राष्ट्रीय सहारा, 3 जनवरी 2010 : फलस्तीन और इस्राइल के बीच चल रही मुठभेड़ किसी युद्घ से कम नहीं हैं| 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और हजारों घायल हुए हैं| गाज़ा-क्षेत्र् का कौनसा नामी-गिरामी भवन है, जिसे इस्राइली राकेटों ने खंडहर में नहीं बदल दिया है| हफ्ते भर से चला यह युद्घ रूकने का नाम नहीं ले रहा है| सुरक्षा परिषद् की युद्वबंदी की अपील का कोई असर नहीं हैं| अमेरिका अपने पट्रठे इस्राइल की पीठ ठोक रहा है और रूस समेत यूरोपीय राष्ट्र दोनों पक्षों से शांति की अपील किए जा रहे हैं| यदि सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो अगले एक-दो हफ्ते बाद गाजा की पहचान ही खत्म हो जाएगी| इस्राइल हमास को उखाड़ने के नाम पर गाज़ा के 15 लाख फलस्तीनियों को अपने वतन में ही शरणार्थी बना देगा| दुनिया की कोई ताकत नहीं है, जो इस्राइल को रोक सके| आखिर इस्राइल इतना बेकाबू क्यों हो गया है ? क्या वजह है कि उसने गाज़ा-क्षेत्र् पर राकेट-वर्षा शुरू कर दी ? इतने एकतरफा विनाश के बावजूद वह क्यों थम नहीं रहा है ? इस्राइल और हमास के बीच पिछले तीन साल में कोई युद्घ नहीं छिड़ा, यह अपने आप में आश्चर्य है| जनवरी 2006 में जब यासर अराफात की फतह पार्टी को संसदीय चुनाव में हराकर हमास पार्टी सत्तारूढ़ हुई थी तो उसने खुले-आम घोषणा की थी कि वह इस्राइल से तब तक बात नहीं करेगी, जब तक वह फलस्तीनी राज्य की स्वतंत्र्ता और संप्रभुता को मान्यता नहीं देगा| इसमें शक नहीं कि हमास ने लोकतंत्र् का रास्ता तो पकड़ा लेकिन उसके मुँह से आतंकवाद के शोले लगातार बरसते रहे| फतह पार्टी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास पहले से अपने पद पर विराजमान थे| अब राष्ट्रपति फतह का और प्रधानमंत्री हमास का हो गया| दोनों की नीतियाँ अलग-अलग थीं| दोनों के प्रति इस्राइल और अमेरिका के रूख अलग-अलग हो गए| अब्बास के साथ ये दोनों राष्ट्र बातचीत चला रहे थे लेकिन हमास को वे बिल्कुल रद्द करते रहे| हमास के कार्यकर्त्ताओं ने गाज़ा-क्षेत्र् पर कब्जा कर लिया और वहाँ अपनी समानांतर सरकार बना ली| सउदी अरब और मिस्र की सहायता से फतह और हमास में कामचलाऊ संबंध स्थापित हो गया| लेकिन हमास को हमेशा यह शिकायत रही कि गाज़ा खाली करने के बावजूद इस्राइल गाज़ा में लगातार दखलंदाजी करता रहा है| गाज़ा का दम घोंटने के लिए उसने क्या-क्या पैंतरे नहीं अपनाए| गाज़ा की रसद बंद कर दी| अंतरराष्ट्रीय सहायता उस तक पहुँचने नहीं दी| सीमा-कर गाज़ा की सरकार को देने के बदल इस्राइल हड़प गया| गाज़ा के 15 लाख लोग दाने-दाने को मोहताज़ हो गए| राष्ट्रपति अब्बास ने अमेरिकी इशारे पर फलस्तीन की चुनी हुई हमास सरकार को बर्खास्त कर दिया| इस्राइल का एक मात्र् लक्ष्य यह रह गया कि गाज़ा में सकि्रय हमास के आखिरी निशान को भी उखाड़ फेंका जाए| ऐसी स्थिति में हमास ने जून 2007 में तख्ता-पलट कर दिया और गाज़ा की सत्ता अपने हाथ में ले ली| यह जले पर नमक छिड़कना हुआ| इस्राइल ने गाज़ा का टेंटुआ दुबारा कसना शुरू कर दिया| दोनों पक्ष आक्रामक हो गए| दोनों एक-दूसरे को खत्म करने की तैयारी में जुट गए| कहाँ इस्राइल और कहाँ हमास ? लेकिन इस बार हमास ने काफी तैयारी कर डाली| गाज़ा-क्षेत्र् को ईरानी राकेटों का भंडार बना दिया| नौजवानों के सैकड़ों आत्मघाती दस्ते तैयार किए| गाज़ा को सैन्य-छावनी में बदल दिया| गाज़ा में बाहर से रोज़ आनेवाले 750 ट्रकों को रोक दिया गया| मिस्र और इस्राइल में खुलनेवाले गाज़ा के दरवाजे़ बंद कर दिए गए| जून 2008 से शुरू हुए युद्घ-विराम को आगे होकर हमास ने दिसंबर में तोड़ दिया| खिसियाकर उसने इस्राइल के कुछ सीमावर्ती शहर पर रॉकेट बरसा दिए| इस्राइल ने सख्त चेतावनी दी लेकिन ईरान और सउदी अरब की शै पर मस्ताए हुए हमास नेताओं ने कोई ध्यान नहीं दिया| जवाब में इस्राइल ने हमेशा की तरह मक्खी मारने के लिए हथौड़ा चला दिया| उसका लक्ष्य हमास के उकसावे का जवाब देना भर नहीं है बल्कि हमास को जड़मूल से उखाड़ना है| हमास को उखाड़ने के चक्कर में इस्राइल ने गाज़ा के 15 लाख लोगों का जीवन नरक बना दिया है| दो डालर रोज़ से भी कम पर गुजारा करनेवाले ये सब लोग हमास के समर्थक नहीं हैं लेकिन वे सब युद्घ का शिकार बनने के लिए मजबूर हैं| इस्राइल और अमेरिका ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है| वे समझते हैं कि डंडे के ज़ोर से हमास को खत्म कर देंगे लेकिन वे यह भूल जाना चाहते हैं कि सद्दाम को खत्म करने का अंजाम क्या हुआ ? सद्दाम हुसैन के मुकाबले हमास के चुने हुए प्रधानमंत्री इस्माइल हनिए की वैधता कई गुना ज्यादा थी| यदि हमास लोकतंत्र् के रास्ते पर आने को तैयार हुआ था तो अमेरिका का दायित्व क्या था ? क्या यह नहीं कि वह हमास को प्रोत्साहित करता लेकिन पहले उसने फतह और हमास को लड़ाया और अब हमास और इस्राइल को लड़ा रहा है| इसमें शक नहीं कि वर्तमान संकट की पहल हमास की तरफ से हुई लेकिन सज़ा की भी कोई हद होती है या नहीं ? अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडालीज़ा राइस और आसन्न राष्ट्रपति बराक ओबामा का यह कहना ठीक है कि हर राष्ट्र को आत्म-रक्षा का अधिकार है लेकिन गाज़ा के 15 लाख लोगों पर सीधा हमला बोलने से कौनसी राष्ट्र-रक्षा हो रही है ? यदि भारत मुंबई-हमले के जवाब में लाहौर और कराची पर हमला कर देता तो क्या ओबामा और राइस उसे भी ठीक कहते ? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस्राइल यह अतिवादी कदम इसलिए उठा रहा है कि ओबामा ने अपने चुनाव-अभियान में कुछ नरमी के संकेत दिए थे ? ओबामा 20 जनवरी को शपथ लेंगे| उसके पहले ही वह शायद हमास का सफाया करना चाहता है| इस्राइल भूल रहा है कि उसका अतिवाद फलस्तीनी आतंकवाद के नए रक्तबीजों की फसल खड़ी कर देगा| वह ओबामा के मार्ग में नए कांटे बिछा रहा है| ईरान के हजारों नौजवान अब आत्मघाती दस्ते बनाकर गाज़ा पहुँच रहे हैं और जो राष्ट्र इस्राइल के साथ समझौते के पक्षधर थे, वे भी अब ठंडे पड़ते जा रहे हैं| यह अतिवाद इस्राइल की एहुद ओल्मर्ट को अगला चुनाव तो जिता देगा लेकिन पश्चिम में शांति का हरा देगा|
इस्राइल का अतिवाद और शांति की पराजय
राष्ट्रीय सहारा, 3 जनवरी 2009 : फलस्तीन और इस्राइल के बीच चल रही मुठभेड़ किसी युद्घ से कम नहीं हैं| 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और हजारों घायल हुए हैं| गाज़ा-क्षेत्र् का कौनसा नामी-गिरामी भवन है, जिसे इस्राइली राकेटों ने खंडहर में नहीं बदल दिया है| हफ्ते भर से चला यह युद्घ रूकने का नाम नहीं ले रहा है| सुरक्षा परिषद् की युद्वबंदी की अपील का कोई असर नहीं हैं| अमेरिका अपने पट्रठे इस्राइल की पीठ ठोक रहा है और रूस समेत यूरोपीय राष्ट्र दोनों पक्षों से शांति की अपील किए जा रहे हैं| यदि सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो अगले एक-दो हफ्ते बाद गाजा की पहचान ही खत्म हो जाएगी| इस्राइल हमास को उखाड़ने के नाम पर गाज़ा के 15 लाख फलस्तीनियों को अपने वतन में ही शरणार्थी बना देगा| दुनिया की कोई ताकत नहीं है, जो इस्राइल को रोक सके|
आखिर इस्राइल इतना बेकाबू क्यों हो गया है ? क्या वजह है कि उसने गाज़ा-क्षेत्र् पर राकेट-वर्षा शुरू कर दी ? इतने एकतरफा विनाश के बावजूद वह क्यों थम नहीं रहा है ? इस्राइल और हमास के बीच पिछले तीन साल में कोई युद्घ नहीं छिड़ा, यह अपने आप में आश्चर्य है| जनवरी 2006 में जब यासर अराफात की फतह पार्टी को संसदीय चुनाव में हराकर हमास पार्टी सत्तारूढ़ हुई थी तो उसने खुले-आम घोषणा की थी कि वह इस्राइल से तब तक बात नहीं करेगी, जब तक वह फलस्तीनी राज्य की स्वतंत्र्ता और संप्रभुता को मान्यता नहीं देगा| इसमें शक नहीं कि हमास ने लोकतंत्र् का रास्ता तो पकड़ा लेकिन उसके मुँह से आतंकवाद के शोले लगातार बरसते रहे| फतह पार्टी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास पहले से अपने पद पर विराजमान थे| अब राष्ट्रपति फतह का और प्रधानमंत्री हमास का हो गया| दोनों की नीतियाँ अलग-अलग थीं| दोनों के प्रति इस्राइल और अमेरिका के रूख अलग-अलग हो गए| अब्बास के साथ ये दोनों राष्ट्र बातचीत चला रहे थे लेकिन हमास को वे बिल्कुल रद्द करते रहे| हमास के कार्यकर्त्ताओं ने गाज़ा-क्षेत्र् पर कब्जा कर लिया और वहाँ अपनी समानांतर सरकार बना ली| सउदी अरब और मिस्र की सहायता से फतह और हमास में कामचलाऊ संबंध स्थापित हो गया| लेकिन हमास को हमेशा यह शिकायत रही कि गाज़ा खाली करने के बावजूद इस्राइल गाज़ा में लगातार दखलंदाजी करता रहा है| गाज़ा का दम घोंटने के लिए उसने क्या-क्या पैंतरे नहीं अपनाए| गाज़ा की रसद बंद कर दी| अंतरराष्ट्रीय सहायता उस तक पहुँचने नहीं दी| सीमा-कर गाज़ा की सरकार को देने के बदल इस्राइल हड़प गया| गाज़ा के 15 लाख लोग दाने-दाने को मोहताज़ हो गए| राष्ट्रपति अब्बास ने अमेरिकी इशारे पर फलस्तीन की चुनी हुई हमास सरकार को बर्खास्त कर दिया| इस्राइल का एक मात्र् लक्ष्य यह रह गया कि गाज़ा में सकि्रय हमास के आखिरी निशान को भी उखाड़ फेंका जाए|
ऐसी स्थिति में हमास ने जून 2007 में तख्ता-पलट कर दिया और गाज़ा की सत्ता अपने हाथ में ले ली| यह जले पर नमक छिड़कना हुआ| इस्राइल ने गाज़ा का टेंटुआ दुबारा कसना शुरू कर दिया| दोनों पक्ष आक्रामक हो गए| दोनों एक-दूसरे को खत्म करने की तैयारी में जुट गए| कहाँ इस्राइल और कहाँ हमास ? लेकिन इस बार हमास ने काफी तैयारी कर डाली| गाज़ा-क्षेत्र् को ईरानी राकेटों का भंडार बना दिया| नौजवानों के सैकड़ों आत्मघाती दस्ते तैयार किए| गाज़ा को सैन्य-छावनी में बदल दिया| गाज़ा में बाहर से रोज़ आनेवाले 750 ट्रकों को रोक दिया गया| मिस्र और इस्राइल में खुलनेवाले गाज़ा के दरवाजे़ बंद कर दिए गए| जून 2008 से शुरू हुए युद्घ-विराम को आगे होकर हमास ने दिसंबर में तोड़ दिया| खिसियाकर उसने इस्राइल के कुछ सीमावर्ती शहर पर रॉकेट बरसा दिए| इस्राइल ने सख्त चेतावनी दी लेकिन ईरान और सउदी अरब की शै पर मस्ताए हुए हमास नेताओं ने कोई ध्यान नहीं दिया| जवाब में इस्राइल ने हमेशा की तरह मक्खी मारने के लिए हथौड़ा चला दिया| उसका लक्ष्य हमास के उकसावे का जवाब देना भर नहीं है बल्कि हमास को जड़मूल से उखाड़ना है| हमास को उखाड़ने के चक्कर में इस्राइल ने गाज़ा के 15 लाख लोगों का जीवन नरक बना दिया है| दो डालर रोज़ से भी कम पर गुजारा करनेवाले ये सब लोग हमास के समर्थक नहीं हैं लेकिन वे सब युद्घ का शिकार बनने के लिए मजबूर हैं|
इस्राइल और अमेरिका ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है| वे समझते हैं कि डंडे के ज़ोर से हमास को खत्म कर देंगे लेकिन वे यह भूल जाना चाहते हैं कि सद्दाम को खत्म करने का अंजाम क्या हुआ ? सद्दाम हुसैन के मुकाबले हमास के चुने हुए प्रधानमंत्री इस्माइल हनिए की वैधता कई गुना ज्यादा थी| यदि हमास लोकतंत्र् के रास्ते पर आने को तैयार हुआ था तो अमेरिका का दायित्व क्या था ? क्या यह नहीं कि वह हमास को प्रोत्साहित करता लेकिन पहले उसने फतह और हमास को लड़ाया और अब हमास और इस्राइल को लड़ा रहा है| इसमें शक नहीं कि वर्तमान संकट की पहल हमास की तरफ से हुई लेकिन सज़ा की भी कोई हद होती है या नहीं ? अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडालीज़ा राइस और आसन्न राष्ट्रपति बराक ओबामा का यह कहना ठीक है कि हर राष्ट्र को आत्म-रक्षा का अधिकार है लेकिन गाज़ा के 15 लाख लोगों पर सीधा हमला बोलने से कौनसी राष्ट्र-रक्षा हो रही है ? यदि भारत मुंबई-हमले के जवाब में लाहौर और कराची पर हमला कर देता तो क्या ओबामा और राइस उसे भी ठीक कहते ? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस्राइल यह अतिवादी कदम इसलिए उठा रहा है कि ओबामा ने अपने चुनाव-अभियान में कुछ नरमी के संकेत दिए थे ? ओबामा 20 जनवरी को शपथ लेंगे| उसके पहले ही वह शायद हमास का सफाया करना चाहता है| इस्राइल भूल रहा है कि उसका अतिवाद फलस्तीनी आतंकवाद के नए रक्तबीजों की फसल खड़ी कर देगा| वह ओबामा के मार्ग में नए कांटे बिछा रहा है| ईरान के हजारों नौजवान अब आत्मघाती दस्ते बनाकर गाज़ा पहुँच रहे हैं और जो राष्ट्र इस्राइल के साथ समझौते के पक्षधर थे, वे भी अब ठंडे पड़ते जा रहे हैं| यह अतिवाद इस्राइल की एहुद ओल्मर्ट को अगला चुनाव तो जिता देगा लेकिन पश्चिम में शांति का हरा देगा|
Leave a Reply