं। उनके मुकाबले पॉंचों परमाणु सम्पन्न राष्ट्र – अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन – हमेशा आपस में सलाह-मश्वरा करते हैं, संयुक्त आचरण-नियमावली तैयार करते हैं, परमाणु अ-प्रसार संधि, समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि जैसी संधियों पर दस्तखत करते हैं और इस संसार को परमाणु-खतरे से बचाने की भरसक कोशिश करते हैं जबकि पिछले छह वर्षों में भारत और पाकिस्तान ने न तो यह ठीक से बताया है कि उनका परमाणु-सिद्धांत क्या है और न ही उन्होंने एक-दूसरे के प्रति उनके रवैए को परिभाषित किया है।
पिछले सप्ताह भारत और पाकिस्तान के अफसरों के बीच जो परमाणु-सम्वाद हुआ है, उसने अभी इन सभी संदेहों का निराकरण नहीं किया है लेकिन उससे यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि दोनों प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों ने रचनात्मक राह पकड़ ली है और अगर वे इसी दिशा में चलते रहे तो किसी न किसी दिन वे क्षेत्राीय और वैश्विक परमाणु निरस्त्राीकरण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। इस धारणा के अनेक आधार हैं। पहला तो यही है कि दोनों राष्ट्रों के बीच जो सम्वाद हुआ है, उसका संचालन दोनों देशों के विदेश मंत्राालयों के अधिकारियों के बीच हुआ है, रक्षा मंत्राालय अधिकारी या फौजियों के बीच नहीं। ये दोनों अतिरिक्त सचिव भी वे हैं, जो संयुक्तराष्ट्र संबंधी मामलों की देख-रेख करते हैं याने वे अफसर जिनका काम अन्तरराष्ट्रीय शांति संबंधी मामलों को सम्हालना है। यदि दोनों देशों का रवैया रचनात्मक नहीं होता तो वे इस तरह के अफसरों की बजाय परमाणु-विशेषज्ञों को इस वार्ता के लिए नियुक्त करते। दूसरा, दोनों पक्षों ने संयुक्त-वक्तव्य जारी किया है। संयुक्त-वक्तव्य प्राय: तभी जारी किया जाता है, जबकि दोनों पक्षों में पर्याप्त सहमति होती है। यदि तीव्र या स्पष्ट असहमतियॉं हों तो दोनों पक्ष अलग-अलग या संयुक्त पत्राकार-परिषद् आयोजित करके अपना-अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। ऐसा नहीं हुआ, यह स्वागत योग्य है। तीसरा, संयुक्त वक्तव्य में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के परमाणु शक्ति-सम्पन्न होने को स्थायित्व का कारण कहा है अर्थात् दोनों ने पॉंचों महाशक्तियों की इस धारणा को रद्द किया है कि भारत-पाक परमाणु-प्रतिस्पर्धा विश्व-विध्वंस का कारण बन सकती है। चौथा दोनों पक्षों ने पारस्परिक सुरक्षा और विश्व शांति को सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से अनेक नए कदम उठाने का संकल्प किया है। जैसे फौजी कार्रवाई के दोनों तरफ के महा-निदेशकों की बीच जो हॉटलाइन पहले से काम कर रही है, उसे बेहतर बनाना और दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच भी नई और बेहतर हॉटलाइन स्थापित करना, प्रक्षेपास्त्रा-परीक्षण के पहले पूर्व-सूचना देने के लिए समझौता करना, अब और अधिक परमाणु-परीक्षण से बाज़ आना और तब तक परीक्षण नहीं करना जब तक कि कोई अत्यंत असाधारण स्थिति पैदा न हो जाए। परमाणु मसलों पर निरंतर बातचीत करना और अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर अपना रवैया निर्धारित करने के लिए आपसी सम्पर्क बनाए रखना। इसके अलावा पॉंचों परमाणु शक्तियों से अनुरोध करना कि वे भारत और पाकिस्तान को भी परमाणु-वार्ता में शामिल करें और नियमित वार्ता-सत्रा चलाऍं।
उक्त सभी संकल्प यह सिद्ध करते हैं कि अब भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे को अपना परमाणु-प्रतिद्वंद्वी नहीं समझते। यदि उनका रवैया अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर भी यही रहा तो वे दोनों मिलकर मॉंग कर सकते हैं कि उन दोनों को ‘परमाणु-शक्ति` होने की मान्यता दी जाए। अभी तक दोनों को ‘वैध` परमाणु शक्ति नहीं माना जाता। इसीलिए दोनों ने अभी तक परमाणु अ-प्रसार संधि पर दस्तखत भी नहीं किए हैं। पॉंच की बजाय सात परमाणु शक्तियों को संयुक्तराष्ट्र की मान्यता मिलने में अभी कुछ देर लग सकती है लेकिन दोनों राष्ट्र मिलकर ऐसे अनेक कदम उठा सकते हैं, जिन्हें न केवल विश्व-समाज मान्यता देने के लिए मजबूर हो जाएगा बल्कि शेष पॉंचों परमाणु महाशक्तियों के लिए वे कदम अनुकरणीय बन सकते हैं। सबसे पहले तो उन्हें परस्पर परमाणु-अनाक्रमण का समझौता करना चाहिए। दूसरा, परमाणु शस्त्रास्त्रों को तैनात नहीं करने की घोषणा करनी चाहिए। तीसरा, यदि शेष पॉंचों महाशक्तियॉं अपने परमाणु-शस्त्राास्त्राों को समाप्त करने के लिए टाइम-टेबल पर सहमत हों तो दोनों राष्ट्र अपने परमाणु-भंडारों को भी समाप्त करने की अग्रिम घोषणा करें। दूसरे शब्दों में भारत-पाक परमाणु बम विश्व-विध्वंस नहीं, विश्व शांति के ब्रह्मास्त्रा सिद्ध हों। भारत और पाकिस्तान मिलकर परमाणु निरस्त्राीकरण का विश्व-अभियान भी छेड़ सकते हैं।
यदि भारत और पाकिस्तान इस विश्व-स्तरीय अभियान में संयुक्त रूप से जुट जाऍं तो क्या उन्हें इतनी फुर्सत मिलेगी कि वे कश्मीर या किसी अन्य छोट-मोटे मुद्दे पर आपस में भिड़ने को तैयार हों? वे दोनों इतनी लंबी लकीर खींचने पर कमर कस लेंगे कि आपसी विवाद तो अपने आप छोटी-मोटी लकीर बनकर रह जाऍंगे। एक अर्थ में विदेश मंत्राी नटवरसिंह का यह कथन सत्य सिद्ध हो जाएगा कि भारत-पाक विवाद के समाधान के लिए वही रास्ता सही है, जिस पर भारत और चीन चल रहे हैं। अर्थात् विवाद अपनी जगह कायम रहें, उन पर बातचीत भी चलती रहे और पारस्परिक संबंध भी घनिष्ट होते चले जाऍं। इसके अलावा विदेश मंत्राी नटवरसिंह का यह बयान कि भारत, पाक और चीन एक-समान परमाणु-सिद्धांत का निर्माण करें, अपने आप में खयाली पुलाव बनकर नहीं रह जाएगा। वह शीघ्र ही अमली जामा पहन सकता है। पाकिस्तानी विदेश मंत्राी खुर्शीद महमूद कसूरी ने उक्त प्रस्ताव को रद्द नहीं किया है। पहले इस्लामाबाद और अब चीन में उन्होंने इस पर विचार करने की बात कही है। क्या ये सहमतियॉं विलक्षण नहीं हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा छोड़ दिया है। कश्मीर अपनी जगह खड़ा है लेकिन भारत-पाक कारवॉं आगे बढ़ रहा है।
आशा है कि यह कारवॉं अब पीछे नहीं हटेगा। चीन में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रिायों के बीच जैसा सौहार्दपूर्ण सहभोज और सम्वाद हुआ है, उससे यह आशा और भी बलवती होती है। दोनों विदेश मंत्राी अपने देशों में नहीं, परदेस में मिले। ऐसे देश में मिले, जो कल तक पूरी तरह पाकिस्तान के साथ था लेकिन आज लगभग तटस्थ है। दोनों विदेश मंत्रिायों की सार्थक भेंट पर चीन भी खुश है और अमेरिका भी ! जाहिर है कि भारत और पाकिस्तान को संयुक्त परमाणु रणनीति बनाने में और कदम से कदम मिलाकर चलने में अभी कुछ समय लगेगा। भारत-पाक एका चीन को भी दक्षिण एशिया के अधिक निकट लाएगा। यदि ये तीनों राष्ट्र पूर्ण सद्भाव के साथ काम करें तो मध्य एशिया के गैस और तेल के भंडार संपूर्ण एशिया का रूपांतर कर सकते हैं।
Leave a Reply