Dainik Bhaskar, 29 Jan 2011 : आरिफ मोहम्मद खान को इस देश में शाह बानो मामले के ‘हीरो’ के तौर पर जाना जाता है| मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए राजीव गांधी सरकार के जिस मंत्री ने सदन की चलती बहस के दौरान ही अपना इस्तीफा लिखकर भेज दिया, उस शख्स का नाम है, आरिफ मोहम्मद खान | आरिफ की इस बगावत ने भारत के पोंगापंथी मुल्ला-मौलवियों की छाती पर सॉंप लोटा दिया लेकिन उन्होंने भारत के ही नहीं, सारी दुनिया के मुसलमानों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या कुरान-शरीफ, हदीस और शरीयत की एक मात्र् व्याख्या वही है, जो पोंगापंथी लोग करते रहे हैं और जिस व्याख्या के कारण सिर्फ मुसलमानों को ही तकलीफें नहीं भुगतनी पड़तीं बल्कि इस्लाम जैसा क्रांतिकारी और प्रगतिशील मज़हब भी सारी दुनिया में बदनाम कर दिया जाता है| इस पहले से चले आ रहे मज़र् में आतंकवाद ने बदनामी का एक नया आयाम जोड़ दिया है !
आरिफजी ने अपनी नई पुस्तक ”कुरान एंड कंटेम्पररी चलेंजेस : टेक्स्ट और कॉटेक्स्ट” में इस्लाम, मुसलमान, जिहाद, आतंक, शरीयत, भारत-अरब संबंध, पाकिस्तान आदि विषयों पर अपने छोटे-छोटे और सारगर्भित निबंधों का ऐसा सुंदर संग्रह पेश किया है कि जिसे पढ़ने पर आपके दिल में इस्लाम का ओहदा बहुत ऊँचा हो जाएगा| पैगंबर मुहम्मद के प्रति आप श्रद्घावनत हो जाएंगें| इस्लाम, अरबों और मुसलमानों के बारे में फैली हुई गलतफहमियॉं एक दम दूर हो जाएंगी| मैं तो यहां तक कहूंगा कि आरिफजी ने यह संग्रह छपाकर इस्लाम और मुसलमानों की बड़ी सेवा की है| इस पुस्तक की श्रेष्ठता का प्रमाण तो यह तथ्य है कि कुछ ही माह में इसका दूसरा संस्करण भी बाजार में आ गया है| और यह ‘बेस्ट सेलर’ की श्रेणी में आ गई है|
इस पूरे ग्रंथ की मूल स्थापना यह है कि इस्लाम त़कवा का धर्म है, फतवा का नहीं| तक़वा का अर्थ है, ईश्वरीय चेतना और फतवा का अर्थ है, कानूनी फरमान ! इस्लाम के इतिहास की पेचीदा और बोझिल खोज-पड़ताल करने और बाल की खाल निकालने की बजाय आरिफजी ने सीधे कुरान शरीफ़ और मुहम्मद साहब के जीवन को ही अपनी बात का आधार बनाया है| उन्होंने अपने निबंधों में कुछ उम्दा फतवों का भी जि़क्र किया है लेकिन कुरान से बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है और मोहम्मद साहब के अपने आचरण से बड़ी प्रेरणा क्या हो सकती है ?
जो लोग कहते है कि इस्लाम को तलवार के जोर पर दुनिया में फैलाना जायज है, वे कृपया कुरान शरीफ की इस आयत को पढ़ें – ‘तुझे तेरा धर्म मुबारक और मुझे मेरा’ (18.29). इस्लाम को या धर्म को अरबी में ‘दीन’ कहते हैं| दीन का अर्थ है, जीवन-पद्घति | जीवन-पद्घति हमेशा एक-जैसी नहीं होती| विविधता ही उसकी प्राण है| इसीलिए कुरान यह कहीं नहीं कहती कि सारी दुनिया का ‘दीन’ एक ही होना चाहिए और उसके लिए दुनिया के लोगों को डंडे के जोर पर मजबूर किया जाना चाहिए| कुरान-शरीफ में तो यहां तक कहा गया है कि अल्लाह की मज़ीर् होती तो सारी दुनिया आस्तिकों से भरी होती (याने नास्तिकों को भी जीने का हक है)| ”जो विश्वास नहीं करते क्या आप उन्हें मजबूर करेंगे ?” (10.99-100) आरिफ साहब ने कुरान शरीफ की कुछ ऐसी आयतें भी उदृधृत की हैं, जिन्हें पढ़कर लगता है कि इस्लाम तो कठमुल्लापन को बिल्कुल रद्रद करता है| वह तर्क और विवेक पर जोर देता है और उसमें उदारता का स्थान काफी ऊँचा है| इस्लाम और जैन धर्म का स्याद्रवाद एक-दूसरे के बहुत करीब लगते हैं|
आम तौर से लोगों में यह धारणा है कि जो भी इस्लाम स्वीकार कर लेगा या मुसलमान बन जाएगा, उसे जन्नत जरूर नसीब होगी लेकिन अगर कुरान की आयत पढ़ें तो वह कहती है, ”न तो तुम्हारी मनोकामना और न ही पवित्र् ग्रंथ (कुरान) को माननेवालों की इच्छा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के कर्म के अनुसार ही फैसला होगा|” (4.123) इस्लाम की सार्वभौमिकता और वैश्विकता इसी से सिद्घ होती है कि वह मनुष्यों के बीच ऊँच-नीच की श्रेणियॉं स्वीकार नहीं करता| मक्का के पतन पर पैगंबर ने दो-टूक शब्दों में कहा कि अब तुम लोग यह अच्छी तरह से जान लो कि सारी इंसानियत आदम की औलद है| कोई किसी से छोटा-बड़ा नहीं है| कोई अरब किसी गैर-अरब से बड़ा नहीं है और कोई गैर-अरब किसी अरब से बड़ा नहीं है| मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने इसे ही इस्लाम का मुश्तरक हक कहा है याने सत्य की व्यापकता ! इस्लाम तो मानवीय समता का जबर्दस्त पक्षधर है लेकिन इस्लामी जगत में भी जात-पांत, ऊँच-नीच, छुआछूत घुस गई है|
आरिफजी ने इस ग्रंथ में ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ की भी खूब खबर ली है| उन्होंने कुरान की आयतें उद्रधृत करके बताया है कि हमारे मुसलमानों पर कैसी-कैसी गई-गुजरी परंपराऍं थोपी जा रही हैं| उन्होंने अरबी श्रेष्ठता की अवधारणा को भी रद्रद किया है| कई पोगापंथी कानूनों का विरोध करने के लिए उन्होंने इस्लामी कानून के ‘इन्नमाल आमालू बिन्नियत’ के सिद्घांत का सहारा लिया है याने किसी भी काम के पीछे मन्शा क्या है, यही प्रमुख बात है| तलाक के सवाल पर उन्होंने हिंदुस्तानी मुस्लिम पर्सनल लॉ की धज्जियां उड़ा दी हैं| उन्होंने चार-चार बीवियॉं रखने की बात को भी आदर्श नहीं कहा है| उनके मुताबिक कुरान कहती है कि एकपत्नीव्रत ही आदर्श है|
मदरसों की तालीम और मुसलमानों के पिछड़ेपन पर भी लेखक ने खुलकर कलम चलाई है| उन्होंने इस्लामी इतिहास को खंगालकर बताया है कि इस्लाम में शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, तर्क-वितर्क, खोज-अनुसंधान आदि का कितना महत्व था| भारत के अनेक प्राचीन ग्रंथों का अरब विद्वानों ने अरबी में अनुवाद किया और यूरोपीय विद्वानों को भारतीय विद्याऍं अरबों के जरिए ही मिलीं| मोहम्मद साहब की वाणी को पेश करते हुए आरिफजी ने कहा कि ”अल्लाह की इबादत 70 वर्ष तक करने की बजाय एक घंटे का आत्म-मंथन ज्यादा श्रेयस्कर है|” खुद पैगंबर ने कहा था कि ”पालने से कब्र तक ज्ञान की खोज में लगे रहो|” और ”ज्ञान की खोज में चीन भी जाना हो तो जाओ|” जिहाद के नाम पर चल रहे आतंकवाद को लेखक ने बहुत ही रोचक और प्रामाणिक ढंग से इस्लाम-विरोधी सिद्घ किया है| इस पुस्तक को पढ़ने पर हर किसी पाठक को इस्लाम की ऊँचाइयों और गहराइयों का नया बोध होगा| दुख इसी बात का है कि यह किताब हिंदी और उर्दू में क्यों नहीं है ?
× आरिफ मोहम्मद खान, ”कुरान एंड कंटेम्पररी चेलेंजेस : टेक्स्ट और कॉंटेक्स्ट” (रूपा, 2010)
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