इस्लामी जगत में आजकल इतना बदलाव आ रहा है, जिसकी कल्पना अब से दस-बीस साल पहले कोई कर भी नहीं सकता था। इस्लाम के गढ़ सउदी अरब ने तबलीगी जमात के खिलाफ आदेश जारी कर दिए हैं, इस्राइल के प्रधानमंत्री संयुक्त अरब अमीरात जा रहे हैं और पाकिस्तान में मांग उठ रही है कि तौहीन-ए-अल्लाह का कानून वापस लिया जाए। सउदी अरब के इस्लामी मामलों के मंत्री डा. अब्दुल लतीफ अल-शेख ने एक आदेश जारी किया है कि मस्जिदों से हर शुक्रवार को होनेवाले जलसों में तब्लीगी और दावा संगठनों के भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। खास तौर से अल-अहबाब नामक संस्था पर।
अब सउदी अरब की मस्जिदों में तबलीगी उपदेश नहीं होंगे। सउदी अरब की सरकार तबलीग जमात को ‘आतंकवाद का द्वार’ कहने लगी है, जबकि दुनिया के लगभग डेढ़ सौ देशों में सक्रिय यह जमात चल ही रही है, सउदी अरब के पैसे से। भारत के देवबंद के दारुल ऊलूम ने इस सउदी-घोषणा को बिल्कुल अनुचित बताया है और कहा है कि सउदी अरब ने पश्चिम के मालदार और ईसाई राष्ट्रों के दबाव में आकर यह गलत कदम उठाया है। याद करें कि लगभग दो साल पहले दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में आयोजित इस संगठन के जलसे को कोरोना महामारी लाने और फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
वास्तव में तबलीग का अर्थ होता है— धर्म प्रचार! जमात के प्रवक्ता का कहना है कि जमात खुद आतंकवाद का विरोध करती है और उसका उद्देश्य भटके हुए मुसलमानों को फिर से इस्लाम के रास्ते पर लाना है। वास्तव में इस जमात की शुरुआत अब से लगभग 100 साल पहले मोहम्मद इलियास कंधलावी ने की थी, क्योंकि उन दिनों आर्यसमाजी नेता स्वामी श्रद्धांनंद के नेतृत्व में मुसलमानों के धर्म-परिवर्तन (घर वापसी) की लहर चल पड़ी थी। ज्यादातर मुसलमान लोग आज भी इस्लाम कुबूल करने के बावजूद अपनी पुरानी हिंदू परंपराओं को निभाते रहते हैं। सउदी अरब के वहाबी लोग तबलीगी मुसलमानों को ‘दरगाह पूजक’ कहकर नीचा दिखाते हैं। उन्हें वे धर्मद्रोही (काफिर) और मूर्तिपूजक (बुतपरस्त) कहकर बदनाम करते हैं।
कुछ मुस्लिम देश सउदी अरब के रास्ते पर जरुर चलेंगे लेकिन पाकिस्तान, तुर्की, बांग्लादेश, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों के लिए इसे मानना मुश्किल होगा। इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट का दुबई और अबू धाबी पहुंचना कई मुस्लिम देशों को नागवार गुजर सकता है लेकिन कुछ माह पहले ही दोनों देशों ने आपस में कूटनीतिक संबंध स्थापित किए हैं जैसे कि बहरीन, सूडान और मोरक्को ने भी किए हैं। इजराइल चाहता है कि ईरान हर हालत में परमाणु बम बनाने से बाज़ आए इसके लिए वह कुछ अरब देशों को पटाने की भरपूर कोशिश कर रहा है।
पाकिस्तान में हुई एक श्रीलंकाई व्यक्ति की हत्या ने वहां इस बहस को जन्म दे दिया है कि तौहीन-ए-अल्लाह या ईश निंदा का कानून कुरान-शरीफ के मुताबिक है या नहीं? पैगंबर मोहम्मद तो उनका अपमान करनेवालों को भी बर्दाश्त करते थे और जरुरत होने पर बड़ी दरियादिली से उनकी मदद भी कर देते थे। इस तरह की बहस इस्लामी चिंतन में आ रहे बदलाव की प्रतीक है।
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