Nai Vidha, Neemech, 15 March 2005 : आर्यसमाज की स्थापना लगभग सवा सौ साल पहले हुई थी| महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित इस संस्था ने भारतीय समाज और स्वाधीनता संग्राम के लिए जितना बड़ा योगदान किया है, शायद किसी भी गैर-राजनीतिक संस्था ने नहीं किया है लेकिन इस संस्था को भी राजनीति के रोग ने पकड़ लिया है| सारे विश्व में फैले लगभग 10 हजार आर्य समाजों की शिरोमणि संस्था है, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा| लगभग 100 साल पहले बनी इस संस्था के पास अरबों रु. की सम्पत्ति है, सैकड़ों स्कूल-कॉलेज और गुरुकुल हैं, हजारों औषधालय, अनाथालय और गौशालाऍं हैं तथा लाखों सदस्य है| इस ‘सार्वदेशिक सभा’ का केंद्रीय कार्यालय दिल्ली के आसफ अली रोड पर है| इस कार्यालय पर अब स्वामी इंद्रवेश और अग्निवेश का कब्जा हो गया है| स्वामीगण कहते हैं कि पिछले चार साल से जिन लोगों का कब्जा था, वे अवैध चुनाव के दम पर जमे हुए थे| ये स्वामी लोग जैसे ही भवन में घुसे, पुराने अधिकारी लोग भाग खड़े हुए| इन अधिकारियों का कोई जनाधार नहीं है और वे लगभग अज्ञात कुल-शील हैं| सारा मामला अदालत में है और पुलिस ने सभा-भवन पर घेरा डाल रखा है| स्वामी अग्निवेश आर्य समाज में नई जान फूूंकना चाहते हैं लेकिन असली सवाल यह है कि बदलती हुई दुनिया में आर्य समाज की भूमिका के बारे में किसी के पास कोई स्पष्ट दृष्टि है या नहीं?
वसंतसाठे: सहस्रचंद्रदर्शन
ये सहस्रचंद्र दर्शन क्या बला है? एक हजार बार पूर्ण चंद्रमा के दर्शन करना ही सहस्रचंद्र दर्शन है| एक हजार पूर्णिमाओं का अर्थ है, 80 साल से भी अधिक ! राजधानी में रजत, स्वर्ण और अमृत जयंतियॉं मनती रहती हैं लेकिन श्री वसंत साठे के 80 साल पूरे होने पर उनके मित्रों ने सहस्रचंद्र दर्शन समारोह का अभिनव आयोजन किया| इंडिया इंटरनेशनल सेटर में आयोजित समारोह में सोनिया गॉंधी और मनमोहनसिंह को आना था| वे नहीं आए ! मुझे पहले से ही अंदेशा था| साठेजी ने अपने धन्यवाद भाषण में कह डाला कि वे उन्हें अपना साथी समझते हैं, इसीलिए बुलाया, वरना प्रधानमंत्री वगैरह की अब क़ीमत क्या रह गई है? आज हैं और कल नहीं| इस तरह की दो-टूक बात कोई तभी कह सकता है ‘जाको कछु न चाहिए’| याने ऐसे ही लोग शाहों के शाह कहलाते हैं| उस कार्यक्रम में शिवराज पाटील, नटवर सिंह और शीला दीक्षित के अलावा वि.प्र. सिंह, इंदर गुजराल आदि अनेक प्रमुख लोग स्वेच्छा से आए| कलाकारों, लेखकों, पत्रकारों और समाजसेवियों का जमावड़ा देखने लायक था| कार्ड पर छपे जो लोग नहीं आए, उनकी किसी को याद भी नहीं आई|
आरिफबेगसतरियाए
जो साठ का हो जाए, उसके लिए हम कहते हैं, वे सठिया गए| तो जो 70 का हो जाए उसके लिए क्योंे नहीं कहते कि वे सतरियाए? श्री आरिफ बेग के लिए सतरियाए कहना जरा अटपटा लगता है| आरिफ भाई इंदौर में जन्मे और पले-बढ़े| म.प्र. सरकार में वे 1967 में और मोरारजी सरकार में वे 1977 में मंत्री रहे| पहले संसोपा, फिर जनसंघ और भाजपा, फिर कॉंग्रेस और अब फिर वे भाजपा में हैं| वे सत्तर के नहीं लगते| आजकल मौलानाओं की तरह उन्होंने दाढ़ी बढ़ा रखी है| उनका 70वॉं जन्म दिन बड़े ठाठ-बाट से मनाया गया| मैंने कहा कि दाढ़ी के साथ वे 70 के और दाढ़ी के बिना वे 50 के लगते हैं| माशाअल्ला ! इस उम्र में भी वे बला के खूबसूरत हैं| वि.प्र. सिंह ने उन्हें पहली बार सुना| वे प्रभावित हुए| उन्हें पता नहीं था कि डॉ. शंकर दयाल शर्मा को आरिफ बेग ने ही भोपाल से हराया था| आरिफ भाई और मैं अब से 45 साल पहले इंदौर की गलियों में ठेले पर बैटरीवाला लाउडस्पीकर रखकर प्रचार करते घूमते थे| आंदोलन चलाते थे| साथ-साथ जेल जाते थे| सुभाष चौक, जनता चौक और छावनी चौराहे की हमारी सभाओं में हजारों लोग घंटों डटे रहते थे| आजकल वे ‘इंसानी दोस्ती’ का आंदोलन चला रहे हैं| मुसलमानों को संकीर्णता छोड़ने के लिए खुलकर आह्रवान करते हैं|
बांग्लाराजदूत
बांग्लादेश के राजदूत अचानक ढाका लौट रहे हैं| राजधानी में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया| तरह-तरह के अनुमान लगाए जाने लगे| दक्षेस का स्थगन, भारत-पाक तनाव, बांग्ला शरणार्थी आदि कई कारणों पर लोग विचार करने लगे लेकिन राजदूत हिमायतुद्दीन की कार्यकुशलता को देखते हुए हम मानकर चल रहे थे कि वे पदोन्नति पर जा रहे होंगे| कल जब मैंने बिदाई-पार्टी में पूछा तो उन्होंने बताया कि दो दिन बाद ही उन्हें ढाका जाकर विदेश सचिव का पद सम्हालना है| बधाई ! उनके पहले फारूक़ सुभान लौटते ही विदेश सचिव बने थे| पड़ौसी देशों के राजदूत भारत से लौटने पर अक्सर पदोन्नति पाते हैं| क्यों ? इसीलिए कि भारत का अनुभव कूटनीति में अनुभवों का अनुभव माना जाता है|
ज्ञानपीठ
भारतीय ज्ञानपीठ के नए प्रबंध न्यासी नियुक्त हुए हैं, अखिलेश जैन ! वे श्री रमेशचंद्र जैन के बेटे हैं| रमेशजी का सितंबर में निधन हो गया था| उनकी जगह पर अखिलेश के आने का हिंदी जगत में स्वागत हो रहा है| निदेशक प्रभाकर श्रोत्र्िाय और युवा प्रबंध न्यासी अखिलेश की जोड़ी ज्ञानपीठ को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी, इसमें संदेह नहीं है लेकिन ज्ञानपीठ अब तक केवल साहित्यपीठ बनकर रह गया है| क्या यह नई जोड़ी उसे ज्ञानपीठ भी बनाएगी?
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